रविवार, 29 अगस्त 2010

सूरजमुखी

सूरजमुखी

  

बन के सूरजमुखी, तकती रही ताउम्र जिसे,

वो मेरा सूरज नहीं किसी और का चाँद निकला.



जब भी देखी तितलियाँ रंग बिरंगी उसने,

दिल धड़का, उछला, मचला सौ बार निकला.


 
मुझ पर न पड़ी मुहब्बत भरी नज़र उसकी,

ये शायद मेरी ज़र्द रंगत का गुनाह निकला.

 

इस क़दर ज़ुल्म ढाए हैं उसने मुझ पर,

पर दिल की बस्ती से वो आज भी बेदाग़ निकला.

 

दोष क्या दें बादलों को सूरज ढांपने का,

हाय! जब अपनी किस्मत में ही दाग़ निकला.



खड़े हैं आज भी मुंह उठाये तेरी ओर,

पर तू तो चलता फिरता इक बाज़ार निकला.


कभी तो रखेगा तू, दो जलते हुए हर्फ़ मेरी पंखुरी पे,

इसी हसरत में ये सूरजमुखी हर बार निकला.


38 टिप्‍पणियां:

  1. कभी तो रखेगा तू, दो जलते हुए हर्फ़ मेरी पंखुरी पे,
    इसी हसरत में ये सूरजमुखी हर बार निकला. ... BAHUT HI GAHRI PREM KAVITA. Pyar mein janmon tak intjaar karne ka madda rakhte hai premi... sunder shabd sanyojan.....

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  2. Blog achcha lag raha hai aur last sher best one

    "कभी तो रखेगा तू, दो जलते हुए हर्फ़ मेरी पंखुरी पे,

    इसी हसरत में ये सूरजमुखी हर बार निकला. :-)

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  3. बहुत ही अच्छी कविता है .....
    एक बार इसे भी पढ़े , शायद पसंद आये --
    (क्या इंसान सिर्फ भविष्य के लिए जी रहा है ?????)
    http://oshotheone.blogspot.com

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  4. वाह , वाह , वाह !

    बदल गए हैं तेवर आज फिज़ाओं के
    हवाओं का रुख ये किस ओर निकला ।

    मज़ा आ गया रचना जी , सूरजमुखी के साथ ये रचना पढ़कर ।
    बेहतरीन ।

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  5. बन के सूरजमुखी, तकती रही ताउम्र जिसे,
    वो मेरा सूरज नहीं किसी और का चाँद निकला.
    :):) ..खूबसूरती से लिखे भाव ...

    आज की गज़ल तो गज़ब ही ढा रही है ....और ऊपर से सूरजमुखी के फूलों के सुन्दर चित्र ...वाह कमाल लग रहा है ....

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  6. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
    कल (30/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
    और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  7. सहनशीलता और विश्वास की पराकाष्ठा.

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  8. रचना जी...

    बहुत ही सुन्दर कविता ले कर आयीं हैं आप...

    जिसे तुमने था यूँ चाहा, अगर वो चाहता तुमको...
    तेरे हर भाव में तितली के, सारे रंग वो पाता....
    जुलम न वो कोई ढाता, वो तेरा हो के ही रहता...
    तेरे दिल में उम्मीदों के, सितारे संग वो लाता....

    नहीं वो तेरा था लगता, या तेरे वो न लायक था...
    तेरी वो प्यार की बातें, नहीं वो जान ही पाया...
    वो कोई भौरा था शायद, उड़ा इस फूल से उस पर...
    तेरे मन के वो रस में, खुद को वो पहचान न पाया...

    बहुत ही सुन्दर रचना....

    दीपक...

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  9. खड़े हैं आज भी मुंह उठाये तेरी ओर,
    पर तू तो चलता फिरता इक बाज़ार निकला.-------------खूबसूरत पंक्तियों के साथ खूबसूरत फ़ोटोग्रैफ़्स---सब कुछ खूबसूरत्।

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  10. कभी तो रखेगा तू, दो जलते हुए हर्फ़ मेरी पंखुरी पे,

    इसी हसरत में ये सूरजमुखी हर बार निकला.
    beautifully created

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  11. कभी तो रखेगा तू, दो जलते हुए हर्फ़ मेरी पंखुरी पे,
    इसी हसरत में ये सूरजमुखी हर बार निकला.
    naye rang aur naye anjaaz liye ye rachna surajmukhi ki tarah khoobsurat hai .

    जवाब देंहटाएं
  12. क्या बात है..बहुत खूब और साथ ही मनमोहक तस्वीरें भी.

