रविवार, 25 अक्टूबर 2015

दशानन

दशानन

मैं रावण
अधम पापी नीच
सीता हरण का अक्षम्य अपराधी
सब स्वीकार है मुझे.
मैं प्रतिशोध की आग में जला  था,
माना कि मार्ग गलत चुना था.
किया सबने भ्रमित मुझे 
मार्ग दर्शन किया नहीं किसी ने.
मैं वशीभूत हुआ माया जाल के.
मैंने भी फिर किया
विस्तार माया जाल का. 
देख सीता मुग्ध हुआ मैं.
ये दोष तो मेरा नहीं था
फिर भी मैं मानता हूँ
मैंने हरा सीता को तो क्या?
मैंने किया छल कपट तो क्या?
मैंने दिया सीता को प्रलोभन तो क्या?
पटरानी बनाने का मन बनाया तो क्या?
पूरी लंका को विधवा बनाया तो क्या?
नहीं किया स्पर्श
सीता को उसकी अनुमति के बिना.
वो पवित्र थी जैसी रही वो वैसी. 
मरे दस सर तो दीखते हैं.
हाँ! मैं हर जन्म में 
रावण ही बनना चाहूंगा,
आज का मानव नहीं.

रविवार, 18 अक्टूबर 2015

एक रामलीला यह भी

एक रामलीला यह भी 

यूं तो होता है 
रामलीला का मंचन
वर्ष में एक बार
पर मेरे शरीर के 
अंग अंग करते हैं
राम, लक्ष्मण,
सीता और हनुमान
के पात्र जीवन्त.
देह की सक्रियता
सतर्कता, तत्परता 
और चैतन्यता के
लक्ष्मण की उपस्थिति
के बाद भी
मष्तिष्क का रावण 
देता रहता है प्रलोभन
भांति भांति के जब तब 
दिग्भ्रमित हुआ है 
मन जब जहाँ 
अपह्रत हुई है 
ह्रदय की सीता तब तहां 
आत्मा का राम 
करता है करुण कृन्दन 
अंतर्ज्ञान का हनुमान 
करता है प्रयास 
पुनर्मिलन का 
आत्मा और ह्रदय का 
राम और सीता की तरह
एक उम्र गुजर जाती है 
अपने ही ह्रदय को
अपनी ही आत्मा से 
मिलने में 
एक सार करने में.

रविवार, 11 अक्टूबर 2015

कुछ सपने मेरे

कुछ सपने मेरे

आज एक अजीब सी
उलझन, कौतुहल,
बेचैनी, उद्विग्नता है.
भारी है मन
और उसके पाँव.
कोख हरी हुई है
मन की अभी अभी.
गर्भ धारण हुआ है अभी अभी
कुछ नन्ही कोपले फूटेंगी,
एक बार फिर
डरती हूँ,
ना हो जाये
जोर जबर्दस्ती से
गर्भपात
एक बार फिर.
ना तैयार हो
दूध भरा कटोरा,
जबरदस्ती डुबोने को,
यह सच है
मेरी मन की कोख में
जन्म लेने को आतुर हैं.
फिर कुछ सपने मेरे
नहीं समझ पाई अब तक,
क्यों असमय ही
तोड़े जाते हैं
मौत की नींद सुलाए जाते हैं
जबरन मुझसे छीने जाते हैं
कुछ सपने मेरे,
क्या सपनों का भी
कोई लिंग होता है
पुल्लिंग या......

रविवार, 4 अक्टूबर 2015

महात्मा

महात्मा


देखती आई हूँ बरसों से
अपनी ही प्रतिमा में कैद
महात्मा को धूप धूल
चिड़ियों के घोसले
और बीट से सराबोर,
मायूस
हर सितम्बर माहांत में
चमकते है,
मुस्कुराते हैं,
दो अक्टूबर को बाहर भी आते हैं.
हम सब के बीच
हमारे मन मष्तिष्क में
विचरते हैं
पर इस बार
कुछ भी नहीं हुआ ऐसा
अंग्रेजों से अहिंसा के
सहारे जीतने वाले
महात्मा
नहीं आए बाहर
कहीं जबरदस्ती हो ना जाये
उनका या उनकी पुरानी पीढ़ियों का
धर्म परिवर्तन
उनका अहिंसा का सिद्धांत
ही न बन जाए
हिंसा का कारण
एक बार फिर
बाहर ना आकर
किया है सत्यापित
अपने अहिंसा के सिद्धांत को

रविवार, 27 सितंबर 2015

रिश्तों में जीवन

रिश्तों में जीवन 

भूकंप में नहीं गिरते घर 
गिरते हैं मकान
मकान ही नहीं गिरते
गिरती हैं उनकी छतें
छतें भी यूँ ही नहीं गिरती
गिरती हैं दीवारें
गिरातीं हैं अपने साथ छतें
फिर अलग अलग घरों के
बचे खुचे जीवित लोग
मिल कर बनाते हैं
पहले से कहीं अधिक
मजबूत दीवारों वाले मकान
फिर बनाते है घर
होते हैं तैयार
आने वाली किसी
आपदा विपदा के लिए
आओ सीखें
भूकंप और भूकंप पीडितों से कुछ
सजाएँ संभालें पिरोयें जीवंत करें
भूले बिसरे टूटे
अमान्य, मृतप्राय
रिश्तों को.

