tag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post2079680131477516844..comments2024-03-05T13:45:53.200+05:30Comments on रचना रवीन्द्र: समीकरणरचना दीक्षितhttp://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comBlogger38125tag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-11835535145568126712010-11-27T09:54:15.416+05:302010-11-27T09:54:15.416+05:30नारी का यह रूप स्वागतयोग्य है, इसी तरह मानसिक उर्...नारी का यह रूप स्वागतयोग्य है, इसी तरह मानसिक उर्जा का संचार होता रहे और नारी मुखर होती रहे तो समाज की संरचना को एक नया आयाम मिलेगा। बहुत खूब।धीरेन्द्र सिंहhttps://www.blogger.com/profile/12020246777509347843noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-1050474395110552902010-11-14T08:04:23.808+05:302010-11-14T08:04:23.808+05:30इस कविता में आपने नए भाव बोध के साथ अपने विचारों क...इस कविता में आपने नए भाव बोध के साथ अपने विचारों को सुंदर तरीके से अभिव्यक्त किया है ...शुभकामनायेंसंजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-25542402139870730712010-11-13T13:27:09.202+05:302010-11-13T13:27:09.202+05:30बहुत सुंदर रचना एक दम अलग हटके भाव लिए हुए !बहुत सुंदर रचना एक दम अलग हटके भाव लिए हुए !amar jeethttps://www.blogger.com/profile/09137277479820450744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-10828494694923820772010-11-13T08:36:23.974+05:302010-11-13T08:36:23.974+05:30स्वार्थ के रूप अलग अलग हो सकते है पर यदि हम सुख चा...स्वार्थ के रूप अलग अलग हो सकते है पर यदि हम सुख चाहते है तो बहुत कुछ स्वार्थ से होकर जाता है....भले उससे किसी का नुकसान ना हो पर इसे एक प्रकार का स्वार्थ ही कहते है...बढ़िया और एक अलग प्रकार की भाव से निहित कविता की प्रस्तुति की आपने...सही लगा...बधाई..विनोद कुमार पांडेयhttps://www.blogger.com/profile/17755015886999311114noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-18576935333962914102010-11-12T22:52:53.509+05:302010-11-12T22:52:53.509+05:30ekdam naya kuch likhi hain .bahut achchi lagi.ekdam naya kuch likhi hain .bahut achchi lagi.mridula pradhanhttps://www.blogger.com/profile/10665142276774311821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-6354699943365127422010-11-12T12:46:24.750+05:302010-11-12T12:46:24.750+05:30सही है
रचना हो तुम
रचनाकार हो तुम
सपना हो तुम
और ...सही है<br />रचना हो तुम <br />रचनाकार हो तुम<br />सपना हो तुम<br />और साकार भी हो तुम<br /><br />आपकी यह कविता अक अनूठे प्रश्न को आयाम दे गयी है रचना जी......... <br />सच ही तो है 'तजुर्बे का पर्याय नहीं'www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-77011942837027419102010-11-11T21:16:55.104+05:302010-11-11T21:16:55.104+05:30रचना जी , मेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद , आपके ...रचना जी , मेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद , आपके ब्लॉग को मैंने पहले भी देखा था ...आपकी रचनात्मकता लाजबाब है ...इस कविता में आपने नए भाव बोध के साथ अपने विचारों को सुंदर तरीके से अभिव्यक्त किया है ...शुभकामनायेंकेवल रामhttps://www.blogger.com/profile/04943896768036367102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-78296025556833086452010-11-11T13:03:26.299+05:302010-11-11T13:03:26.299+05:30bahut badi baat hai is rachna me..Rachna ji...aik ...bahut badi baat hai is rachna me..Rachna ji...aik kranti kee gunj hai... yah rachna kal charchamanch par rakhungi..aapka abhaarडॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीतिhttps://www.blogger.com/profile/08478064367045773177noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-85619244963462169302010-11-11T11:01:00.658+05:302010-11-11T11:01:00.658+05:30जीवन के समीकरण को जीवंत बनाती भावाभिव्यक्ति..... ...जीवन के समीकरण को जीवंत बनाती भावाभिव्यक्ति..... बहुत सुंदर डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-27333559808200653632010-11-11T09:50:18.418+05:302010-11-11T09:50:18.418+05:30इस धरती पर तुम्हार तुम होना,
सम्भव ही नहीं,
मेरे...इस धरती पर तुम्हार तुम होना,<br /><br />सम्भव ही नहीं,<br /><br />मेरे मैं हुए बिना. <br />जिस समर्पण भाव से औरत पति के लिये सब कुछ करती है वहीं पति का ये अंह उसे आहत कर देता है। कम से कम अपने बारे मे कब सोचना शुरू करेगी औरत जब भी करेगी तभी उसका ये अहं उसमे भी समर्पण भाव भर देगा<br />लेकिन औरत शायद ऐसा कभी न कर पाये कि केवल अपने लिये सोचे---- मुझे संशय है अगर कर भी देगी तो शायद ये समाज -- समाज नही रह जायेगा। जब दो अंह टकराते हैं तो क्या बचता है? आग बुझाने के लिये पानी ही चाहिये। शुभकामनायें।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-50524401169410116182010-11-10T23:22:17.631+05:302010-11-10T23:22:17.631+05:30इस धरती पर तुम्हार तुम होना,
सम्भव ही नहीं,
पूरी...इस धरती पर तुम्हार तुम होना,<br /><br />सम्भव ही नहीं,<br /><br />पूरी रचना के भाव बहुत अच्छे हैं .....<br />जहां एक दुसरे के प्रति ऐसी भावना हो प्यार वहीँ जिन्दा रहता है .....<br />मुबारकां .....!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-42904553390037060292010-11-10T17:37:44.118+05:302010-11-10T17:37:44.118+05:30सुर नर मुनि सबकी यह रीती/ स्वारथ लाग करें सब प्रीत...सुर नर मुनि सबकी यह रीती/ स्वारथ लाग करें सब प्रीती। सब से अलग हट कर एक रचना एक नई बात कहती रचना ।’ मेरे मै हुये बिना ’ इतनी गम्भीरता ला दी रचना में कि रचना अनेकार्थी हो गई हैBrijmohanShrivastavahttps://www.blogger.com/profile/04869873931974295648noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-42049847538377174172010-11-10T16:55:54.833+05:302010-11-10T16:55:54.833+05:30दर्द से उपजा ज्ञान।दर्द से उपजा ज्ञान।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-62177639321863329592010-11-10T13:35:14.130+05:302010-11-10T13:35:14.130+05:30सत्य कहा आपने।सत्य कहा आपने।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-23035565704718236232010-11-10T01:09:43.562+05:302010-11-10T01:09:43.562+05:30एक नया समीकरण बन गया ये तो!
