अलौकिक मिलन
कब से वो एक दूसरे को ताका करते थे दूर से,
कल जब रात मिलन की आई,
सारी दुनिया कैसे जान गयी?
कोटिक आखें,
अलौकिक मिलन निहारने को आतुर.
शायद उन्हें भी आभास था.
तभी तो बादलों को
समझाया, बुझाया और मनाया
और तान दी बादलों ने काली रुपहली चादर,
उस प्रेमी युगल के चारों ओर.
जाने क्या क्या हुआ फिर
प्रणय प्रलाप, प्रणय विलाप, प्रणय निवेदन,
बाहों के झूले और प्रणय समर्पण,
संभवतः बादल भी ये देख
खो गया अपनी दुनिया में
लगा देखने बदली को
अपनी बाँहों में भरने का ख्वाब.
वो थोड़ा सकुचाया, शर्माया और सिमट गया.
उस पल मैंने या शायद कोटि चक्षुओं ने देखा
प्रेमी युगल को इक दूसरे की बाँहों में.
उसने भी मुझे देखा.
हया का सुर्ख़ नारंगी रंग
फैल गया उसकी देह पर.
प्रेमिका अवाक् थी,
स्थिति से अनभिज्ञ थी.
हाँ! मैंने देखा धरती और चाँद को,
एक दूसरे की बाँहों में.
सोचती हूँ,
मैं तो होती हूँ,
जब तब अपने प्रियतम की बाँहों में.
उफ्फ्फ ... पर उनका क्या
जो सदियों बाद कभी मिलते हैं.
(चित्र साभार गूगल से)
अलौकिक मिलन की सुंदर मनोहारी व्याख्या ...... बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंमैं तो होती हूँ,
जवाब देंहटाएंजब तब अपने प्रियतम की बाँहों में. उफ्फ्फ ... पर उनका क्या
जो सदियों बाद कभी मिलते हैं.
ग्रहण पर पृथ्वी से चाँद का मिलन सचमुच अलौकिक भाव प्रस्तुत किया है आपने. बढ़िया कविता के लिए बधाई स्वीकारें.
देखा धरती और चाँद को, एक दूसरे की बाँहों में.
जवाब देंहटाएंbahut sundar abhivyakti
प्राकृतिक सौन्दर्य का अद्भुत चित्रण ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना जी ।
ऐसा ही एक नज़ारा हमने भी देखा अभी विमान से ।
चंद्र ग्रहण विषय पर सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंग्रहण का खूबसूरत चित्रण .. अलौकिक भाव
जवाब देंहटाएंchandrgrhan ka sunder maanvikarn
जवाब देंहटाएंबरसात का आलम और प्रेमी-प्रेमिका पर आपकी प्यारी सी कविता पढ़ते पढ़ते एक फ़िल्मी प्यारा सा गाना याद आ रहा है.२ पंक्तियाँ आप भी सुन ही लीजिये रचना जी.
जवाब देंहटाएंबूंदे नहीं सितारे टपके हैं कहकशां से.
सदके उतर रहे हैं तुम पर ये आसमां के.
वाह वहुत सुंदर कोमल भाव.
जवाब देंहटाएंरचना जी, जो एहसास रखता है,वो ही दूसरों की व्यथा महसूस कर सकता है| मेरा... ऐसा ही मानना है |
जवाब देंहटाएंखुश रहिये |
खगोलीय घटना का सुँदर मानवीकरण . आप एकदम मस्त बिम्बों के प्रयोग में माहिर है . प्रेमी, प्रेमिका दोनों खुश होगे आपकी इस कविता को पढ़कर.
जवाब देंहटाएंहया का सुर्ख़ नारंगी रंग
जवाब देंहटाएंफैल गया उसकी देह पर
प्रेमिका अवाक् थी
स्थिति से अनभिज्ञ थी
हाँ! मैंने देखा धरती और चाँद को
एक दूसरे की बाँहों में
प्रकृति की एक दुर्लभ घटना और उसके पात्रों का मानवीकरण....
अद्भुत है आपकी कल्पना।
बेमिसाल कविता।
alaukik chitran
जवाब देंहटाएंजीवन पर खगोलीय बिम्ब सुन्दर से सजा दिया है।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (20-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
आपकी इस कविता को पढते पढते मुझे ""कामायनी"" में 'श्रध्दा' का प्राक्रतिक चित्रण याद आने लगा
जवाब देंहटाएं. पर उनका क्या
जवाब देंहटाएंजो सदियों बाद कभी मिलते हैं !
is tdap aur bachaini ko vykt karti bemisal rchna !
