गिद्ध
आज कल एक अजीब सी बीमारी से ग्रसित हूँ
जिधर देखो गिद्ध ही नज़र आते हैं
सुना था मृत शरीर को नोचते हैं ये
पर.....
ये तो जीवित को ही
कभी मृत समझ बैठते हैं
कभी मृतप्राय बना देते हैं
नोचते हैं देह.
गिद्धों की प्रजाति के
हर आकार प्रकार को साकार करते
कुछ बीमार से लगते हैं.
पाचन तंत्र अपने चरम पर है पर
भोजन नलिका का मुंह संकरा हो चला है.
छोटी से छोटी फाइल अटक जाती है
इलाज के लिए
खाते हैं वो कुछ रंग बिरंगी
आयुर्वेदिक लाल, हरी, नीली, पीली पत्तियां,
और फिर जी उठते हैं.
पर्यावरणविद् कहते हैं
लुप्त हो रहे हैं गिद्ध......
आज एक बार फिर
न्यूटन ने अपने आप को सत्यापित किया है.
उर्जा का ह्रास नहीं होता,
वो एक से दूसरे में परिवर्तित होती है.
पेड़ पर गिद्ध भले ही लुप्त हो रहे हों,
पर उनकी उर्जा,
धरती के गिद्धों को
लगातार स्थानांतरित हो रही है.
गिद्ध एक पारंपरिक विम्ब है जिसका आपने नवीन सन्दर्भ में उपयोग किया है ..बढ़िया कविता...
जवाब देंहटाएंगिद्ध को आपने नवीन अर्थों में प्रस्तुत किया है ....यहाँ हर बार पैदा होते हैं नए नए रूपों में गिद्ध अपने स्वार्थों कि पूर्ति के लिए ...! आपने बहुत सुन्दरता से भावनाओं को अभिव्यक्त किया है ..आपका आभार
जवाब देंहटाएंपारंपरिक गिद्ध पर्यावरण के लिए सहायक सिद्ध होते हैं । लेकिन ये आधुनिक गिद्ध तो पूरी सृष्टि पर ही बुरी दृष्टि लगाये बैठे हैं ।
जवाब देंहटाएंअच्छा चिंतन ।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (6-6-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
giddh bhee kabhee giddh par apanee nazar nahee rkhte par aaj ka samay offfff...........
जवाब देंहटाएंsarthak lekhan
पाचन तंत्र अपने चरम पर है पर भोजन नलिका का मुंह संकरा हो चला है.
sshakt lekhan .
एक गहन अभिव्यक्ति ... जहाँ एक ओर लोंग भ्रष्टाचार से त्रस्त हैं तो दूसरी ओर ये गिद्ध बिना कुछ खाए कोई काम नहीं करते ... बहुत सटीक और सही बिम्ब से उभरा है भ्रष्टाचार को .
जवाब देंहटाएंपेड़ पर गिद्ध भले ही लुप्त हो रहे हों,पर उनकी उर्जा,धरती के गिद्धों कोलगातार स्थानांतरित हो रही है.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सच । आप किसी बीमारी से ग्रसित नहीं । बहुत अच्छी प्रस्तुति ।
पेड़ पर गिद्ध भले ही लुप्त हो रहे हों,
जवाब देंहटाएंपर उनकी उर्जा,
धरती के गिद्धों को
लगातार स्थानांतरित हो रही है.
Afsos! Lekin bahut sahee kaha!
पेड़ पर गिद्ध भले ही लुप्त हो रहे हों,
जवाब देंहटाएंपर उनकी उर्जा,
धरती के गिद्धों को
लगातार स्थानांतरित हो रही है.
मैं तो कहूँगा:-
वाह वाह वाह वाह ...........रचना जी.
इन गिद्धों से राम बचाए.
रचना जी!
जवाब देंहटाएंआपकी उपमाओं के तो कायल हैं हम.. और ये रूपांतरित गिद्ध तो वाकई ज़िंदा इंसानों को नोच नोंच कर खा जाते हैं..
करारा व्यंग्य!!
दराल साहिब की टीप से १००% सहमत .....
जवाब देंहटाएंआधुनिक गिद्ध की परिभाषा बखूबी से बताए है
सही कह रही ही ....
जवाब देंहटाएंगिद्धों की कहीं कमी नहीं , सिर्फ पहचानने की जरूरत है !
शुभकामनायें आपको !
बहुत सटीक तुलना रचना जी । जितनी भी तारीफ करूँ , कम होगी।
जवाब देंहटाएं.पेड़ पर गिद्ध भले ही लुप्त हो रहे हों,पर उनकी उर्जा,धरती के गिद्धों कोलगातार स्थानांतरित हो रही है.
जवाब देंहटाएं... sukshm drishtikon
एक नए प्रतीक के साथ बिल्कुल अनछुए भाव को कविता में समेकित किया है आपने।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं।
yatharth ko jivant karne ka prayas sarhaniya hai .bahut achha
जवाब देंहटाएंजीवित को जीतने से अधिक प्रिय है मरों को नोचना, इन गिद्धों के लिये।
जवाब देंहटाएंbrhstachaar ki bykhyaa anoothe roop se kiya hai.bahut hi shaandaar rachanaa.alag tarah ki abhibyakti.badhaai sweekaren.
जवाब देंहटाएंplease visit my blog.thanks
छोटी से छोटी फाइल अटक जाती है
जवाब देंहटाएंइलाज के लिए
खाते हैं वो कुछ रंग बिरंगी
आयुर्वेदिक लाल, हरी, नीली, पीली पत्तियां,
बहुत ही नायाब अभिव्यक्ति
सुन्दर कविता
आज कर ऐसे गिद्ध जगह जगह फैले हुवे हैं ... अच्छी रचना है ...
