तपिश
जब भी महसूस करती हूँ,
सूरज की अत्यधिक तपिश.
जाने क्यूँ मुझे लगता है,
मेरा बचपन लौट आया है.
सोचती हूँ,
चुरा लूँ इसकी कुछ तपिश.
सजाऊँ अपनी छत,
नन्ही नन्ही डिबियों वाले,
कुछ आयताकार पटल से
कैद कर लूँ चोरी की ये तपिश.
उन नन्ही डिबियों में.
ताकि सूरज उन्हें वापस न ले जा सके.
फिर सारा दिन खिड़की से,
उसके जाने की राह तकूँ.
जाते ही उसके
घर के हर कोने में,
अपनी मन पसंद आकर के,
छोटे बड़े सूरज उगाऊं.
पूरे घर के हर कोने को,
सूरज की रोशनी से नहलाऊँ.
यूँ लगे की यहाँ हर रोज दीवाली है.
अब बताना तुम्हें है कि,
मेरा बचपन लौट आया या
मैं अधिक संवेदनशील हो गयी हूँ.
(चित्र साभार गूगल से)
अब बताना तुम्हें है कि,
जवाब देंहटाएंमेरा बचपन लौट आया या
मैं अधिक संवेदनशील हो गयी हूँ.
sundar bhavavyakti , badhai
बेहतरीन भाव और सरल भाषा में सौर ऊर्जा संरक्षण का सार्थक सन्देश देती कविता.
जवाब देंहटाएं"अब बताना तुम्हें है कि,
जवाब देंहटाएंमेरा बचपन लौट आया या
मैं अधिक संवेदनशील हो गयी हूँ. "... बचपन और सम्वेदना के द्वन्द में लिखी गई एक सुन्दर कविता... अब संवेदना बचपना ही लगता है... आपका बचपन लौट आया है...
सूरज में करोड़ों दीवाली विद्यमान हैं।
जवाब देंहटाएंरचना जी! ऊर्जा संरक्षण और सौर ऊर्जा के उपयोग को इतनी सुंदरता से आपने पिरोया है अपनी रचना में कि लगता है मानो सारे शहर में इस कविता के पोस्टर लगाए जाने चाहिए, कम से कम स्कूलों में तो अवश्य... वो बचपन जिसे आप जीवन के इस पड़ाव पर याद कर रही हैं, आपकी सम्वेदना से पगकर, उन्हीं बच्चों के हवाले की जानी चाहिये, जो इसे आगे ले जा सकें. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति .. कर लो सूरज मुट्ठी में!!
जवाब देंहटाएंअब बताना तुम्हें है कि,
जवाब देंहटाएंमेरा बचपन लौट आया या
मैं अधिक संवेदनशील हो गयी हूँ.
संवेदनशील होना कोई गलत तो नहीं और न बचपना होना ... अपने अपने स्थान पर दोनों ही महत्व रखते हैं ...
जाते ही उसके
जवाब देंहटाएंघर के हर कोने में,
अपनी मन पसंद आकर के,
छोटे बड़े सूरज उगाऊं.
बहुत सुन्दर भाव ...उर्जा प्रदान करती रचना
bahoot hi gahare ehsas....
जवाब देंहटाएंSamvedansheel to ap hamesha se hi thi..shayad chhupa hua bashpana laut aaya h :)
जवाब देंहटाएंरचना जी ,
जवाब देंहटाएंहृदय के स्पंदन को छूती आप की इस कविता में जीवन के नए छितिज को छूने का आग्रह विद्यमान है !
इतनी सुदर अभिव्यक्ति के लिए बधाई !
आपके ब्लॉग पर आना सार्थक हुआ !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
बहुत सुन्दर कविता |
जवाब देंहटाएंशायद बचपन ही तो लौट आया है रौशनी के साथ|
bahut sunder bhavo ko sanjoye sunder rachana.
जवाब देंहटाएंbachapan kisee koune me chipa rahta hai vo jab chahe ubhar aata hai....hai na chamatkarik shakti humare paas .
bahut sunder bhavo ko sanjoye sunder rachana.
जवाब देंहटाएंbachapan kisee koune me chipa rahta hai vo jab chahe ubhar aata hai....hai na chamatkarik shakti humare paas .
bahut sunder bhavo ko sanjoye sunder rachana.
जवाब देंहटाएंbachapan kisee koune me chipa rahta hai vo jab chahe ubhar aata hai....hai na chamatkarik shakti humare paas .
छोटे बड़े सूरज उगाऊं.
जवाब देंहटाएंपूरे घर के हर कोने को,
सूरज की रोशनी से नहलाऊँ.
