अंधियारा
मैं अपने घर के आसपास
देखती हूँ
सफ़ेद उजले
कहीं सुनहरे कही रुपहले
बड़े बड़े घर
हर तरफ उजाला
हर तरफ ख़ुशी
कैसे सहेजे रहते हैं ये
इतना उजाला
इतनी ख़ुशी
कल पूरब में
तेज रौशनी के बीच
सूरज की एक खिड़की खुली थी
देखा
दूर फर्श पर
एक कोने में
कैद अंधियारा सुबक रहा था.
पहली बार कहीं अंधियारे के लिए कोई कविता पढ़ी है...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
एक कोने में
जवाब देंहटाएंकैद अंधियारा सुबक रहा था.
chup karaya kya ? siskiyaan band nahin hoti , main aaun ?
Raushni ka yehi to khel hai isme har koi sukh ki chhaya sath le k chalte huye dikhta h.. asli mann stithi to andhiyaare me hi prakat hoti h.. sundar kavita,hamesha ki tereh :)
जवाब देंहटाएंसूरज की खिडकी खुली ..फिर अँधियारा का अस्तित्व कहाँ ? तभी बेचारा रो रहा होगा .....लेकिन रोशनी का एहसास भी तो तभी होता है जब अँधेरे के एहसास से गुज़रे हों ....अच्छी और सोचने पर मजबूर करती रचना ...
जवाब देंहटाएं... bhaavpoorn rachanaa !!!
जवाब देंहटाएंसुंदर चित्र के साथ बहुत ही सुंदर कविता. गहरे जज्बात भरे है
जवाब देंहटाएंवाह.........शानदार कविता
जवाब देंहटाएंअँधियारे का यूँ ही दुबक जाना। वाह।
जवाब देंहटाएंआपने देख ही लिया. बधाई
जवाब देंहटाएंअँधेरे को तो कैद में ही रहना चाहिए .... अछा लिखा है ..
जवाब देंहटाएं.
जीवन में अँधियारा न हो तो उजाला क्या है ये समजह कैसे आएगा ?
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना !
बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंandhere par kavita.. achhi lagi.. naya vimb hai.. man ke bhitar kaa andhiyaara kai baar priy lagta hai.. uske liye samvedna bhi jagti hai.. bhetareen poetry
जवाब देंहटाएंमन के भीतर छुपा अंधियारा कितने ही सूरज उग जायें तब भी दूर नही होता वो तो इसी तरह सिसक रहा होता है।
जवाब देंहटाएंबड़ी बड़ी अट्टालिकाओं की धूप में दम तोड़ते अंधेरे झोंपड़े आपकी कविता की तरह लगते हैं..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना!!
सोचने पर विवश करती कविता.अभी भी मष्तिष्क में घूम रही है
जवाब देंहटाएंएक
जवाब देंहटाएंकोने में कैद
अंधियारा सुबक रहा था.
प्रकाश को देख कर अँधेरे का सुबक जाना ...सही बिम्ब प्रयोग किया है ....अर्थपूर्ण रचना
जीवन में धूप छाँव , उजाला अँधेरा , फिज़ा और खिज़ा --साथ साथ ही चलते हैं ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ।
rachna ji
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar. abhi tak ujala hi ujala,ujale aur andhere me ladai padhi v likhi thi par aaj andhere par ujale ki jeet dekh rahi hun.
ek vicharniy post bhi.
poonam
बहुत अच्छी लगी इस कविता की भाभिव्यक्ति। अंधेरे के प्रति कहीं न कहीं कवयित्री के मन में दया भाव है।
जवाब देंहटाएंउजियारे के लिए अँधेरे को तो दुबकना ही होगा ....!
जवाब देंहटाएंअंधेरो से प्यार होना एक नई बात है.. नया विम्ब है.. अच्छी लगी रचना..
जवाब देंहटाएंदेखादूर फर्श पर एक कोने में कैद अंधियारा सुबक रहा था.
