तन्हाई
कभी फुर्सत में देखती हूँ
अपने घर से
पीछे वाले घर की
एक विधवा दीवार.
तनहा
अधमरा पलस्तर
दरकिनार हो चुका उससे.
शांत, उदास, मायूस
अपने साथ जुड़े घर की तरह.
मिलने जुलने वालों में,
दुख बाँटने वालों में
बची है तो बस
एक हवा और धूप.
देखती हूँ
अचानक बरसात के बाद
घर का तो पता नहीं
पर दीवार बहुत खुश है.
नए मेहमान जो आये हैं
कुछ नन्ही पीपल की कोपलें,
नन्ही मखमली काई
और फिर
उनसे मिलने वाले नए आगंतुक
तितली, चींटीं, कीड़े, मकोड़े,
कुछ उनके अतिथि
गौरय्या, कबूतर
और न जाने कौन कौन ...
खूब चहल पहल है.
घर का तो पता नहीं
पर हाँ! दीवार बहुत खुश है.
सोचती हूँ
पर कितने दिन ....
खूब चहल पहल है.
जवाब देंहटाएंघर का तो पता नहीं
पर हाँ! दीवार बहुत खुश है.
सोचती हूँ
पर कितने दिन
दीवारों का खुश होना... यह प्रतीक अच्छा लगा।
बहुत अच्छी कविता।
धन्य-धन्य यह मंच है, धन्य टिप्पणीकार |
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति आप की, चर्चा में इस बार |
सोमवार चर्चा-मंच
http://charchamanch.blogspot.com/
यह कविता कल्पना का अप्रतिम उदाहरण है। ऐसे सृजन पढ़ के अच्छा लगता है। तभी तो लिखा था
जवाब देंहटाएंकवि की नज़र से बच सका हो, कौन सा वो मर्म है।
दीवाल को ले कर बहुत सुंदर कथ्य, उस के मेंहमानों का अद्भुत विवेचन। और अंत में 'कितने दिन' के माध्यम से शासवत सत्य का सुंदर निरूपण।
बहुत बहुत बधाई।
बहुत ही सुंदर ... बहुत प्रभावित करती हुई प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना, प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें .
जवाब देंहटाएंदीवार भी चहल पहल चाहती है।
जवाब देंहटाएंदीवार खुश है , मगर घर के पतन की दास्ताँ सुना रही है ।
जवाब देंहटाएंकाश उस घर में भी ऐसे ही ख़ुशी होती !
नजदीक से जांची परखी सुन्दर प्रेक्षण ।
दीवार की प्रसन्नता ..अद्भुत मेहमानों से ... साधारण सी बात से असाधारण बात कह जाना ... इंसान के मन की तन्हाई में तो चींटी ..कीड़े मकौड़े भी नहीं आते ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना ! शुभकामनाएं ...
जवाब देंहटाएंदीवार के बिम्ब का सुन्दर प्रयोग किया है और ज़िन्दगी की सच्चाई को सुन्दरता से उकेरा है एक प्रश्नचिन्ह के साथ्।
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता
जवाब देंहटाएंआपकी कल्पना को दाद देता हूँ
"यह रचना कल्पना की, अद्भुत एक उड़ान.
जवाब देंहटाएंकहाँ पहुच सकता नहीं, एक कवी का गान"
बिम्बों और प्रतीकों का क्या मनमोहक प्रयोग किया है आपने...
सादर बधाई...
रचना जी, फिर से बेमिसाल रच दिया है..बधाई.
जवाब देंहटाएंएक विधवा दीवार.
जवाब देंहटाएंतनहा
अधमरा पलस्तर
दरकिनार हो चुका उससे.
शांत, उदास, मायूस
अपने साथ जुड़े घर की तरह.
सुन्दर रचना
बहुत ही खुबसूरत रचना ...
जवाब देंहटाएंये चहल-पहल ही ज़िन्दगी में ख़ूबसूरती भरती है।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रतीक!
जवाब देंहटाएंजब कोई साथ नहीं देता है तब तन्हाई साथ देती है.
