रविवार, 27 सितंबर 2015

रिश्तों में जीवन

रिश्तों में जीवन 

भूकंप में नहीं गिरते घर 
गिरते हैं मकान
मकान ही नहीं गिरते
गिरती हैं उनकी छतें
छतें भी यूँ ही नहीं गिरती
गिरती हैं दीवारें
गिरातीं हैं अपने साथ छतें
फिर अलग अलग घरों के
बचे खुचे जीवित लोग
मिल कर बनाते हैं
पहले से कहीं अधिक
मजबूत दीवारों वाले मकान
फिर बनाते है घर
होते हैं तैयार
आने वाली किसी
आपदा विपदा के लिए
आओ सीखें
भूकंप और भूकंप पीडितों से कुछ
सजाएँ संभालें पिरोयें जीवंत करें
भूले बिसरे टूटे
अमान्य, मृतप्राय
रिश्तों को.

रविवार, 20 सितंबर 2015

प्यास

प्यास

प्याज में मात्र
भोजन की सीरत सूरत स्वाद सुगंध
बदलने की कूबत ही नहीं
सत्ता परिवर्तन की भी क्षमता है.
प्याज और सरकार
एक दूसरे के पर्याय हैं.
एक जैसे गुण अवगुण
एक जैसे भूमिगत तलघरों की तरह
एक के भीतर एक
परत दर परत खुलना
गोपनीयता यथावत.
हर बार बढती जिज्ञासा
अंततः हाथ खाली के खाली
और ऑंखें नम.
नहीं जानती
प्याज को सत्ता का नाम दूँ
या सत्ता को प्याज
या दोनों का संमिश्रण व संश्लेषण कर
प्या--स कहूँ
क्योंकि ये प्यास है बड़ी.

रविवार, 13 सितंबर 2015

पतन

पतन

सुना है गिरना बुरा है 
देखती हूँ  आसपास 
कहीं न कहीं,
कुछ न कुछ 
गिरता है हर रोज़.
कभी साख गिरना 
कभी इंसान का गिरना 
इंसानियत का गिरना
मूल्यों का गिरना   
स्तर गिरना 
कभी गिरी हुई मानसिकता
गिरी हुई प्रवृत्तियां.   
अपराध का स्तर गिरना 
नज़रों से गिरना 
और कभी 
रुपये का गिरना 
सोने का गिरना 
बाज़ार का गिरना 
सेंसेक्स गिरना 
और यहाँ तक 
कि कभी तो 
सरकार का गिरना
समझ नहीं पाती 
ये इनकी चरित्रहीनता है 
या 
गुरुत्वाकर्षण.

रविवार, 6 सितंबर 2015

कश्ती

कश्ती

आम बच्चों की तरह
कागज की कश्ती बनाना
उसे पानी में तैराना
तैरते देखना
खुश होना
तालियाँ बजाना
मैंने भी किया था
ये सब कभी.
पर मैंने बह जाने नहीं दी
कश्ती अपनी कभी.
आज भी सहेजी है.
सोचती हूँ
कभी तो फिर तैरेगी
बचपन की तरह.
अंतर इतना है
कभी मीठे
सोंधे पानी में
उबड खाबड
रास्तों से जाने वाली
मेरी कश्ती
जाने कबसे
तैरने लगी है
सीधे सपाट रास्तों पर
अनवरत,
निरंकुश,
अविरल
मात्र खारे पानी में
खारा पानी फिर चाहे
प्याज के होने का हो
या न होने का
या ......
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