मंजिलें
कैद हैं आज भी वो मंज़र इन नज़ारों में,
जब हम भी गिने जाते थे प्यारों में.
हँसते हंसाते खिलखिलाते याद आते थे,
कभी हम भी सबको बहारों में.
अपने कांधों पे उठाये अपनी ही टहनियां,
खड़े हैं कितने ही दरख़्त कतारों में.
उड़ती है धूल, ओढ़ लेते हैं धूल की चादर,
फिर भी खड़े हैं वो आज तलक राहों में.
आ गया पतझड़, रूकती नहीं धूप तक उनसे,
शुमार हो गए वो भी, मेरी तरह बेचारों में.
रूठ जाती है, अब तो मंजिलें भी हमसे,
शिकवे भी करती हैं हमसे इशारों में
सिखा मुझको मर के जीने का हुनर, ऐ दरख़्त!
डरती हूँ, गिनी जाने से मैं बेसहारो में.
मरते हैं यहाँ लोग रोज, न जाने कितने,
मर के भी जीता है कोई एक हजारों में.
यूँ तो जिगर छलनी, कई बार हुआ मेरा,
शामिल नहीं हूँ फिर भी अश्कबारों में.
यहाँ दूर तलक कोई अपना नहीं मिलता यारों,
आओ लौट चलें, बसें फिर एक बार तारों में.
बढ़िया रचना. खासकर
जवाब देंहटाएं"यूं तो जिगर छलनी ,कई बार हुआ मेरा
शामिल नहीं हूँ फिर भी अश्क्बारों में"
शुभ कामनाएं .
यहाँ दूर तलक कोई अपना नहीं मिलता यारों,आओ लौट चलें, बसें फिर एक बार तारों में.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना ...
धन्यवाद
अपने कांधों पे उठाये अपनी ही टहनियां,
जवाब देंहटाएंखड़े हैं कितने ही दरख़्त कतारों में.
आ गया पतझड़, रूकती नहीं धूप तक उनसे,
शुमार हो गए वो भी, मेरी तरह बेचारों में.
मरते हैं यहाँ लोग रोज, न जाने कितने,
मर के भी जीता है कोई एक हजारों में.
जज़्बात खूबसूरती से कहे हैं ...बहुत खूबसूरत गज़ल
अपने कांधों पे उठाये अपनी ही टहनियां,
जवाब देंहटाएंखड़े हैं कितने ही दरख़्त कतारों में.
मरते हैं यहाँ लोग रोज, न जाने कितने,
मर के भी जीता है कोई एक हजारों में
बहुत सुन्दर ।
प्रकृति से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है ।
मर के जीता है यहाँ कोई हज़ारों में। वाह, बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंआदरणीय रचना दीक्षित जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
कई बार हुआ मेरा,शामिल नहीं हूँ फिर भी अश्कबारों में. यहाँ दूर तलक कोई अपना नहीं मिलता यारों,आओ लौट चलें, बसें फिर एक बार तारों में.
.आखिरी पंक्तियाँ तो बस आश्चर्यजनक रूप से कमाल हैं .बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना.
आप बहुत सुंदर लिखती हैं. भाव मन से उपजे मगर ये खूबसूरत बिम्ब सिर्फ आपके खजाने में ही हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है रचना जी
जवाब देंहटाएं-----------
बस एक और हो जाये ....
मरते हैं यहाँ लोग रोज, न जाने कितने,
जवाब देंहटाएंमर के भी जीता है कोई एक हजारों में.
बहुत अच्छी रचना...
बेहतरीन!कविता
जवाब देंहटाएंसादर
---------
बापू! फिर से आ जाओ
मरते हैं यहाँ लोग रोज, न जाने कितने,
जवाब देंहटाएंमर के भी जीता है कोई एक हजारों में ...
बहुत खूब ... बहुत ही लजवाब रचना है ... जिंदादिली काम आती है इस जिंदगी में ...
अपने कांधों पे उठाये अपनी ही टहनियां,
जवाब देंहटाएंखड़े हैं कितने ही दरख़्त कतारों में।
वाह, बहुत बढ़िया। अच्छी कल्पना।
इस सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई रचना जी।
अपने कांधों पे उठाये अपनी ही टहनियां,
जवाब देंहटाएंखड़े हैं कितने ही दरख़्त कतारों में.
हरेक शेर लाज़वाब..बहुत सुन्दर गज़ल..
101 follwers ki badhai......
जवाब देंहटाएंकोमल भावों को सँजोये यह रचना हृदय को छूती है और एक ऐसी यात्रा का आनंद प्रदान करती है जिससे हर कोई जीवन में कभी न कभी दो चार होता ही है!!
जवाब देंहटाएंअपने कांधों पे उठाये अपनी ही टहनियां,
जवाब देंहटाएंखड़े हैं कितने ही दरख़्त कतारों में.
shandaar rachna
मरते हैं यहाँ लोग रोज, न जाने कितने,
जवाब देंहटाएंमर के भी जीता है कोई एक हजारों में
बेहद सुंदर ..... खूब
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (31/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
उड़ती है धूल, ओढ़ लेते हैं धूल की चादर,फिर भी खड़े हैं वो आज तलक राहों में. आ गया पतझड़, रूकती नहीं धूप तक उनसे,शुमार हो गए वो भी, मेरी तरह बेचारों में. रूठ जाती है, अब तो मंजिलें भी हमसे,शिकवे भी करती हैं हमसे इशारों में सिखा मुझको मर के जीने का हुनर, ऐ दरख़्त!डरती हूँ, गिनी जाने से मैं बेसहारो में. मरते हैं यहाँ लोग रोज, न जाने कितने,मर के भी जीता है कोई एक हजारों में.
