रविवार, 26 जून 2011

पहली तारीख

पहली तारीख


"खुश है जमाना आज पहली तारीख है
मीठा है खाना आज पहली तारीख है"
जाने क्यों मेरे जीवन में,
कोई पहली और आखिरी तारीख नहीं होती
तुम्हारा घर, तुम्हारे बच्चे तुम्हारी दुनिया
संभालती हूँ
बस शायद इसलिए
मैं भी उठाना चाहती हूँ
पहली तारीख का सुख
महीने के तीसों दिन
नहीं जानती
इसके लिए हामी भरना या न भरना
कितना मुश्किल होगा
तुम्हारे लिए
पर तुम्हारे आगे ये बात रखना
बेहद मुश्किल है मेरे लिए.
अरे तुम तो पसीने से तर बतर हो गए
डरो नहीं
मैं कोई केकई नहीं.
जो मांग लूंगी राज पाट.
और तुम भी तो
कोई दशरथ नहीं जो
दे ही डालोगे सब कुछ
मैं चाहती हूँ हर दिन
बस कुछ पल कुछ घंटों का एकांत
जहाँ बस मैं मैं और मैं रहूँ
न कोई याद, न कोई रिश्ता, न कोई चाह
ताकि छूं सकूँ, अपने आपको,
झाँकूँ अपने भीतर
महसूस करूँ अपने आपको
और सुनिश्चित करूँ कि
मैं आज भी
इस दुनिया का हिस्सा हूँ.  

64 टिप्‍पणियां:

  1. Rachana jee , aapki rachana ka vishay , prastuti anutha hota hai. likhate rahiya

    जवाब देंहटाएं
  2. अरे भाई, सब कुछ तो आपका ही है |
    पति, परिवार और पे --
    फिर शिकायत क्यूँ इन से--
    सारे जमाने से ||

    हाँ जरुरी है कुछ समय का एकांतवास |
    ताकि हो सके ये एहसास --
    की चल रही है अपनी साँस ||
    पर क्या जानती हैं आप--
    आपके बगैर
    दुश्वारियां बढ़ जाएँगी ढेर |
    इस लिए--
    थोडा जल्दी निकल आइये |
    अब और न डराइये ||

    बहुत-बहुत आशीष ||

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  3. हमारी असलियत बताती यह रचना कटु यथार्थ बताने में समर्थ है !

    जवाब देंहटाएं
  4. अरे वाह! रचना जी, सुन्दर रचना से आपने तो मन ही मोह लिया.आप सचमुच दुनिया का खूबसूरत हिस्सा
    हैं,इसमें कोई संदेह नहीं.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही गहरी तक उतर गयी ये कविता...
    एकांत सभी कोई चाहिए, लेकिन जब अपने साथ हों तो तो उसी में महसूस कर लेना चाहिए की आप उनकी ज़िन्दगी का हिस्सा हैं....

    जवाब देंहटाएं
  6. जहाँ बस मैं मैं और मैं रहूँ
    न कोई याद, न कोई रिश्ता, न कोई चाह
    ताकि छूं सकूँ, अपने आपको,
    झाँकूँ अपने भीतर
    महसूस करूँ अपने आपको
    और सुनिश्चित करूँ कि
    मैं आज भी
    इस दुनिया का हिस्सा हूँ.
    Bada manbhavan khayal hai! Dua kartee hun,aapko haasil ho jaye!

    जवाब देंहटाएं
  7. पहली तारीख के बहाने आपने बहुत कुछ कह दिया। अच्‍छा लगा ये अंदाज भी।

    ---------
    विलुप्‍त हो जाएगा इंसान?
    ब्‍लॉग-मैन हैं पाबला जी...

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  8. स्वयं के बने रहने की ख़बर ही बहुत बड़ी बात है

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  9. मैं चाहती हूँ हर दिन
    बस कुछ पल कुछ घंटों का एकांत
    जहाँ बस मैं मैं और मैं रहूँ...
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गयी!

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  10. सच है ये आपका भी हक है .. पहली तारीख का आनंद लेना ... अपने आप को कभी सिर्क अपना बन ले देखना ...

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  11. रचना जी!

    लाजवाब.. सम्पूर्ण वर्ग का प्रतिनिधित्व करती कविता!! एक प्रश्न जो अनुत्तरित ही रहेगा!!