जवाब देंहटाएं..........
सूरज के होते अँधेरे का क्या काम . आशा का विम्ब लिए रोचक कविता शुभकामना .
वाह! कविता मन के उस कोने तक भी पहुंची जहाँ एक छोटा सा अंधियारा न जाने कब से सुबक रहा था !
जवाब देंहटाएंबधाई हो, अच्छी अभिव्यक्ति!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
देखा
जवाब देंहटाएंदूर फर्श पर
एक कोने में
कैद अंधियारा सुबक रहा था.
बहुत खूब। सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।
अँधेरे का जीवंत वर्णन किया है आपने. साधुवाद
जवाब देंहटाएंआपका स्वागत रहेगा
http://arvindjangid.blogspot.com/
धन्यवाद.
आपकी कविता कुछ सोंचने के लिए मजबूर कर रही है। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंसूरज की खिड़की खुले तो अंधियारे को सिसकना ही है। सकारात्मक सोच।
जवाब देंहटाएंदूर फर्श पर
जवाब देंहटाएंएक कोने में
कैद अंधियारा सुबक रहा था
उफ्फ! सटीक व्यंग्य नकली आधुनिकता के पीछे दौड़ती भयावह मानसिकता की साच्चाई पर| बधाई रचना जी|
गहन अनुभूति से पूर्ण एक सुन्दर भावमयी रचना..
जवाब देंहटाएंगहन अनुभूति से पूर्ण एक सुन्दर भावमयी रचना..
जवाब देंहटाएंujale me andhera kahin chhupkar royega hi..
जवाब देंहटाएं'itni uzala'ki jagah 'itna ujala'
kar den..
achchhi post.
suraj ki khidki ka koi jod nahin .
जवाब देंहटाएंहा...हा..हा...हा...अंधियारे की यही तो नियति है....सूरज निकलते ही सिमट जाना....चाहे वो बाहर का हो....या मन के भीतर का.....खैर आपकी कविता अच्छी बन पड़ी है.....!!
जवाब देंहटाएंकहीं न कहीं, खुशियों के बीच कसक होती है तो यही अभिव्यक्ति उभरेगी रचना जी !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी अभिव्यक्ति ! पता नहीं क्यों यह अधिक पसंद आई !
यही तो रोशनॊ का कमाल है ! अच्छी कविता ! मैं आप को फ़ोलो कर रह हूं ! कृप्या म्रेरे ब्लोग पर आ कर फ़ोलो करें व मर्ग प्रशस्त करे !
जवाब देंहटाएंदेखा
जवाब देंहटाएंदूर फर्श पर
एक कोने में
कैद अंधियारा सुबक रहा था.
बहुत खूब ....
सूरज के पास इतनी ताकत तो है कि वो अंधियारे कैद कर ले ....!!
सुंदर रचना ,,,भाव मयी
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर भी पधारे
http://babanpandey.blogspot.com
नया ब्लॉग देखकर भूलजाना नहीं अच्छा।
जवाब देंहटाएंaapkee lekhan kshamata ko naman..........
जवाब देंहटाएंbahut badiya........
रचना जी बहुत सुंदर कविता है
जवाब देंहटाएंबिम्बोँ को बहुत ही खूबसूरती से चित्रित किया है । रचना जी बहुत ही लाजबाव है आपकी रचना। आभार जी ।
जवाब देंहटाएंदेखा
जवाब देंहटाएंदूर फर्श पर
एक कोने में
कैद अंधियारा सुबक रहा था.
बिलकुल अलग सी सोच है...बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति
कल यानी १७ - १२ २०१० को आपकी यह सुन्दर कविता चर्चामंच पर होगी.. आपका आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सूक्ष्म भाव संजोया है आपने
जवाब देंहटाएंअंतिम पंक्तियों से सारी सोच ही बदल गयी. बहुत ही अच्छी कविता!
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत उम्दा रचना
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