जवाब देंहटाएंएक एक पंक्ति बहुत खूबसूरती से लिखी गयी है -
जीवन के अनुभवों का एहसास कराती सुंदर रचना -
बहुत अच्छी रचना ...शुभ कामनाएं .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
मरते हैं यहाँ लोग रोज, न जाने कितने,
जवाब देंहटाएंमर के भी जीता है कोई एक हजारों में
बहुत सुन्दर रचना है.... रचना जी
आशा में निराशा और निराशा में आशा ,दोनों चित्रण दिखा इस रचना में.
जवाब देंहटाएंखूब है.
अपने कांधों पे उठाये अपनी ही टहनियां,
जवाब देंहटाएंखड़े हैं कितने ही दरख़्त कतारों में.
आ गया पतझड़, रूकती नहीं धूप तक उनसे,
शुमार हो गए वो भी, मेरी तरह बेचारों में.
मरते हैं यहाँ लोग रोज, न जाने कितने,
मर के भी जीता है कोई एक हजारों में.
bahut bahut bahut hi achchhi rachna ,rachna ji ki ,man ko chhoo gayi .
मरते हैं यहाँ लोग रोज, न जाने कितने,
जवाब देंहटाएंमर के भी जीता है कोई एक हजारों में.
अपने जज्बातों को बहुत सार्थक तरीके से पेश किया है आपने ..पूरी रचना अर्थपूर्ण है ..शुक्रिया आपका
मरते हैं यहाँ लोग रोज न जाने कितने
जवाब देंहटाएंमर के भी जीता है कोई एक हजारों में
बहुत सुन्दर ..
अपने कांधों पे उठाये अपनी ही टहनियां,
जवाब देंहटाएंखड़े हैं कितने ही दरख़्त कतारों में.
वाह जी, क्या बात है ... बहुत सुन्दर पंक्तियाँ है !
भाव अपने प्रवाह में बहाते रहे और मैं आपके शब्दों पर अपनी अनुभूतियों को सजाता रहा इसलिए गज़ल मुझे मेरे बहुत करीब लगी.
जवाब देंहटाएंसंदेशों का पिटारा - बहुत सुंदर. बहुत से पाठकों ने अपनी-अपनी पसंद की पंक्तियाँ को दर्शाया है इसलिए में भी "खुद्दारी की प्रतीक" इन पंक्तियों को अपनी पसंद बताना चाहूँगा.
जवाब देंहटाएं"सिखा मुझको मर के जीने का हुनर, ऐ दरख़्त!
डरती हूँ, गिनी जाने से मैं बेसहारो में"
मरते हैं यहाँ लोग रोज, न जाने कितने,
जवाब देंहटाएंमर के भी जीता है कोई एक हजारों में.जज़्बात बहुत खूबसूरत,बहुत अच्छी लगी आपकी
ये कल्पना।..
मरते हैं यहाँ लोग रोज, न जाने कितने,
जवाब देंहटाएंमर के भी जीता है कोई एक हजारों में.
बहुत अच्छी रचना ...
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंयहाँ दूर तलक कोई अपना नहीं मिलता यारों,
जवाब देंहटाएंआओ लौट चलें, बसें फिर एक बार तारों में.
रचना जी कोमल भावों से बुनी यह रचना उस तलाश को तलाशती प्रतीत होती है जो अब जीवन केलिये जरूरी हो गया है.भौतिकता की चका-चौंध में खोये अपनेपन की तलाश का बहुत ही मर्मस्पर्शी चित्रण है.
bahut sunder rachna haai
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई!
जवाब देंहटाएंमंगल कामना के साथ.......साधुवाद!
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
अपने कांधों पे उठाये अपनी ही टहनियां,
जवाब देंहटाएंखड़े हैं कितने ही दरख़्त कतारों में
वाह,रचना जी,
संवेदना की गहन अनिभूति होती है इन पंक्तियों को पढ़कर !
गहरे भाव से भरी हुई प्रस्तुति के लिए साधुवाद
बहुत सुंदर रचना, बधाई।
जवाब देंहटाएं"यहाँ दूर तलक कोई अपना नहीं मिलता यारों,
जवाब देंहटाएंआओ लौट चलें, बसें फिर एक बार तारों में."
भावपूर्ण कविता.
bahut badhiya lagee aapki rachana !!
जवाब देंहटाएंbahut badhiya lagee aapki rachana !!
जवाब देंहटाएंअपने कांधों पे उठाये अपनी ही टहनियां,
जवाब देंहटाएंखड़े हैं कितने ही दरख़्त कतारों में.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें
rachna ji itne din net se door rahne ke karan apki koi rachna padh nahi payi maafi chaahti hun.
जवाब देंहटाएंbahut samvedansheel rachna likhi hai.
सिखा मुझको मर के जीने का हुनर, ऐ दरख़्त!
डरती हूँ, गिनी जाने से मैं बेसहारो में
ye panktiya sach me bahut hi gazab hai.
badhayi.
ऐ दरख़्त!डरती हूँ, गिनी जाने से मैं बेसहारो में
जवाब देंहटाएंbahut khoob