चश्में
सुबह सवेरे घर से बाहर निकलते ही
चढ़ जाते हैं सबकी आँखों पर
काले चश्में
जितनी ऑंखें उतने चश्में.
उतने ही विचार, सोच, नियत, बदनियत.
चश्में के पीछे
कहीं बाल सुलभ चंचल शरीर, ऑंखें
माँ से आंख मिलाने को डरती,
चश्में के पीछे
कहीं बाल सुलभ चंचल शरीर, ऑंखें
माँ से आंख मिलाने को डरती,
कहीं गली के
मोड़ तक
एक बहन का पीछा करती.
कहीं अपनी प्रेयसी के गालों पर
टिक कर न हटने को मजबूर.
कभी बस एक पल
किसी को देखने को व्याकुल.
पर लक्ष्य बस एक ही.
हम देखते हों और वो देखती न हों
सो आज सुबह होते ही
लाल, नारंगी, सुनहरी ओढ़नी ओढ़े
सूरज के अपने घर से निकली थी धूप.
घर से कुछ दूर आते ही
निकाल फेंकी थी उसने अपनी ओढ़नी.
फिर क्या था
चढ़ गए सबकी आँखों पर चश्में.
हर एक ने बस उसे ही ताका.
जितनी ऑंखें उतने चश्में
उतने ही विचार, सोच, नियत, बदनियत
पर लक्ष्य बस एक ही
हम देखते हों और वो देखती न हों.
महतारी दिवस की बधाई
जवाब देंहटाएंये काला चश्मा भी मुआ , अच्छी बुरी दोनों नज़रों को छुपाने का काम करता है ।
जवाब देंहटाएंलेकिन लगाने वाले के चेहरे को भी तो निखार देता है ।
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
जितनी आँखें उतने चश्मे ... उतनी दृष्टि, उतने तर्क
जवाब देंहटाएंआँखों की दूसरी ओर की दुनिया..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना.....
जवाब देंहटाएंकमाल है!!
जवाब देंहटाएंचश्मे बद्दूर अब हो गया चश्मे से दूर
जवाब देंहटाएंअपने-अपने चश्में से लोग दुनिया देखते हैं, और देखने वाला अपने-अपने ढंग से चश्मे को ... जैसे इस गीत में नयिका उसे सौतन मानती है
जवाब देंहटाएं“सौतन चश्मा बीच में आए नैन मिले कैसे ..
रूठे-रूठे पिया, मनाऊं कैसे?”
बहुत सुन्दर व प्रभावपूर्ण रचना....्मातृ दिवस की शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंआपकी रचना जितनी बार पढिए, लगता है पहली बार पढ रहा हूं।
जवाब देंहटाएंमातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.....!!!
जितनी ऑंखें उतने चश्में
जवाब देंहटाएंउतने ही विचार, सोच, नियत, बदनियत
पर लक्ष्य बस एक ही
हम देखते हों और वो देखती न हों.
क्या बात है रचना जी!! बहुत खूब.
काला चश्मा काम का है....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
वाह.......................
जवाब देंहटाएंक्या पारखी नज़र है....
:-)
सादर
चश्मे के माध्यम से सोच और नीयत की बात बखूबी रखी गई है ...बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंकाला चश्मा का महत्व...प्रभावशाली रचना.
जवाब देंहटाएंआँख में पानी नहीं काला चश्मा देखा!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सशक्त लेखन ...आभार ।
जवाब देंहटाएंहर किसी का अपना अपना चश्मा देखने के लिए ... अपनी अपनी नज़र छुपाने के लिए ...
जवाब देंहटाएंहर किसी का अपना अलग ही चश्मा हैं ...
जवाब देंहटाएंचश्मे के पीछे से देखने का अपना अलग मज़ा हैं ....सामने वाले की सोच और आँखे पढ़ने का मौका मिल जाता हैं .....
बेहद सटीक लेखन ...आभार
सुंदर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंजितनी आँखें उतने चश्मे ...... प्रभावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंहलके शब्दों में बहुत ही गहन बात कही आपने... सुन्दर!
जवाब देंहटाएंसादर,
मधुरेश
'कुछ भी' लिख देने से बढ़ कर सृजन के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंजितनी ऑंखें उतने चश्में
जवाब देंहटाएंउतने ही विचार, सोच, नियत, बदनियत
पर लक्ष्य बस एक ही
हम देखते हों और वो देखती न हों.
आपने एक सच्चाई को बहुत गहराई से खोज निकाला है।
Nice post... Chashme par padhi gayi ab tak sabse alag kavita...
जवाब देंहटाएंsab kale chashme ka kamaal hai jiske peechhe se sab kuchh dikhe par vo dekh kya raha hai vo na dikhe . sunder prastuti.
जवाब देंहटाएंऊपर से सरल पर अर्थ ..गहरे तक वार करती हुई...सुन्दर रचना के लिए बधाई..
जवाब देंहटाएंsahi bat ...
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