लौकिक से अलौकिक की ओर............ प्रेम परिहास
जवाब देंहटाएंखगोलीय घटना की भावपूर्ण काव्य प्रस्तुति
हाँ! मैंने देखा धरती और चाँद को,
जवाब देंहटाएंएक दूसरे की बाँहों में.
सोचती हूँ,
मैं तो होती हूँ,
जब तब अपने प्रियतम की बाँहों में.
उफ्फ्फ ... पर उनका क्या
जो सदियों बाद कभी मिलते हैं.
Kya khoob likha hai!
us aluakik milan ki hriday tak pahunchti rachna ke liye...aabhar:)
जवाब देंहटाएंis rachna ko padhte-padhte bahut hi sunder drishya dikhla diya aapne...
rachna ji bahut hi behatreen aur man ko gududane wali rachna bahut hi badhiya lagi.is aluokik milan ka aanad aapki is par bhar pur vistar se bhi hua.
जवाब देंहटाएंbahut khoob
badhai
poonam
चंद्रग्रहण को खूबसूरती से शब्दों में पिरोया आपने ..
जवाब देंहटाएंइस अलौकिक मिलन ने आपको दुखी भी किया , अपने सुख में भी दूसरों के दुःख को याद रखना ,
प्रकृति के मानवीकरण के साथ मानवीय भावनाओं का संतुलन बेजोड़ !
खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत चित्र ! सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!
जवाब देंहटाएंअहा.. प्रकृतिप्रेम और उस पर छायावाद की रहस्यमयी छाया मन पर जादू सा कर देती हैं और हमें एक अलौकिक दुनिया में ले जाती है....
जवाब देंहटाएंलोग तो इन्सान को इनसान नहीं समझते ,पर आपने तो प्रकॄति को ही मानवीय जामा पहना दिया ....बहुत ख़ूब ...... आभार !
जवाब देंहटाएंchandra grhan ka bakhoobi bahut sunder dhang se prastuti.dil ko choo gai.badhaai aapko.
जवाब देंहटाएंplease visit my blog.thanks.
बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअद्भुत सुन्दर रचना! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!
जवाब देंहटाएंचन्द्र ग्रहण जैसे विषय पर इतनी भावपूर्ण रचना के लिये बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंअद्भुत प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंवाह ...खूबसूरत अहसास ..भावमय करते शब्द ।
जवाब देंहटाएंरश्मि प्रभा जी ने कहा "अलौकिक चित्रण" - आपकी इस अद्भुत प्रस्तुति की तारीफ़ में जितना कहा जाइ उतना ही कम है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति .....
जवाब देंहटाएंgahan adhyayan kiya lagta hai jab inka milan hua hoga...aapne aisa kuchh socha hoga.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना,
जवाब देंहटाएंबधाई- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
bahut khoob.
जवाब देंहटाएंbahut hee khoob.
anokhee hai aapki nazar.
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंअलौकिक सुन्दर। न चाँद ने आस्मा छोडा न धरा उड के गयी फिर भी मिलन तभी तो अलौकिक है\
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.'अलौकिक मिलन' के माध्यम से
जवाब देंहटाएंसुखद अनुभव कराया है आपने.
सोचती हूँ,
जवाब देंहटाएंमैं तो होती हूँ,
जब तब अपने प्रियतम की बाँहों में.
उफ्फ्फ ... पर उनका क्या
जो सदियों बाद कभी मिलते हैं.
Really very thoughtful creation !
.
मिलन की सुंदर मनोहारी व्याख्या, बधाई
जवाब देंहटाएंमिलन की सुंदर मनोहारी व्याख्या ,सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंटिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा होगी शनिवार (25-06-11 ) को नई-पिरानी हलचल पर..रुक जाएँ कुछ पल पर ...! |कृपया पधारें और अपने विचारों से हमें अनुग्रहित करें...!!
जवाब देंहटाएंउफ़!कितना गहन...अलौकिक.. लिख दिया..बढ़िया.. बधाई
जवाब देंहटाएंप्रणय प्रलाप, प्रणय विलाप, प्रणय निवेदन,
जवाब देंहटाएंबाहों के झूले और प्रणय समर्पण,
बधाई स्वीकारें.
अद्भुत है आपकी कल्पना।
जवाब देंहटाएंvikasgarg23.blogspot.com