आशा
तिमिरपान कर लेती हूँ जब, चिमनी सा जी जाती हूँ
आँखों में भर जाए समंदर तो, मछली सा पी आती हूँ
सर सर सर सर चले पवन जब खुशियाँ मैं उड़ाती हूँ
शब्दों के तोरण से कानों में घंटे घड़ियाल बजाती हूँ
अंतस की सोई अगन को मध्धम मध्धम जलाती हूँ
मूक श्लोक अंजुरी में भर कर नया संकल्प दोहराती हूँ
तिमिरपान कर लेती हूँ जब, चिमनी सा जी जाती हूँ
आँखों में भर जाए समंदर तो, मछली सा पी आती हूँ
जीवन के इस हवन कुण्ड में अपने अरमान चढ़ाती हूँ
क्षत विक्षत आहत सी सांसें कहीं कैद कर आती हूँ
भूली बिसरी बातों पर फिर नत मस्तक हो जाती हूँ
आशा की पंगत में बैठे जो उनका दोना भर आती हूँ
तिमिरपान कर लेती हूँ जब, चिमनी सा जी जाती हूँ
आँखों में भर जाए समंदर तो, मछली सा पी आती हूँ
हिचकी या सिसकी हो कोई उसको थपकी दे आती हूँ
शूलों की पदचापों पर फिर अपना ध्यान लगाती हूँ
घावों में भर जाय नमक तो खारा जल भर आती हूँ
पीड़ा में पीड़ा को भर कर पीड़ा कम कर आती हूँ
तिमिरपान कर लेती हूँ जब, चिमनी सा जी जाती हूँ
आँखों में भर जाए समंदर तो, मछली सा पी आती हूँ
पीड़ा में पीड़ा को भर पीड़ा कम आती हूँ...........
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर रचना जी.....
बहुत पसंद आयी मुझे......
सादर
अनु
आशा में जीने के लिये निराशा के क्षणों को पीना पड़ता है...बहुत ही सुन्दर कविता..
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत सुंदर कविता ..... बेहतरीन शब्द संयोजन के साथ कही अंतर्मन की बातें ....
जवाब देंहटाएंआशा, आस्था और विश्वास.. जीवन के हर रूप को सहज ग्रहण करना और उसका सामना करना.. एक फाइटर की तरह.. बहुत ही प्रेरक कविता.. अनोखी हमेशा की तरह!!
जवाब देंहटाएंजीवन के इस हवनकुंड में अपने अरमान को जलाकर ही तो हम दी रहे हैं। दिल को छूता सुंदर गीत।
जवाब देंहटाएंपीड़ा से पीड़ा हरे, वह प्राणान्तक पीर ।
जवाब देंहटाएंवाह मीन तू धन्य है, परहित धरा शरीर ।
परहित धरा शरीर, चाहिए थोडा सा जल ।
रहे कर्मरत सदा, बने दूजे का सम्बल ।
रचना आश-भरोस, खाय इक जल का कीड़ा ।
करे दान सर्वांग, सहे परहित यह पीड़ा ।।
हिचकी या सिसकी हो कोई उसको थपकी दे आती हूँ
जवाब देंहटाएंशूलों की पदचापों पर फिर अपना ध्यान लगाती हूँ
घावों में भर जाय नमक तो खारा जल भर आती हूँ
पीड़ा में पीड़ा को भर कर पीड़ा कम कर आती हूँ .... अच्छी मनोभिव्यक्ति
behad sunder.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंरचना बहन ... सुंदर .. आपकी लेखनी .. धीरे -धीरे सार्ग्र्विह्त होती जा रही है ... जय हो
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शब्द संयोजन के साथ कही अंतर्मन की बातें .
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत सुंदर कविता रचना जी ...
जवाब देंहटाएंधधक धधक जले मन की ज्वाला थोड़ा कागज़ रंग लेता हूँ
जहां पीड़ा में परपीड़ा दे दिखाई स्वयं का आचमन कर लेता हूँ
आशा और निराशा के बीच झूलती बहुत उत्कृष्ट भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंघावों में भर जाय नमक तो खारा जल भर आती हूँ
जवाब देंहटाएंपीड़ा में पीड़ा को भर कर पीड़ा कम कर आती हूँ ..
वाह! जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!!
जवाब देंहटाएंनिशब्द हूँ आपकी अद्धभुत अभिव्यक्ति पर !!
बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंअति उत्तम....
:-)
पीड़ा में पीड़ा को भर कर पीड़ा कम कर आती हूँ...
जवाब देंहटाएंजीवन में आशा को जगाती सुंदर रचना !
शुभकामनाये!
बहुत खूब .
जवाब देंहटाएंनिराशा के पलों में आशावादी होकर सोचना ही जीने का सलीका सिखाता है.
पीड़ा को पीड़ा में भरके ,
जवाब देंहटाएंपीड़ा कम कर आती हूँ .
रविवार, 28 अक्तूबर 2012
तर्क की मीनार
http://veerubhai1947.blogspot.com/
पीड़ा को पीड़ा में भरके ,
जवाब देंहटाएंपीड़ा कम कर आती हूँ .
रविवार, 28 अक्तूबर 2012
तर्क की मीनार
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पीड़ा को पीड़ा में भरके ,
जवाब देंहटाएंपीड़ा कम कर आती हूँ .
रविवार, 28 अक्तूबर 2012
तर्क की मीनार
http://veerubhai1947.blogspot.com
भाव अर्थ और संगीत की त्रिवेणी है यह गीत .पूर्ण अन्विति लिए परस्पर .
bahut hu prabhavshali rachana ....kahi na kahin nari jeevan ki peeda ko byan karti kavita sajeev ho uthati hai .....abhar Rachana ji .
जवाब देंहटाएंआशा में जीयो निराशा को पीयो..बहुत सुन्दर..रचना..
जवाब देंहटाएंवाह जी बढ़िया
जवाब देंहटाएंजीवन को संघर्ष-पथ पर संकटों का हंस कर सामना करने का भाव जगाती कविता अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर रचना, रचना जी... :))
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जवाब देंहटाएंपीड़ा में पीड़ा को भर कर पीड़ा कम कर आती हूँ ..
बहुत खूब कहा है आपने ...
बेहद सुन्दर कविता ,रचना जी
जवाब देंहटाएंjabardast rachna....
जवाब देंहटाएंdin p din shamsheer ki dhaar tej hoti ja rahi hai....kya baat hai ji ?
badhayi. :-)
बेहतरीन शब्द संयोजन के साथ२ भावपूर्ण सुंदर कविता,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST LINK...: खता,,,
भाव उबाल राग विराग को दिशा बोध कराती रचना।बधाई . मद्धम मद्धिम ,मध्धम ?
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपकी बहुमूल्य टिपण्णी के लिए .
हिचकी या सिसकी हो कोई उसको थपकी दे आती हूँ शूलों की पदचापों पर फिर अपना ध्यान लगाती हूँ घावों में भर जाय नमक तो खारा जल भर आती हूँ पीड़ा में पीड़ा को भर कर पीड़ा कम कर आती हूँ
जवाब देंहटाएंतिमिरपान कर लेती हूँ जब, चिमनी सा जी जाती हूँ आँखों में भर जाए समंदर तो, मछली सा पी आती हूँ
बहुत सुंदर कविता ....
वाह बेहद गंभीर और सटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंसुन्दर एहसास से भरी बेहतरीन रचना |
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग में भी पधारें |
मेरा काव्य-पिटारा
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, एहसास हो तो गहराई होती ही है ....
जवाब देंहटाएं, मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
धन्यबाद आपका.
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