रविवार, 9 अगस्त 2015

सावन

सावन
सब कुछ साफ,
धुला, उजला,
हरा, चमकदार
निरंतर गति प्रवाह,
कर्णप्रिय ध्वनि संगीत
सब कुछ
लगता है अच्छा  
अखरता है
तो ठहराव,
जल भराव,
कीचड़, सडांध   
नमी, दरारें
उनमें उगते
जंगली घास फूस
काई, बिछलन, फिसलन.
वर्ष में कुछ निश्चित समय के लिए
अच्छा लग भी जाए ये,
पर मन के भीतर
रहता ये सावन जब तब.
करता है अवरुद्ध
भीतर के नाले नालियां,
तालाब, नदियाँ
फिर सैलाब की तरह
आता है ये सावन
कुछ भी नहीं दिखता हरा
हर तरफ मात्र श्वेत श्याम
भला ये भी कोई सावन हुआ
श्वेत श्याम.

(चित्र गूगल से साभार)

17 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 10 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद! "

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  2. बहुत उम्दा । मन का सावन सैलाब की तरह ही आता है ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सावन का बहुत मनभावन और सटीक चित्र खींचा है आपने. बर्षा आनंद के साथ परेशानियां भी संग लाती है.

      हटाएं
  3. सावन का बहुत मनभावन और सटीक चित्र खींचा है आपने. बर्षा आनंद के साथ परेशानियां भी संग लाती है.

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन शब्दों में ....लाजवाब रचना....

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत गहन और सुन्दर अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  6. बरसता सावन नेनो को भाए....भले ही मन में बिरह की आग जगाए ...
    स्वस्थ रहें ,,,,सुंदर रचना |

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  7. कविता को सराहने के लिए आप सब गुणीजनों का आभार.

    जवाब देंहटाएं
  8. सावन तो सावन है..जैसा भी हो मन भावन है..

    जवाब देंहटाएं
  9. क्या बात है !.....बेहद खूबसूरत रचना....
    समस्त ब्लॉगर मित्रों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं...
    नयी पोस्ट@यहाँ पधारिये

    जवाब देंहटाएं
  10. सावन मन भाबन साथ परेशानिया बाबन । पर सावन सुंदर है आप के कविता की तरह ।

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  11. मन का सैलाब भी कुछ ऐसा है ... सब कुछ बहा ले जाने के बाद हरा कहाँ रह पाता है ...
    गहरी रचना ...

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  12. हाँ यह तो सच है लेकिन वनस्पतियों और दूसरे कीट-पतंग की मौज भी तो इनसे ही है.

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