यकीनन अन्धेरे के खिलाफ सूरज उगाना ही होगा
खूबसूरत भाव
संवेदनशील व्यक्ति ही बच्चों की तरह इतनी उर्जा सहेज सकता है।
जवाब देंहटाएं...बहुत सुंदर।
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना मंगलवार 23 -11-2010
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
... sundar rachanaa ... badhaai !!!
जवाब देंहटाएंरचना जी,
जवाब देंहटाएंसूरज से धूप चुराकर रखना और सूरज के ढलने का इंतजार करना इतना बाल-सुलभ चित्रण अद्भुत है.हम बचपन में दीपावली की बची हुई मोमबत्तियां चुनकर दीप जलाया करते थे वह भी मां से छुप-छुपाकर.बेहतरीन प्रस्तुति .
बढ़िया है ...सुंदर भाव ...शुभकामनायें आपको
जवाब देंहटाएंअब बताना तुम्हें है कि,
जवाब देंहटाएंमेरा बचपन लौट आया या
मैं अधिक संवेदनशील हो गयी हूँ.
बेहद सुन्दर भाव संग्रह्………बचपन और संवेदनशीलता को खूब पिरोया है।
जीवन के इस आपाधापी में आपका बचपन कितना मासूम और निर्मल है। कविता में बचपन की खिलखिलाहट गूंज रही है। खूबसूरती से पिरोया है आपने।
जवाब देंहटाएंबचपन मे ही मर्जी के चाँद सूरज उगाये जा सकते हैं। बहुत सुन्दर कविता। बधाई।
जवाब देंहटाएंबचपन या संवेदनशीलता जिंदगी में गहन अर्थों के एक से एक अनूठे आयाम रच देता है, जो आपाधापी भरे जीवन में हम कई बार देखने और समझने से चूक जाते हैं. गहन अर्थों और आयामों को समेटे बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.
सूरज को कई अर्थों में संजोना चमत्कृत करता है!!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!
जवाब देंहटाएंसंवेदना लौट आई है ...या बचपन ...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति !
मेरा बचपन लौट आया या
जवाब देंहटाएंमैं अधिक संवेदनशील हो गयी हूँ.
Sach Bachpan ka jamana achha tha
jab har koi kitna sachha tha
कैद कर लूँ चोरी की ये तपिश,
जवाब देंहटाएंउन नन्ही डिबियों में. !!! छोटी छोटी रोशनियों को बचा लेने का मोह ! बहुत सुंदर अनुभूति को स्वर दिया है आपने !समवेदन शील तो थी ही अब उसके पन्ने खुलने लगे हैं धीरे धीरे !बहुत दिनों बाद कुछ कहना चाहा है , देख लीजियेगा !!
"जाते ही उसके
जवाब देंहटाएंघर के हर कोने में,
अपनी मन पसंद आकर के,
छोटे बड़े सूरज उगाऊं.
पूरे घर के हर कोने को,
सूरज की रोशनी से नहलाऊँ.
यूँ लगे की यहाँ हर रोज दीवाली है"
हमेशा की तरह निराले अंदाज में उत्कृष्ट रचना - बधाई
मन की संवेदनशीलता को बहुत सुंदर बिम्बो से सवार है जो आशावादी होने की तरफ इन्गति करता है.सुंदर मार्मिक गहन अर्थो से भरी रचना.
जवाब देंहटाएंaapki is rachna ko padhkar bachpan ko beete hue pal yaad aa gaye hai .. bas chupchaap rahne ke ka man kar raha hai ..
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna
badhayi
vijay
kavitao ke man se ...
pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com
अब बताना तुम्हें है कि,
जवाब देंहटाएंमेरा बचपन लौट आया या
मैं अधिक संवेदनशील हो गयी हूँ.
न बचपना है और न संवेदना है ये
मन में उमड़ घुमड़ रही इक भावना है ये .
बहुत बढ़िया ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब ...
सोचती हूँ,
जवाब देंहटाएंचुरा लूँ इसकी कुछ तपिश.
सजाऊँ अपनी छत,
नन्ही नन्ही डिबियों वाले,
कुछ आयताकार पटल से
कैद कर लूँ चोरी की ये तपिश.
उन नन्ही डिबियों में.
ताकि सूरज उन्हें वापस न ले जा सके.
सबकुछ खेल-खिलौनों सा लगता है बचपन के दिन में...बढ़िया कविता..प्रस्तुति के लिए धन्यवाद
संवेदनशीलता और बचपन की अनुभूतियों से सराबोर यह कविता लाजवाब है. इसमें आपकी संकल्पना देखते ही बनती है.
जवाब देंहटाएंkavita me suraj ki tapish ko bachpan se joda..........jabki photo me saur urja se.........wah!!
जवाब देंहटाएंbahut khubsurat abhivyakti..
संवेदनशील होना इस समय की सबसे बड़ी ज़रूरत है
जवाब देंहटाएं