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  12. एक टीस जो यह सुनिश्चित करना चाहती हो कि वो भी दुनिया का हिस्सा है ... गहन भाव .. अच्छी प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  13. मैं चाहती हूँ हर दिन
    बस कुछ पल कुछ घंटों का एकांत
    जहाँ बस मैं मैं और मैं रहूँ
    न कोई याद, न कोई रिश्ता, न कोई चाह
    ताकि छूं सकूँ, अपने आपको,
    झाँकूँ अपने भीतर
    महसूस करूँ अपने आपको
    और सुनिश्चित करूँ कि
    मैं आज भी
    इस दुनिया का हिस्सा हूँ.
    .... maine bhi yahi chaaha hai

    जवाब देंहटाएं
  14. sirf apne liye samay nikalna behad mushkil hota hai, aksar ekant me bhi apne liye vakt nahin hota...
    bahut achchhi kavita

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  15. रिश्ते नाते , और दुनियादारी को निभाने में मनुष्य स्वयं को भूल ही जाता है ।
    सच है , कोई पल तो चाहिए जब आप अपने साथ हो सकें ।

    जवाब देंहटाएं
  16. मैं चाहती हूँ हर दिन
    बस कुछ पल कुछ घंटों का एकांत
    जहाँ बस मैं मैं और मैं रहूँ
    न कोई याद, न कोई रिश्ता, न कोई चाह
    ताकि छूं सकूँ, अपने आपको,
    झाँकूँ अपने भीतर



    कविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं.... संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...

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  17. मगर सच्ची अभिव्यक्ति!!! बहुत पसंद आई./

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  18. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (27-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  19. बस कुछ पल कुछ घंटों का एकांत
    जहाँ बस मैं मैं और मैं रहूँ
    न कोई याद, न कोई रिश्ता, न कोई चाह
    ताकि छूं सकूँ, अपने आपको

    स्वयं को स्पर्श कर सकूं...
    वाह, कविता का केन्द्रीय भाव बहुत उत्तम है।
    अपने आप से बातें करना भी जरूरी है।

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  20. कुछ नयी सुबह है आज,
    पहली तारीख है।

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  21. सामने लाकर रख दिया ना आइना .....बहुत प्यारी रचना दिल से निकली दिल तक पहुंची

    जवाब देंहटाएं
  22. मैं चाहती हूँ हर दिन
    बस कुछ पल कुछ घंटों का एकांत
    जहाँ बस मैं मैं और मैं रहूँ
    न कोई याद, न कोई रिश्ता, न कोई चाह
    ताकि छूं सकूँ, अपने आपको,
    झाँकूँ अपने भीतर
    महसूस करूँ अपने आपको
    और सुनिश्चित करूँ कि
    मैं आज भी
    इस दुनिया का हिस्सा हूँ
    sunder likha hai shayad hum sabhi ne jeevan ke mod pr kabhi na kabhi ye socha hi hoga
    bahut khoob
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  23. bahut hi anoothi prastuti.yea sach hai kikabhi apne ko jaanane ke liye akant jaruri hotaa hai.achche shabdon ka chayan.badhaai.

    जवाब देंहटाएं
  24. अपने आपको, झाँकूँ अपने भीतर महसूस करूँ
    अपने आपको और सुनिश्चित करूँ कि
    मैं आज भी इस दुनिया का हिस्सा हूँ.

    नारी-मन की गहन अभिव्यक्ति.....

    जवाब देंहटाएं
  25. मैं चाहती हूँ हर दिन
    बस कुछ पल कुछ घंटों का एकांत
    जहाँ बस मैं मैं और मैं रहूँ
    न कोई याद, न कोई रिश्ता, न कोई चाह
    ताकि छूं सकूँ, अपने आपको,
    झाँकूँ अपने भीतर
    गहन भाव लिये ..सशक्‍त रचना ।

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  26. बहुत सच कहा है...बहुत सारगर्भित रचना..बहुत सुन्दर

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  27. महीने के तीस दिनों को नहीं जानती...




    :)

    पहली तारीख का आनद उठाना चाहती हैं सीधे सीधे...

    और पहले वाले ३० दिनों की टेंशन कौन उठाएगा जी...???

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  28. मैं चाहती हूँ हर दिन
    बस कुछ पल कुछ घंटों का एकांत
    जहाँ बस मैं मैं और मैं रहूँ
    न कोई याद, न कोई रिश्ता, न कोई चाह
    ताकि छूं सकूँ, अपने आपको,
    झाँकूँ अपने भीतर
    महसूस करूँ अपने आपको

    बहुत सुंदर भाव हैं...मन की कसक और पीड़ा... साथ ही खुद को जानने की इच्छा....
    बहुत खूबसूरत....

    जवाब देंहटाएं
  29. २६ तारीख़ को पहली तारीख़ की बात, एक पत्नी की मनोदशा का सार्थक चित्रण , बधाई

    जवाब देंहटाएं
  30. कोई पहली और आखिरी तारीख नहीं होती
    तुम्हारा घर, तुम्हारे बच्चे तुम्हारी दुनिया

    क्या बात रचनाजी..... सरल शब्दों में कितनी गहरी बात कही एक आम महिला के जीवन की.....
    निशब्द करते शब्द ....

