डोन
मैं डोन हूँ ग्यारह मुल्कों की पुलिस
मुझे ढूंढ़ रही है.
अलग मुल्क, अलग लोग,
अलग उन्हें निपटाने के तरीके
कैसे-कैसे पार लगाया उन्हें,
कितने क़त्ल किये
कितनों को मौत के घाट उतारा,
कितनों को जिन्दा भून डाला,
कोई भट्टी में पका,कोई तवे में सिंका
कितनों को तो यूँ ही धो डालती हूँ मिनटों में,
पर अब भागते- भागते थक गयी हूँ
किचेन से, माइक्रो वेव से, ओ टी जी से
मिक्सी से वाशिंग मशीन से फोन, डोर बेल,
मेहमान, बच्चे, पति
नहीं जानती क्या करूँ
बेमौत मरना भी नहीं चाहती
हाँ, आत्मसमर्पण से डरती हूँ
कहीं ये ग्यारह मुल्क ही
मुझे पहचानने से इंकार न कर दें
पर अब समझने जरुर लगी हूँ.
ग्यारह मुल्कों की पुलिस मुझे ढूंढ़ नहीं रही,
न ही मेरे लिए पलक पांवड़े बिछाए बैठी है,
वो तो मुझे उँगलियों पे नचा रही है.
हाँ.... मैं अपने पूरे होशो हवास में,
ये स्वीकार करती हूँ
कि मैं ग्यारह मुल्कों की पुलिस की
उँगलियों पर नाचने वाली
इक डोन हूँ.
(चित्र गूगल से साभार)
(चित्र गूगल से साभार)
इस डान की नियति तो यही है इसलिये यदि ये छुपकर बैठ भी जावे तो ये सभी मुल्क लगातार ढूंढते ही रहेंगे । पहचानने से इन्कार का तो सवाल हो ही नहीं सकता ।
जवाब देंहटाएंछुप कर कहाँ जाओगे ?
जवाब देंहटाएंरचना अच्छी लगी
केले पर की गयी कलाकारी का भी जवाब नहीं
wah kya andaaz hai.........
जवाब देंहटाएंmaan gaye......
aabhar
केले में डॉन, अकेले में डॉन।
जवाब देंहटाएंएक नई परिभाषा निराले अंदाज़ में !
जवाब देंहटाएंइस डोन के बगैर दुनिया भी तो नहीं चलती ।
जवाब देंहटाएंकेले पर केलाकारी ! अद्भुत ।
रचना अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंकेले पर की गयी कलाकारी का भी जवाब नहीं
क्या बात है!...एक अनूठी रचना है यह!..स्वागत है!..मेरे ब्लौग 'बात का बतंगड' पर आइए...यहां भी कुछ अनूठा ही है!
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना लेकिन इस डोन जी को दुर से ही राम राम :)
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।नया अंदाज बहुत ही अच्छा लगा।मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंsunder evam saadgi-poorn lekhan...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..एक नया अंदाज़
जवाब देंहटाएंडान तो पुलिस को उँगलियों पे नचाते हैं!
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (2-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
waah kya baat hai ,sahi kaha chhupna namumkin hai ,hansi aa gayi padhkar ,tippani bahut pyari di hai ,shukriyaan .
जवाब देंहटाएंबिल्कुल निराले अंदाज़ की कविता है।
जवाब देंहटाएंअकेला डान :-)
जवाब देंहटाएंalag sa andaaj, bahut khaas
जवाब देंहटाएंओह! डॉन का ये अनोखा रूप रहा.............
जवाब देंहटाएंये डान अद्भुत है ,
जवाब देंहटाएंडान की नियति ही यही है.. एक बार फिर नवीन विम्ब...
जवाब देंहटाएं• इस कविता में आपकी वैचारिक त्वरा की मौलिकता नई दिशा में सोचने को विवश करती है।
जवाब देंहटाएंBadee anoothee rachana hai!
जवाब देंहटाएंkele ka bhi man badha gayi kala, aur kavita ka man badha gayin aap ji ,sunder srijan . kalpana -shilata sarhniy hai .
जवाब देंहटाएंवाह वाह क्या बात है जो ग्यारह देशों की पुलिस भी नचाने लगी, आज के हालत ही कुछ ऐसे है हम सभी रोबोट बन गए हैं उन्मुक्तता तो बच्चों तक से छिन गयी है...