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  13. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    चित्र भी काफ़ी अच्छे लगे।

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  15. कभी तो रखेगा तू, दो जलते हुए हर्फ़ मेरी पंखुरी पे,
    इसी हसरत में ये सूरजमुखी हर बार निकला.

    सूरजमुखी के बिंब का बहुत लाजवाब और खूबसूरत उपयोग किया है ... कमाल की रचना ...

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  16. "कभी तो रखेगा तू, दो जलते हुए हर्फ़ मेरी पंखुरी पे,

    इसी हसरत में ये सूरजमुखी हर बार निकला. खूबसूरत रंगों से रंगी हुई रचना...:)

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  17. पहली बार आपके ब्लॉग पर ऐसे रचना पढ़ी जिसे कमोवेश गाया भी जा सकता है - अति सुंदर.

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  18. बिलकुल सूरजमुखी के फूल की तरह खिलता हुआ ब्लॉग-पोस्ट लिखी हैं आपने.
    भगवान् करे -- आपके ब्लॉग की रौशनी-कीर्ति सूर्य की तरह फैलती जाए.
    धन्यवाद.
    WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

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  19. bahut hi achhi rachnaon se bhari post...
    photos bhi bahut achhe hain...

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  20. सूरजमुखी का विम्ब लेकर आपने जीवन में प्रेम के भाव को बहुत ही ख़ूबसूरती से व्यक्त किया है.. रचना जी आप हर बार नया विषय लेकर आती हैं और नए तरह से अपनी बात रख जाती हैं... बहुत गंभीर बाते भी सहजता से कह जाती हैं.. इस ग़ज़ल नुमा कविता की पहली दो पंक्तियाँ पूरे कविता का मिजाज बताती है .. और पूरी कविता ए़क सम्पूर्ण, सुगठित बनी है...

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  21. "बन के सूरजमुखी, तकती रही ताउम्र जिसे,
    वो मेरा सूरज नहीं किसी और का चाँद निकला.
    कभी तो रखेगा तू, दो जलते हुए हर्फ़ मेरी पंखुरी पे,
    इसी हसरत में ये सूरजमुखी हर बार निकला.
    "सूरजमुखी" के सहारे एक के समर्पण,दूसरे के विचलन को प्रकट करती रचना . एक तरफ ,जहाँ तक मैंने समझा है ,सूरजमुखी नारी समर्पण का पर्याय है तो सूरज पुरुष के चंचल एवं अस्थिर मन का.एक दर्द की शिकायत करती कविता. रचना जी सच कहूँ तो पढ़कर अच्छा लगा .

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  22. रचना आपकी कविता पढ़कर मै तो जिन्दा हो जाती हूँ ! कविता क्या चित्रों में उतर रही थी ! कितना सुंदर सयोंजन है !और हाँ वाक चतुरी बहुत बढ़ गई है ! बहुत बहुत बधाई !

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  23. आप ने सच में एक अच्छी ग़ज़ल कही है. साथ में चित्रों का सुखद सामंजस्य है.
    - विजय

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  24. ek ek shabd bheege ehsaaso se bheega hua. aur kitni sunderata se post ko sajaya he kaabile tareef. he. bahut sunder lagi apki ye rachna..dil ke dard ko shabd diye he.

    deri k liye kshama chaahti hun.

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  25. आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !

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  26. रचना माँ,
    बहुत निकले मेरे अरमान.... लेकिन फ़िर भी कम निकले!
    पहले भी कर चुका हूँ.... कोई नयी बात तो नहीं.... पर फ़िर भी: दंडवत प्रणाम!
    और हां मेरे चिट्ठे पे आपकी टिपण्णी का जवाब दिया है मैंने.... देखिएगा ज़रूर!
    --
    अब मैं ट्विटर पे भी!
    https://twitter.com/professorashish

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  27. ....जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई!.... सब मंगलमय हो!
    sundar shabdoM ka sangam!

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  28. --खूबसूरत पंक्तियों के साथ खूबसूरत फ़ोटोग्रैफ़्स---सब कुछ खूबसूरत्।


    आपको और आपके परिवार को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  29. फूल सारे आपने
    फलों में बदल दिए हैं
    सबमें सुंदर विचार
    लबालब भर दिए हैं

    जवाब देंहटाएं
  30. फूल सारे आपने
    फलों में बदल दिए हैं
    सबमें सुंदर विचार
    लबालब भर दिए हैं

    जवाब देंहटाएं
  31. rchna ji
    hum ta umar yad krte rhe unhe
    vo ta umar bhulate rhe hme
    fir bhi umeed pe dunia kayam hai .

    जवाब देंहटाएं

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