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  31. सुंदर रचना । अवश्य चाहिये कुछ पल का एकांत अपने लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  32. सचमुच आम जीवन में कोई एक तारीख नहीं होती.... विज्ञापन से बढ़िया बिम्ब ढूँढा है आपने.... बढ़िया कविता...

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  33. जहाँ बस मैं मैं और मैं रहूँ
    न कोई याद, न कोई रिश्ता, न कोई चाह
    ताकि छूं सकूँ, अपने आपको,
    बहुत अच्छा लगता है कभी कभी खुद का खुद के पास लौट आना। जीवन को अलग नज़रिये से देखने पर कई बार जीने के सूत्र मिल जाते हैं। शुभकामनायें।

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  34. मन की टीस को शब्दों के ज़रिए बखूबी उकेरा गया है|सुंदर कविता|

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  35. arey baba ye kya maang liya aapne vo bhi is mehengayi ke jamane me. aapko pata hai kitni khapat hai waqt ki aur vahi maang baithi aap. ch.ch.ch.......NAHIIIIIIII MILEGA JI ye to.....

    kuchh aur maangiye.....vichar kiya jayega.

    ha.ha.ha.
    sunder abhivyakti.

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  36. सच है। न कोई अवकाश, न बोनस और न पहली तारीख!

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  37. पहली तारीख,वाह नया विषय और सुन्दर कविता.

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  38. वाकई. बहुत सुंदर रचना है। कम पढने को मिलती हैं ऐसी रचनाएं।
    शुभकामनाएं

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  39. jhakjhortee see rachana .mujhe to lagta hai insaan chahe to bheed me bhee akelea rah sakta hai.

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  40. बहुत सुंदर रचना है। बहुत सुंदर भाव हैं..

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  41. करीब १५ दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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  42. रोजमर्रा की गहमागहमी में खुद को ढूढने के लिए समय पाना या निकलना सच में दुरूह कार्य हो गया है . सुँदर अभिव्यक्ति ,

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  43. सरल शब्दों में नारी मन को उतारती सुन्दर प्रस्तुति...

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  44. आपकी अनूठी रचनाओं की श्रंखला की एक और कड़ी पढने को मिली - आभार

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  45. मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है.'सीता जन्म' पर आपके सुविचारों की अपेक्षा है.

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  46. बहुत अच्छी रचना की है आपने.thanks

    जवाब देंहटाएं
  47. मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है! मेरा ब्लॉग का लिंक्स दे रहा हूं!

    हेल्लो दोस्तों आगामी..

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  48. मन के अहसास को बहुत
    सार्थक और सटीक शब्द दिए हैं
    एक बहुत अच्छी रचना !

    जवाब देंहटाएं
  49. वाक़ई ये थोड़ा सा एकांत बहुत ज़रूरी है| बिना इस के स्वयं से साक्षात्कार नहीं हो पाता॰ बिना खुद से मिले जीवन में संतुष्टि की प्राप्ति नहीं होती और कोई भी असंतुष्ट व्यक्ति संस्कारों का समुचित हस्तांतरण नहीं कर पाता| गृह लक्ष्मियों को इस की सख़्त ज़रूरत है|

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  50. ताकि छूं सकूँ, अपने आपको,
    झाँकूँ अपने भीतर
    महसूस करूँ अपने आपको
    और सुनिश्चित करूँ कि
    मैं आज भी
    इस दुनिया का हिस्सा हूँ.
    bilkul sach hai ,badhiya likha hai ,lambe samya baad padhna hua achchha laga .

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  51. दिल की गहराईयों को छूने वाली बेहद मर्मस्पर्शी रचना. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  52. मैं कोई केकई नहीं.
    जो मांग लूंगी राज पाट.
    और तुम भी तो
    कोई दशरथ नहीं जो
    दे ही डालोगे सब कुछ


    Kya bat hai kya andaz wah wah..

    par ye batayein k aap naraz kyon hai....kya koyi badh mein nahin phans sakta k kidnapped nahi ho sakta..k kalapani ki saza nahi bhog sakt /./ ? maein lagbhag vaisa hi ho gaya tha aur koi mukti bhi nahin mili hai...

    जवाब देंहटाएं
  53. रचना दीक्षित जी,
    नमस्कार,
    आपके ब्लॉग को अपने लिंक को देखने के लिए कलिक करें / View your blog link "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगपोस्ट डाट काम" के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|

    जवाब देंहटाएं
  54. [url=http://owdijfvcnid.com]efdnlwiernf[/url] PlotteHeado dkyubwvfcn ArriccambBiaw http://lirwjcnncvuier.com gersheike

    जवाब देंहटाएं
  55. बहुत ही हृदयस्पर्शी कामना व्यक्त की गई है इन पंक्तियों में.

    जवाब देंहटाएं

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