रविवार, 19 जुलाई 2015

याददाश्त

याददाश्त 

 मैं कुंठित हूँ,
व्यथित हूँ,
क्षुब्ध हूँ, 
क्या हृदय ही जीवन है ?
मैं भी तो हृदय की खुशी में खुश 
उसके दुख,
असफलता, 
दर्द, पीड़ा में 
उसके साथ ही 
ये सब अनुभव करता हूँ 
फिर हृदय ही क्यों 
क्या सही रक्तचाप, 
हृदय गति
रक्त विश्लेषण 
और
धमनियों में वसा 
न जमने देना ही 
जीवन है 
जब भी हृदय होता है 
क्षुब्ध, कुंठित, 
मैं सहमता हूँ, 
सिकुड़ता हूँ 
अवसादग्रस्त होता हूँ, 
भूल बैठता हूँ,
अपने आप को 
धीरे धीरे देता हूँ 
शरीर को
भूलने की बीमारी 
मैं, हाँ! मैं
मस्तिष्क का
उपेक्षित हिस्सा 
अध:श्चेतक (हाइपोथेलेमस) हूँ 
जब भी किसी
अनहोनी के बाद
आता है चिकित्सक
जांचता है,
देता है,
दवाइयां जाने किसकी. 
नहीं सोचता, है तो,
मेरे बारे में.

18 टिप्‍पणियां:

  1. हृदय और मस्तिष्क के मध्य यह द्वंद्व ही तो मानव को जीवन भर कचोटता रहता है..दिल को महत्व दो तो दिमाग उपेक्षित रह जाता है और दिमाग की सुनो तो दिल सूना सा अनुभव करता है..दोनों में दोस्ती हो जाये तो बात बन जाये

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  2. विज्ञानं और भावनात्मक जीवन में गहरा तारतम्य स्थापित करती हैं आपकी रचनाएं ...
    बहुत गज़ब की प्रस्तुति है ...

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  3. अच्छी और सच्ची रचना
    http://savanxxx.blogspot.in

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  4. लीक से हट कर सुन्दर यथार्थ परक रचना |

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  5. लीक से हटकर एक शानदार रचना प्रस्तुत की है आपने रचना जी !!

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  6. भावनाओं और सोच की प्रतिस्पर्धा कभी ख़त्म नहीं होती ....क्या सही क्या ग़लत

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  7. एक दम, अलग कविता ............गजब !! अच्छा लगा, नया पढ़ कर !

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  8. मस्तिष्क को आधार बना कर पीड़ा को अभिव्यक्ति प्रदान करना । पहली बार देखा है पढ़ा है । रोचक भी लगा ।
    बहुत जबरदस्त ।

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  9. पीड़ा को अनुभूत करने वाले की पीड़ा का अनोखा विश्लेषण ।

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  10. विज्ञानं और भावों का अद्भुत सामंजस्य...कुछ अलग सी लेकिन बहुत प्रभावी रचना..

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  11. मष्तिष्क को काव्य रूप में समझना बहुत रुचिकर लगा ...

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