रविवार, 19 जून 2011

अलौकिक मिलन


अलौकिक मिलन


कब से वो एक दूसरे को ताका करते थे दूर से, 
कल जब रात मिलन की आई,
सारी दुनिया कैसे जान गयी?
कोटिक आखें,  
अलौकिक मिलन निहारने को आतुर.
शायद उन्हें भी आभास था. 
तभी तो बादलों को 
समझाया, बुझाया और मनाया 
और तान दी बादलों ने काली रुपहली चादर,
उस प्रेमी युगल के चारों ओर. 
जाने क्या क्या हुआ फिर 
प्रणय प्रलाप, प्रणय विलाप, प्रणय निवेदन,
बाहों के झूले और प्रणय समर्पण,
संभवतः बादल भी ये देख 
खो गया अपनी दुनिया में 
लगा देखने बदली को 
अपनी बाँहों में भरने का ख्वाब. 
वो थोड़ा सकुचाया, शर्माया और सिमट गया.  
उस पल मैंने या शायद कोटि चक्षुओं ने देखा 
प्रेमी युगल को इक दूसरे की बाँहों में. 
उसने भी मुझे देखा.
हया का सुर्ख़ नारंगी रंग 
फैल गया उसकी देह पर.
प्रेमिका अवाक् थी, 
स्थिति से अनभिज्ञ थी. 
हाँ! मैंने देखा धरती और चाँद को,
 एक दूसरे की बाँहों में. 
सोचती हूँ,
 मैं तो होती हूँ,
 जब तब अपने प्रियतम की बाँहों में. 
उफ्फ्फ ... पर उनका क्या 
जो सदियों बाद कभी मिलते हैं.

(चित्र साभार गूगल से)

49 टिप्‍पणियां:

  1. अलौकिक मिलन की सुंदर मनोहारी व्याख्या ...... बेहतरीन रचना

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  2. मैं तो होती हूँ,
    जब तब अपने प्रियतम की बाँहों में. उफ्फ्फ ... पर उनका क्या
    जो सदियों बाद कभी मिलते हैं.

    ग्रहण पर पृथ्वी से चाँद का मिलन सचमुच अलौकिक भाव प्रस्तुत किया है आपने. बढ़िया कविता के लिए बधाई स्वीकारें.

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  3. देखा धरती और चाँद को, एक दूसरे की बाँहों में.
    bahut sundar abhivyakti

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  4. प्राकृतिक सौन्दर्य का अद्भुत चित्रण ।
    बहुत बढ़िया रचना जी ।
    ऐसा ही एक नज़ारा हमने भी देखा अभी विमान से ।

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  5. चंद्र ग्रहण विषय पर सुंदर प्रस्तुति

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  6. ग्रहण का खूबसूरत चित्रण .. अलौकिक भाव

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  7. बरसात का आलम और प्रेमी-प्रेमिका पर आपकी प्यारी सी कविता पढ़ते पढ़ते एक फ़िल्मी प्यारा सा गाना याद आ रहा है.२ पंक्तियाँ आप भी सुन ही लीजिये रचना जी.
    बूंदे नहीं सितारे टपके हैं कहकशां से.
    सदके उतर रहे हैं तुम पर ये आसमां के.

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  8. रचना जी, जो एहसास रखता है,वो ही दूसरों की व्यथा महसूस कर सकता है| मेरा... ऐसा ही मानना है |
    खुश रहिये |

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  9. खगोलीय घटना का सुँदर मानवीकरण . आप एकदम मस्त बिम्बों के प्रयोग में माहिर है . प्रेमी, प्रेमिका दोनों खुश होगे आपकी इस कविता को पढ़कर.

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  10. हया का सुर्ख़ नारंगी रंग
    फैल गया उसकी देह पर
    प्रेमिका अवाक् थी
    स्थिति से अनभिज्ञ थी
    हाँ! मैंने देखा धरती और चाँद को
    एक दूसरे की बाँहों में

    प्रकृति की एक दुर्लभ घटना और उसके पात्रों का मानवीकरण....
    अद्भुत है आपकी कल्पना।

    बेमिसाल कविता।

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  11. जीवन पर खगोलीय बिम्ब सुन्दर से सजा दिया है।

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  12. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (20-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  13. आपकी इस कविता को पढते पढते मुझे ""कामायनी"" में 'श्रध्दा' का प्राक्रतिक चित्रण याद आने लगा

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  14. . पर उनका क्या
    जो सदियों बाद कभी मिलते हैं !
    is tdap aur bachaini ko vykt karti bemisal rchna !