जवाब देंहटाएंआपकी कविता बहुत सुन्दर है.
रचना जी,अपने नाम के अनुरूप ही 'तन्हाई,की रचना की है मुझे बहुत अच्छी लगी,बधाई... फालोवर बन गया हूँ,फुर्सत निकाल कर कभी मेरे पोस्ट पर आइये स्वागत है....
जवाब देंहटाएंघर की दीवारें खुश होती हैं, बतियाती हैं और आपकी कविता में तो कुछ अधिक ही भावपूर्ण वार्त्तालाप होता है उनका!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना!!
एक विधवा दीवार का नियति से सामंजस्य ,बिल्कुल ही नये प्रतिबिम्ब.बहुत ही अभिनव कल्पना.
जवाब देंहटाएंRachna.. sahi hi naam h aapka.. rachne ki adbhut kshamta.. aur us se bhi zyada mehsoos karne ki.. har baar ek hi baat likhti hu magar padh kar bas yehi khayaal aata h k aap behad alag hain... hamesha ki tereh lajawab kar dene wali kavita...
जवाब देंहटाएंओह!! क्या क्या देख लेती है आपकी नज़र...हर चीज़ को एक नया अर्थ मिल जाता है..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!!
jahan n pahunche ravi....wahan - pramaan hi hai n ye
जवाब देंहटाएंयही है कवि दृष्टि, धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंदीवार का अद्भुत मानवीकरण किया है आपने
जवाब देंहटाएंMy Blog: Life is Just a Life
My Blog: My Clicks
.
@
जवाब देंहटाएंसोचती हूँ पर कितने दिन ....
वाकई दिन सीमित हैं ...
एकाकी जीवन के सुख-दुःख का बहुत ही सजीव वर्णन ...
जवाब देंहटाएंशब्दों का चयन और प्रवाह .....अदभुत
दीवार के अस्तित्व और भावनाओं का उत्कृष्ट चित्रण किया है आपने.
जवाब देंहटाएंआपका ये हौसला_अफज़ाई का अंदाज भी दिल चीर
जवाब देंहटाएंआपका लेखन तो सुन्दर है ही आपके ब्लॉग में भी बहुत कशिश है कुछ हमारा भी मार्गदर्शन कीजिये
हवा और धूप का आना जाना बना रहे तो बस फिक्र किस बात की है... बहुत सुंदर कविता मन को महकाती हुई सी!
जवाब देंहटाएंअहसासों का ताना बाना ... दीवार को बिम्ब बना बहुत ही खूबसूरती से तनहाई को लिखा ...बहुत बढि़या।
जवाब देंहटाएंमायूसी और ख़ुशी स्थायी नहीं होती !
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं !
संदेश तो काफी गूढ दिया है इस कविता के माध्यम से।
जवाब देंहटाएंउतार चढाव और उहापोह ..
जवाब देंहटाएंअनिश्चित भविष्य को इंगित करती सुन्दर रचना
सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंगहरे भाव।
आभार..............
अनुपम एवं अद्भुत कल्पना है रचना जी ! 'जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि'! आपने इसे चरितार्थ कर दिया है ! दीवार के प्रतीक के साथ एकाकीपन, उपेक्षा और उदासी तथा फिर बरसात के बाद आये सामयिक परिवर्तनों से मिलने वाली खुशी की क्षणभंगुरता को बड़ी संवेदना के साथ उकेरा है ! इतनी सारगर्भित रचना के लिये आपको बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएं♥
जवाब देंहटाएंआदरणीया रचना जी
सस्नेहाभिवादन !
आपकी सूक्ष्म दृष्टि को सलाम और भावुक हृदय को नमन !
संवेदनाओं को वही पहचान सकता है जिसने इन्हें जिया हो …
आपकी इस कविता के संपूर्ण परिवेश के साथ मैं इन पंक्तियों के रचाव के समय आपकी रचनाकार को साक्षात् देख रहा हूं … … …
देखती हूँ अचानक बरसात के बाद
घर का तो पता नहीं पर दीवार बहुत खुश है ,
नए मेहमान जो आये हैं
कुछ नन्ही पीपल की कोपलें,
नन्ही मखमली काई
और फिर उनसे मिलने वाले नए आगंतुक
तितली, चींटीं, कीड़े, मकोड़े,
कुछ उनके अतिथि गौरय्या, कबूतर और न जाने कौन कौन ...