अच्छा लगा ..:)...
तुमस...एक नया समीकरण बन गया ये तो!<br />अच्छा लगा ..:)...<br />तुमसे मैं हूँ मुझ से तुम!<br />नयापन लिए भावपूर्ण कविता .Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-26577746738574118032010-11-09T19:17:59.593+05:302010-11-09T19:17:59.593+05:30जिंदगी के गणित में नए समीकरणों के आयाम जोड़ती भाव प...जिंदगी के गणित में नए समीकरणों के आयाम जोड़ती भाव प्रवण रचना. आभार. <br />सादर,<br />डोरोथी.Dorothyhttps://www.blogger.com/profile/03405807532345500228noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-48183152487621170582010-11-09T16:52:10.968+05:302010-11-09T16:52:10.968+05:30sare rishte anyonyasrit hi to hain!!!
ek ke bina d...sare rishte anyonyasrit hi to hain!!!<br />ek ke bina duje ka astitva adhura hai!!!<br />samikaran ke tah ko talaashti sundar rachna!अनुपमा पाठकhttps://www.blogger.com/profile/09963916203008376590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-55777560137467243102010-11-09T16:49:20.307+05:302010-11-09T16:49:20.307+05:30अनोखा अंदाज़ है इस रचना में ... अपने आप को समझना औ...अनोखा अंदाज़ है इस रचना में ... अपने आप को समझना और समझाने की प्रक्रिया है इस रचना में .. लाजवाब .....दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-16619616183324277102010-11-09T16:23:26.433+05:302010-11-09T16:23:26.433+05:30मेरा अपना मानना है हम कुछ भी (Negative या Positive...मेरा अपना मानना है हम कुछ भी (Negative या Positive ) करें स्वार्थ तो होता ही है.<br /><br />".....सो अब से मैं ये उपवास रखूंगी तो सही,<br />पर अपनी लम्बी उम्र के लिए.<br />न की तुम्हारी."<br /><br />बेहद मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ.<br /><br />सादरYashwant R. B. Mathurhttps://www.blogger.com/profile/06997216769306922306noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-77081617097629375632010-11-09T16:18:07.575+05:302010-11-09T16:18:07.575+05:30मैंने रखे ये उपवास.
तुम्हारे दीर्घायु होने के लिए ...मैंने रखे ये उपवास.<br />तुम्हारे दीर्घायु होने के लिए नहीं, <br />अपने निजी स्वार्थ वश. <br />क्योंकि जानती हूँ.<br />तुम्हारे बिना मैं हूँ ही नहीं. <br />.......<br />sunder samikaranमेरे भावhttps://www.blogger.com/profile/16447582860551511850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-36471132636514472862010-11-09T15:37:58.460+05:302010-11-09T15:37:58.460+05:30अपने आप को सम्भव करने की कोशिश ??? दिल भर आया !!!...अपने आप को सम्भव करने की कोशिश ??? दिल भर आया !!! बिना अपने हुए हम इतना करते हैं ??? हम जीते कैसे हैं रचना !!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-32354999320642336302010-11-09T12:11:56.148+05:302010-11-09T12:11:56.148+05:30सही मे समीकरण बदल दिया……………सिर्फ़ इतना ही समझ आ जाय...सही मे समीकरण बदल दिया……………सिर्फ़ इतना ही समझ आ जाये तो ज़िन्दगी बेहद आसान और हसीन हो जाये……………बेहतरीन प्रस्तुति।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-31527440389998688632010-11-09T12:07:06.122+05:302010-11-09T12:07:06.122+05:30"क्योंकि जानती हूँ.
तुम्हारे बिना मैं हूँ ही ..."क्योंकि जानती हूँ.<br />तुम्हारे बिना मैं हूँ ही नहीं." <br />रचना जी,नमस्कार.प्रकृति और पुरुष के शास्वत संबंधों को स्वीकारने का यह अद्भुत अंदाज बहुत रास आया. आपकी रचनाओं में महसूसी गई सच्चाई से साक्षात्कार एक अच्छा अनुभव है मेरे लिए .Rajivhttps://www.blogger.com/profile/05867052446850053694noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-28785788352079501812010-11-09T08:34:07.957+05:302010-11-09T08:34:07.957+05:30बहुत खूबसूरत कविता ...बहुत खूबसूरत कविता ...Dr Xitija Singhhttps://www.blogger.com/profile/16354282922659420880noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3368247996105103027.post-48071867540212663282010-11-08T23:36:33.964+05:302010-11-08T23:36:33.964+05:30बहुत खूब ! शुभकामनायें स्वीकार करें ...बहुत खूब ! शुभकामनायें स्वीकार करें ...Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.com