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  15. लौकिक से अलौकिक की ओर............ प्रेम परिहास

    खगोलीय घटना की भावपूर्ण काव्य प्रस्तुति

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  16. हाँ! मैंने देखा धरती और चाँद को,
    एक दूसरे की बाँहों में.
    सोचती हूँ,
    मैं तो होती हूँ,
    जब तब अपने प्रियतम की बाँहों में.
    उफ्फ्फ ... पर उनका क्या
    जो सदियों बाद कभी मिलते हैं.

    Kya khoob likha hai!

    जवाब देंहटाएं
  17. us aluakik milan ki hriday tak pahunchti rachna ke liye...aabhar:)
    is rachna ko padhte-padhte bahut hi sunder drishya dikhla diya aapne...

    जवाब देंहटाएं
  18. rachna ji bahut hi behatreen aur man ko gududane wali rachna bahut hi badhiya lagi.is aluokik milan ka aanad aapki is par bhar pur vistar se bhi hua.
    bahut khoob
    badhai
    poonam

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  19. चंद्रग्रहण को खूबसूरती से शब्दों में पिरोया आपने ..
    इस अलौकिक मिलन ने आपको दुखी भी किया , अपने सुख में भी दूसरों के दुःख को याद रखना ,
    प्रकृति के मानवीकरण के साथ मानवीय भावनाओं का संतुलन बेजोड़ !

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  20. बहुत ख़ूबसूरत चित्र ! सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!

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  21. अहा.. प्रकृतिप्रेम और उस पर छायावाद की रहस्यमयी छाया मन पर जादू सा कर देती हैं और हमें एक अलौकिक दुनिया में ले जाती है....

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  22. लोग तो इन्सान को इनसान नहीं समझते ,पर आपने तो प्रकॄति को ही मानवीय जामा पहना दिया ....बहुत ख़ूब ...... आभार !

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  23. chandra grhan ka bakhoobi bahut sunder dhang se prastuti.dil ko choo gai.badhaai aapko.






    please visit my blog.thanks.

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  24. अद्भुत सुन्दर रचना! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!

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  25. चन्द्र ग्रहण जैसे विषय पर इतनी भावपूर्ण रचना के लिये बहुत बहुत बधाई !

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  26. वाह ...खूबसूरत अहसास ..भावमय करते शब्‍द ।

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  27. रश्मि प्रभा जी ने कहा "अलौकिक चित्रण" - आपकी इस अद्भुत प्रस्तुति की तारीफ़ में जितना कहा जाइ उतना ही कम है

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  28. अलौकिक सुन्दर। न चाँद ने आस्मा छोडा न धरा उड के गयी फिर भी मिलन तभी तो अलौकिक है\

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  29. सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.'अलौकिक मिलन' के माध्यम से
    सुखद अनुभव कराया है आपने.

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  30. सोचती हूँ,
    मैं तो होती हूँ,
    जब तब अपने प्रियतम की बाँहों में.
    उफ्फ्फ ... पर उनका क्या
    जो सदियों बाद कभी मिलते हैं.

    Really very thoughtful creation !

    .

    जवाब देंहटाएं
  31. मिलन की सुंदर मनोहारी व्याख्या, बधाई

    जवाब देंहटाएं
  32. मिलन की सुंदर मनोहारी व्याख्या ,सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  33. टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  34. आपकी किसी पोस्ट की चर्चा होगी शनिवार (25-06-11 ) को नई-पिरानी हलचल पर..रुक जाएँ कुछ पल पर ...! |कृपया पधारें और अपने विचारों से हमें अनुग्रहित करें...!!

    जवाब देंहटाएं
  35. उफ़!कितना गहन...अलौकिक.. लिख दिया..बढ़िया.. बधाई

    जवाब देंहटाएं
  36. प्रणय प्रलाप, प्रणय विलाप, प्रणय निवेदन,
    बाहों के झूले और प्रणय समर्पण,

    बधाई स्वीकारें.

    जवाब देंहटाएं
  37. अद्भुत है आपकी कल्पना।
    vikasgarg23.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं

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