रविवार, 8 नवंबर 2015

अभिशप्त

अभिशप्त

मैं चाँद हूँ
दागदार हूँ
अनिश्चितता मेरी पहचान है
कभी घटता  कभी  बढ़ता
कभी गुम  कभी हाज़िर 
मैं सूरज की तरह 
चमकता नहीं
पर उसकी तरह 
अकेला भी नहीं
मेरे साथ हैं अनगिनत 
सितारों की चादर
मेरे न होने पर भी 
टिमटिमाते हैं तारे
आने वाली है दीपावली
घुटने लगा हूँ 
फिर एक बार
पूरी धरती जगमगाएगी
राम के स्वागत में नज़र आएगी
नहीं देख पाया 
एक भी दीपावली 
आज तक
हाँ
मैं एक दीपावली
के इंतज़ार में
अमावस का 
अभिशप्त चाँद हूँ  

13 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 09 नवम्बबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. अभिशप्त ? नहीं, चाँद तो दाता है दीवाली का..गर वह छुपे न तो दीवाली कैसे मने..और देने वाला तो सदा बड़ा होता है न..चाँद तो मन की तरह है और आत्मा सूरज की तरह..आत्मा सदा अकेला है पर मन हजारों विचारों के साथ..पर मन न हो आत्मा की शक्ति व्यक्त कैसे होगी...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति। धन्यवाद रचनाजी।

    जवाब देंहटाएं
  4. अभिसप्त होते हुए भी लोगों की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी ढूंढ़ लेता हूँ - वाह

    जवाब देंहटाएं
  5. चांद की अपनी महिमा है, वो दिपावली नही देख सकता लेकिन फिर भी वो अभिक्षिप्त नही हो सकता। बढिया प्रस्तुती...

    जवाब देंहटाएं
  6. जी हाँ , चाँद की अपनी महिमा है।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर और भावपूर्ण। दीप पर्व की शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  8. दीदी आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा अतः मैं इसका सदस्य बन गया। अगर मेरा ब्लॉग भी आपको पसंद ए तो कृपया सदस्य बनें।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत दिनों के बाद अच्छी रचना पढ़ने को मिली
    बधाई सुंदर सृजन के लिए

    जवाब देंहटाएं
  10. काश ऐसी भी किस्मत न हो किसी के ... लाजवाब गहरी सोच ...

    जवाब देंहटाएं

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...