जवाब देंहटाएंअगर मनोज कुमार जी इस कविता के विषय में यह कहते हैं कि "इस कविता में आपकी वैचारिक त्वरा की मौलिकता नई दिशा में सोचने को विवश करती है " तो सही कहते है.बहुत अच्छी रचना. आभार
जवाब देंहटाएंकेले की कलाकारी और कविता दोनो ही अलग अंदाज़ लिए हैं ...
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत ही खूबसूरत से शब्द और चित्र तो अति-सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंरचना जी,
जवाब देंहटाएंविषय में प्रयोग के सहारे नारी की स्थिति का सटीक चित्रण एक नए अंदाज में बहुत अच्छा लगा.
rachna ji
जवाब देंहटाएंis baar ki aapki post nisandeh sabse alag aur ek naye andaaz me lagi ..bhaut hi behatreenv gahan abhivykti
ke saath likhi aapki ye post baar -baar padhne ko man karta hai .fir se inhe dubaara padhungi .
bahut bahut badhai
poonam
आप फिर भी डोन ही हैं.
जवाब देंहटाएंब्लॉग की पुलिस का ज़िक्र नहीं किया आपने.
क्या बात है इस दों को तो ११ मुल्को भी पुलिस पगड नहीं पायेगी .....
जवाब देंहटाएंलाजवाब , सुन्दर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंdon ke bare me ek nai soch .
जवाब देंहटाएंachchhi kavita
rachana
उस डॉन को तो जंगली बिल्लियाँ पसंद थीं, इस डॉन की पसंद क्या है? :-)
जवाब देंहटाएंबेचारे अभिताभ और शाहरुख। एक डान और 11 मुल्क । ढूंढ रही है के बदले नचा रही है एक निराली अभिव्यक्ति। सच में लेखनी में भाव का संचार हैं आप
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..एक नया अंदाज़
जवाब देंहटाएंएक नये विम्ब का प्रयोग
जवाब देंहटाएंअद्भुत .....!!
जवाब देंहटाएंअगर आप क्षणिकाएं लिखती हों तो अपनी दस, बारह क्षणिकाएं 'सरस्वती-सुमन' पत्रिका के लिए भेजिए
साथ में अपना संक्षिप्त परिचय और छाया चित्र भी .....
इस पते या मेल पर ......
harkirat 'heer'
18 east lane , sunderpur
house no. 5
Guwahaati-781005
ASSAM
ya
harkiratheer@yahoo.in
एकदम नए अंदाज़ की कविता....बहुत ही रोचक लगी...
जवाब देंहटाएंwaaaaaaaaaaaaaaaaah
जवाब देंहटाएंgreat....!!!!!!!!!!!!!
एक अलग ..अनूठी सी रचना...... शाब्दिक अलंकरण हमेशा की तरह कमाल का.....
जवाब देंहटाएंडोन का यह अंदाज भी पसंद आया
जवाब देंहटाएंजिन केलों को आपने दिखाया
उनको किसने खाया
पहली दफा आपके ब्लॉग पर आना हुआ
क्या बताऊँ कि मैंने क्या क्या पाया.
अब समय निकाल कर आप भी मेरे ब्लॉग पर आजाईये.
अपने सुविचारों की मोहक बरसात कर बस छा जाईये.
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
कविता के भाव के साथ केले पर बने चित्र बहुत अच्छे लगे।
जवाब देंहटाएंadbhut. DON ka yah roop bhi. isme stri ki vah peeda he jo mujhe hameshaa se sochane par mazboor karti rahi he..., kyaa 21 vi sadi me bhi koi parivartan nahi? aakhir aur kitane yug dekhne honge?
जवाब देंहटाएंवाह भई डॉन तेरे खेल भी निराले
जवाब देंहटाएंक्या बात है बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंकेले पर की गयी कलाकारी का भी जवाब नहीं!
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति
जैसे शमा जलती जाती है लेकिन रौशनी देती रहती है , वैसे ही पेन्सिल भी छिलती जाती है , लेकिन अपना लेखन कर्म नहीं छोडती। बहुत सुन्दर सबक इस रचना में।
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