खूब चहल पहल है !
घर का तो पता नहीं पर हाँ! दीवार बहुत खुश है.
सोचती हूँ पर कितने दिन ....
इन मार्मिक संवेदनाओं की अनुभूति में भीग गया हूं …
बेहतरीन रचना के लिए बधाई ! प्रणाम !
मन से दुआ है , ख़ुशी दीवार की हो'कर रह जाए …हमेशा हमेशा के लिए …
आमीन !
दीपावली की अग्रिम बधाई और शुभकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार
bas yahi kahungi shbd aur bhav dono kamal kya baat hai
जवाब देंहटाएंbahut sunder likha hai
ek ek shbd sunder
sochtihoon kab tak...............
kya likha hai
rachana
तनहाई न जाने क्यों नकारात्मक है। मुझे तो भीड़ ही चींटी और कीड़े-मकोड़े सी प्रतीत होती है। एक दिन यही उस अधमरे दीवाल को एकदम से मार डालेंगे।
जवाब देंहटाएंदीवार बहुत खुश है. सोचती हूँ पर कितने दिन .... sach samay kee maar kab kis par pad jaay..
जवाब देंहटाएंbadiya rachna..
बहुत खूब ... इस दिवार की खुशी क्षणिक ही है ... घर से उसका अस्तित्व है ... अच्छा बिम्ब संजय है ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर शेली सुन्दर भावनाए क्या कहे शब्द नही है तारीफ के लिए ....बहुत ही खुबसूरत रचना ...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअदभुद प्रतीकों के प्रयोग से रचना भी अदभुद बन पड़ी है .........
जवाब देंहटाएंरचना जी इस रचना पर टिप्पणी करना अपने बस की बात नहीं है अद्भुत .......
जवाब देंहटाएंएक अलग सोच और नज़ारिया चीज़ों को देखने का.. बेहतरीन लगी यह रचना!
जवाब देंहटाएंतन्हाई किसी बेजान चीज़ को भी हो सकती है.. यह खूब बयां किया है आपने...
आभार
deewaron ko bhi muskura diya apne...sundar rachna
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंलाज़वाब प्रस्तुति. अपने आसपास की दशा जिसे हम अनदेखा करा देते हैं को दर्शाती आपकी सूक्ष्म दृष्टि...निशब्द कर दिया..
जवाब देंहटाएंshabdo ki rachna bahut gahnta aur jiwan ka falasfa liye hai. hamesha ki tarah sunder bimb prteekon ka prayog.
जवाब देंहटाएंWaah.. bahut gahre bhav ukere hain aapne..
जवाब देंहटाएंBadhai..
rachna ji
जवाब देंहटाएंpichhle teen dino se aapke post psr comments daal rahi hun par pata nahi kyon post nahi ho pa raha hai.shayad mere computer me hi koi gadbadi hai.
dekhen punah koshishh kar rahi hun.
aapki is rachna ka to jawab hi nahi hai .kahan se chun -chun kar laati hain itne addhbhut vichaar----
shabdo ka chayan bhi bemisaal
bahut bahut hi achha laga
hardik badhai
vaise bhi aap ki har rachna ek naya hi roop liye hoti hai.
aapki is anupam kriti ke liye hardik badhai
poonam
समय- समय पर मिले आपके स्नेह, शुभकामनाओं तथा समर्थन का आभारी हूँ.
जवाब देंहटाएंप्रकाश पर्व( दीपावली ) की आप तथा आप के परिजनों को मंगल कामनाएं.
कविता में आपका दार्शनिक अंदाज अदभुत अहसास कराता है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
'नाम जप' पर अपने विचार और अनुभव
प्रस्तुत करके अनुग्रहित कीजियेगा.
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जवाब देंहटाएंvery nice writing ma'am...
जवाब देंहटाएंnice metaphor..