रविवार, 31 जुलाई 2022

रुसवाई

रुसवाई 

 


ईरानी गलीचे पर फैलता इश्क 

गाव तकिये पर अपने आप को सहारा देते 

गिर गिर पड़ते शेर 

अपनी सरहदों को छोड़ हारमोनियम पर 

सर टिकाये 

काफ़िया - रदीफ़ 

तबले के भीतर चुपचाप पड़ी 

सहमी सी थापें 

आँखों से टपकते अशआर

कागज़ के सलीब पर टंगी 

कुछ बेजुबान नज्में 

बाँहों में मातम सी पसरने को बेताब 

अनगिनत, अनकही गज़लें मेरी 

होंठों की मुंडेरों पर ख़राशों से तराशे हुए 

इरशाद और मुक़र्रर से 

चंद अल्फाज़ 

भरे गले की सरहद पर 

फंदे से झूलती मौसिकी 

बंद कमरे की चारदीवारों के बीच 

मचलती बेबस हुस्न की रुसवाई 

ये और कुछ भी नहीं 

तुम्हारी न के जवाब में 

मेरी बेपनाह मुहब्बत की रुसवाई की हद है

24 टिप्‍पणियां:

  1. ओह , ऐसी भी क्या रुसवाई कि ग़ज़ल की जगह नज़्म लिख डाली । ग़ज़ल के सारे आयाम तय कर डाले । बहुत खूब ।

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    उत्तर
    1. 😆😆 संगीता दी लिखीं तो बहुत सारी नज्में और गजलें थीं पर अफसोस कि ये गज़ल मुकम्मल न हो सकी

      हटाएं
  2. वाह!! इश्क़ की इंतहा!! अनोखे रूपक

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना सोमवार 01 अगस्त 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. संगीता दी आभार आपका🙏🙏जल्दी ही पहुंचती हूं लिंको पर।

      हटाएं
  4. ये और कुछ भी नहीं
    तुम्हारी न के जवाब में
    मेरी बेपनाह मुहब्बत की रुसवाई की हद है....बेहतरीन अल्फाज़।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद जिज्ञासा जी आपकी टिप्पणी और ब्लॉग पर आगमन हेतु।

      हटाएं
  5. आभार अनीता जी 🙏जल्दी ही लिंको पर पहुंचने का प्रयास करती हूं।

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह्ह क्या अंदाज़े बयां है... बेहतरीन नज्म..।
    बिंब तो एक से बढ़कर एक है।
    रचना जी ...
    यूँ तो किसी के दर्द पर
    दाद देना गुनाह है
    पर हमने अक़्सर लोगों को
    रूसवाई पर
    इरशाद कहते सुना है
    शायद...
    इश्क़ का तरन्नुम वो गज़ल है
    जिसके अश्क़ में डूबे
    अल्फ़ाज़ को
    पैमानों में भरकर
    लुत्फ़ उठाने को
    बेहयाई नहीं
    दर्द की दवाई कहते हैं।
    ----
    सादर।

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    उत्तर
    1. देर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूं ।इतनी खुबसूरत टिप्पणी फिर आपकी बात से सहमत न होऊं ये संभव नहीं ।दर्द ही दर्द की दवा है।

      हटाएं
  7. वाह..वाह! क्या खूब अंदाज़ ए बयाँ है!

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    उत्तर
    1. देर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूं । उत्साहवर्धन के लिए आभार🙏

      हटाएं
    2. देर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूं। उत्साहवर्धन के लिए आभार🙏

      हटाएं
  8. भरे गले की सरहद पर
    फंदे से झूलती मौसिकी
    बंद कमरे की चारदीवारों के बीच
    मचलती बेबस हुस्न की रुसवाई...
    वाह!बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. देर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूं। उत्साहवर्धन के लिए आभार🙏अनीता जी

      हटाएं
  9. उत्तर
    1. देर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूं। उत्साहवर्धन के लिए आभार🙏

      हटाएं
  10. होंठों की मुंडेरों पर ख़राशों से तराशे हुए

    इरशाद और मुक़र्रर से

    चंद अल्फाज़
    वाह!!!
    अद्भुत बिम्ब
    बहुत ही लाजवाब नज्म

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. देर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूं। सुधा जी सराहना व उत्साहवर्धन के लिए आभार🙏

      हटाएं
    2. देर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूं।सुधा जी सराहना व उत्साहवर्धन के लिए आभार🙏

      हटाएं
  11. उत्तर
    1. देर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूं। उत्साहवर्धन के लिए आभार🙏विश्वमोहन जी 🙏

      हटाएं
  12. क्या बात है प्रिय रचना जी।एक भावपूर्ण अभिव्यक्ति जो मन मन को छू गई 🙏

    जवाब देंहटाएं
  13. प्रिय रेणु जी पहले तो देर से प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थी हूं। आपके मन को छू गई ये मेरे लिए उपहार सा है। उत्साहवर्धन के लिए आभार🙏

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