जवाब देंहटाएंगिद्दों के लुप्तप्राय होने का कारण - गजब और इतना सटीक कि आपकी सोच से इर्ष्या होने लगी है - पढवाने के लिए बधाई तथा आभार
जवाब देंहटाएंन्यूटन के उर्जा सिद्धांत का कविता में प्रयोग नवीन मगर सटीक है ...
जवाब देंहटाएंबहुत जबरदस्त प्रयोग....मान गये!!!
जवाब देंहटाएंगिद्धों की ये परिभाषा अच्छी रही
जवाब देंहटाएंआज एक बार फिर
जवाब देंहटाएंन्यूटन ने अपने आप को सत्यापित किया है.
उर्जा का ह्रास नहीं होता,
वो एक से दूसरे में परिवर्तित होती है.
पेड़ पर गिद्ध भले ही लुप्त हो रहे हों,
पर उनकी उर्जा,
धरती के गिद्धों को
लगातार स्थानांतरित हो रही है.
बढ़िया कटाक्ष
बहुत सलीके से लिखी गयी ...धारदार व्यंग्य रचना
जवाब देंहटाएंसटीक बिम्ब का सहारा ले गंभीर बात कही आपने......
जवाब देंहटाएंसत्य कहा गिद्ध कभी समाप्त न होंगे,बस उनका रूपांतरण भर होगा चरित्र नहीं बदलेगा...
पेड़ पर गिद्ध भले ही लुप्त हो रहे हों,पर उनकी उर्जा,धरती के गिद्धों कोलगातार स्थानांतरित हो रही है.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक कटाक्ष...सच में आज गिद्धों का नए रूप में अवतरण हो रहा है...लाज़वाब प्रस्तुति..
सुन्दर रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति
बधाई हो आपको - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
पेड़ पर गिद्ध भले ही लुप्त हो रहे हों,
जवाब देंहटाएंपर उनकी उर्जा,
धरती के गिद्धों को
लगातार स्थानांतरित हो रही है.
तीखा कटाक्ष...संवेदनशील कविता....
आज कल एक अजीब सी बीमारी से ग्रसित हूँ जिधर देखो गिद्ध ही नज़र आते हैंसुना था मृत शरीर को नोचते हैं
जवाब देंहटाएं......बिलकुल सच ....बहुत अच्छी प्रस्तुति ।
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
जवाब देंहटाएंपेड़ पर गिद्ध भले ही लुप्त हो रहे हों,
जवाब देंहटाएंपर उनकी उर्जा,
धरती के गिद्धों को
लगातार स्थानांतरित हो रही है.
बिलकुल सच कहा\ बहुत अच्छी लगी रचना। शुभकामनायें।
science aur kavita achchha prayog hai
जवाब देंहटाएंbaat bilkul sahi hai ki gidh apni urja zamin ke gidhon me transfar kar rahe hai ati sunder
badhai
rachana
बहुत बढिया व्यंग्य, बहुत अच्छी उपमा, बहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंये कौये और गिध्द
कर रहे अपना मतलब सिध्द
सही कहा आपने
जवाब देंहटाएंhttp://www.vijaypalkurdiya.blogspot.com
वाह रचना जी, आपने क्या बढ़िया व्यंग्य कसा है ...
जवाब देंहटाएंrachna ji
जवाब देंहटाएंsarvpratham to badhai kabul kariye is teekhi ,karari aur jhannate dar sahi mayano me smaj ko cahritarth karne wali sateek vyngatamata liye hue kavita ke liye.
bahut sundar bib ka sahara liya hai aapne .
pahle ye giddh mare huon ko khate nochte the .
par aaj ke giddh to jinda ya yun kahiye ki sabut hi nigal jaane ko har pal taiyaar hai .bas mouka milne ki der hai.
bahut hi shandar abhivykti ke liye punah badhai---
poonam
क्या बात ..... गहन अभिव्यक्ति..... एक अलग सा बिम्ब लेकर रची सार्थक कविता ......जागृत करती रचना
जवाब देंहटाएंA fantastic satire on the degraded mentality of so called ultra modern 21st century humans.
जवाब देंहटाएंWell written !!!
वाकई यह हर जगह हैं बस आसानी से दिखाई नहीं देते ! शुभकामनायें आपको !
जवाब देंहटाएंअच्छा चिंतन ।बढ़िया कविता...
जवाब देंहटाएंएकदम अलग तरह की कविता होती है आपकी..
जवाब देंहटाएंbahut hi achchi rachna ki hai aapne. Congrats
जवाब देंहटाएंhr vykti ke bheetar ek ram our ek ravan hota hai . ye dono hr desh kal me ek sath jnm lete hai our ravan chahe kitna bhi shktishali kyon naho jeetta ram hi hai . in giddho ki umr jyada nhi hoti , ha hmara mnobal angad ke pair jaisa adig hona chahiye our sch ki ldai me ye takat bhut aavshyak hai bhi .
जवाब देंहटाएंaapki prstuti ravan ko benkab krti hai
jagrookta jgane wali is trh ki rchnao ki bhut jroorat hai . aapko dhnywaad .
hr vykti ke bheetar ek ram our ek ravan hota hai . ye dono hr desh kal me ek sath jnm lete hai our ravan chahe kitna bhi shktishali kyon naho jeetta ram hi hai . in giddho ki umr jyada nhi hoti , ha hmara mnobal angad ke pair jaisa adig hona chahiye our sch ki ldai me ye takat bhut aavshyak hai bhi .
जवाब देंहटाएंaapki prstuti ravan ko benkab krti hai
jagrookta jgane wali is trh ki rchnao ki bhut jroorat hai . aapko dhnywaad .