रविवार, 20 सितंबर 2015

प्यास

प्यास

प्याज में मात्र
भोजन की सीरत सूरत स्वाद सुगंध
बदलने की कूबत ही नहीं
सत्ता परिवर्तन की भी क्षमता है.
प्याज और सरकार
एक दूसरे के पर्याय हैं.
एक जैसे गुण अवगुण
एक जैसे भूमिगत तलघरों की तरह
एक के भीतर एक
परत दर परत खुलना
गोपनीयता यथावत.
हर बार बढती जिज्ञासा
अंततः हाथ खाली के खाली
और ऑंखें नम.
नहीं जानती
प्याज को सत्ता का नाम दूँ
या सत्ता को प्याज
या दोनों का संमिश्रण व संश्लेषण कर
प्या--स कहूँ
क्योंकि ये प्यास है बड़ी.

रविवार, 13 सितंबर 2015

पतन

पतन

सुना है गिरना बुरा है 
देखती हूँ  आसपास 
कहीं न कहीं,
कुछ न कुछ 
गिरता है हर रोज़.
कभी साख गिरना 
कभी इंसान का गिरना 
इंसानियत का गिरना
मूल्यों का गिरना   
स्तर गिरना 
कभी गिरी हुई मानसिकता
गिरी हुई प्रवृत्तियां.   
अपराध का स्तर गिरना 
नज़रों से गिरना 
और कभी 
रुपये का गिरना 
सोने का गिरना 
बाज़ार का गिरना 
सेंसेक्स गिरना 
और यहाँ तक 
कि कभी तो 
सरकार का गिरना
समझ नहीं पाती 
ये इनकी चरित्रहीनता है 
या 
गुरुत्वाकर्षण.

रविवार, 6 सितंबर 2015

कश्ती

कश्ती

आम बच्चों की तरह
कागज की कश्ती बनाना
उसे पानी में तैराना
तैरते देखना
खुश होना
तालियाँ बजाना
मैंने भी किया था
ये सब कभी.
पर मैंने बह जाने नहीं दी
कश्ती अपनी कभी.
आज भी सहेजी है.
सोचती हूँ
कभी तो फिर तैरेगी
बचपन की तरह.
अंतर इतना है
कभी मीठे
सोंधे पानी में
उबड खाबड
रास्तों से जाने वाली
मेरी कश्ती
जाने कबसे
तैरने लगी है
सीधे सपाट रास्तों पर
अनवरत,
निरंकुश,
अविरल
मात्र खारे पानी में
खारा पानी फिर चाहे
प्याज के होने का हो
या न होने का
या ......

रविवार, 30 अगस्त 2015

हाथ का मैल

हाथ का मैल
बचपन से सुनती आई हूँ 
आप सब की ही तरह  
पैसा ही जीवन है. 
पैसा आना जाना है.
पैसा हाथ का मैल है. 
समय के साथ 
बदलती परिभाषाओं ने
इसे भी अछूता नहीं छोड़ा 
बदल गई है 
इसकी किस्मत,
कीमत और तबियत
हमारें संस्कारों में
उच्चतम स्थान प्राप्त
व पाप धोने का साधन
गंगा हो गया है ये.
कितना अपमानित
महसूस कर रही होगी
माँ गंगा.
पैसे से अपनी तुलना
और पुल्लिंग सम्बोधन ...
पर ये सच है
पैसा पाप धोता है.
पाप धोने वाले 
या पाप धुलवाने वाले 
दोनों के हाथों को
सुगन्धित करता है.
बाजार में उपलब्ध
साधनों संसाधनों
में सर्वश्रेष्ठ है.
असरकारक है.
पैसा एक बेहतरीन,
सुगन्धित हैण्ड वाश है.

रविवार, 23 अगस्त 2015

दुआएं

दुआएं
कल के 
उस त्यौहार में 
पाप धोने के 
उस प्रयास में 
इंसान ही नहीं 
जानवरों ने भी दी दुआएं
वो रुपहली प्लेटे,
प्लास्टिक की 
डिज़ाइनर कटोरियाँ,
जरूर जानती हैं 
कोई वशीकरण मंत्र
खींचती हैं सबको अपनी ओर 
कुत्तों ने सूंघा, चाटा, खाया 
कुछ ने ढूंढी हड्डियां. 
इतना सब कुछ 
सब तरफ देख
होश खो बैंठीं गाय
बतियाती हुईं आयीं
लो हो गई आज की
किटी पार्टी पूरी
फिर क्या था 
क्या प्लेट
क्या कटोरी 
वाह...वो रंग बिरंगे
पालीथीन   
लाल, हरे, नीले, पीले, बैंगनी 
मिनटों में चट
मानों सफाई कर्मचारियों का दल था 
नहीं जानती 
कहाँ सहेजेंगे ये लोग 
इतनी दुआओं को.
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