सड़क
तुमने किसी सड़क को चलते हुए देखा है
ये सड़क कहाँ जायेगी कभी सोचा है
ये सड़क कहाँ जायेगी कभी सोचा है
ये सड़कें न तो चलती हैं,न कहीं जाती हैं
ये एक मूक दर्शक की तरह स्थिर हैं
ये सड़कें आजाद हैं
ये सड़कें आजाद हैं
कहीं भी किसी भी सड़क से मिल जाने को
ये आज़ाद हैं किसी को भी
अपने से जुदा कर जाने को
ये काली लम्बी उथली
तो कभी चिकनी लहराती बलखाती
कभी सपाट तो कभी उबड़- खाबड़
असीम अनंत दिशायों तक फैली
अपने सीने पर
इन्सान को बड़े गर्व से उठाने को
कभी मंदिर मार्ग कभी मस्जिद मोड़ जाने को
पर
मंदिर मार्ग पर जाने वाला हर इन्सान मंदिर नहीं जाता
मंदिर मार्ग पर जाने वाला हर इन्सान मंदिर नहीं जाता
मस्जिद मोड़ पर जाने वाले सिर्फ मस्जिद नहीं जाते
गाँधी रोड पर जाने वाले सब गाँधीवादी नहीं होते
मदर टेरेसा रोड पर जाने वाले सब दयालु नहीं होते
क्यों ऐसे नाम रखते हैं सड़कों के
जहाँ गाँधी रोड पर दारू बिके
मंदिर मार्ग पर गाय कटे
मस्जिद मार्ग पर औरत बिके
मदर टेरेसा मार्ग पर इज्ज़त लुटे
ये सड़कें बड़ी धर्म- निरपेक्ष हैं
ये सड़कें बड़ी धर्म- निरपेक्ष हैं
इन सड़कों में सर्व-धर्म समभाव है
इन सड़कों को मत बांटो
गाँधीवादियों के लिए
श्रद्धालुओं के लिए
भिखारियों के लिए
इन्हें तो बस रहने दो
आम आदमियों के लिए
रचना जी
जवाब देंहटाएंसड़क के बहाने अपने औरत पर हो रहे अत्याचारों के साथ ही समाज में व्याप्त बुराइयों पर प्रकाश डाला है .अच्छी रचना है , रचना जी .
प्रशंनीय हैं रचना के भाव। सुन्दर भाव-शब्द संयोजन।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
कविता के बहाने बहुत गहरी बातें कह गई आप।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना।
बहुत ही सराहनीय प्रस्तुति,सुन्दर शब्द रचना ।
जवाब देंहटाएंkavitaa meiN insaan ke mano-bhaav ki jhalak bhi nazar aa rahi hai,,,aur,,,,aapki daarshnik soch bhi,,,ek kaamyaab koshish par badhaaee svikaareiN
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंसड़क के माध्यम से आपने धर्मनिर्पेक्षता का अच्छा पाढ़ पढ़ाया है।
SADAK KE BAHAANE AAPNE SACH BAYAAN KAR DIYA IS LAJAWAAB RACHNA MEIN ... BAHUT KHOOB ...
जवाब देंहटाएं"मंदिर मार्ग पर जाने वाला हर इन्सान मंदिर नहीं जाता
जवाब देंहटाएंमस्जिद मोड़ पर जाने वाले सिर्फ मस्जिद नहीं जाते ....."
पहली बार आ पाया हूँ आपके ब्लॉग पर. पूर्णतः सहमत हूँ आपके विचारों से.
सड़क पर अब तक पढी सबसे अच्छी रचनाओं में इसे भी गिनूगा. मेरा एक शे'र है:
जवाब देंहटाएंक्या पूछते हो राह यह जाती कहाँ है?
आदमी जाते हैं नादां रास्ते जाते नहीं हैं.
तुमने किसी सड़क को चलते हुए देखा है
जवाब देंहटाएंये सड़क कहाँ जायेगी कभी सोचा है
मंदिर मार्ग पर गाय कटे
मस्जिद मार्ग पर औरत बिके
मदर टेरेसा मार्ग पर इज्ज़त लुटे
ये सड़कें बड़ी धर्म- निरपेक्ष हैं
इन सड़कों में सर्व-धर्म समभाव है
इन सड़कों को मत बांटो
गाँधीवादियों के लिए
श्रद्धालुओं के लिए
भिखारियों के लिए
इन्हें तो बस रहने दो
आम आदमियों के लिए
अत्यंत प्रभावशाली और विचारोत्तेक रचना।
जितनी करुणा और सरलता है आपकी संवेदनशीलता में, उतनी यथार्थपरक दृष्टि और तद्जनित आक्रोश भी है । यह आक्रोश ही संवेदनशीलता को पौरुष देता है। बधाई।
पहली बार आ पाया हूँ आपके ब्लॉग पर. पूर्णतः सहमत हूँ आपके विचारों से.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसबकुछ बाँट देना चाहते हैं सड़क तक नहीं छोड़ते
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक रचना