रविवार, 26 मई 2013

दिल्ली का दिल

दिल्ली का दिल 

हमारे शहर में
कोई व्याकुल है
ब्याह रचाने को
तैयार हैं बाराती
बैंड बाजा घोड़ी गाड़ी.

पंडित करता है हर बार
एक तिथि की घोषणा
दुल्हन की तरफ से हर बार
आता है एक जवाब डाक्टर का
दुलहन को समय चाहिए.

दुलहन बीमार है
हर बार एक नई बीमारी
मलेरिया, डेंगू, अपच, लकवा, पीलिया
मुहसे और अब चेचक
पूरी देह पर बड़े बड़े गड्ढे धब्बे.

गर्द माटी से सनी देह
हाँ मेरे शहर का दिल
कनाट प्लेस बेताब है
पिछले चार सालों से
दुलहन बनने को.

हम सब उसे देखने को
इस बार फिर एक नई तिथि
मिली है उसको
तीस जून.

रविवार, 19 मई 2013

संकेत

संकेत


फूलों का खिलना एक
एक सकारात्मकता,
एक उत्सव, एक उल्लास, एक उत्पत्ति.

पास के एक गांव में
एक विशेष प्रजाति के बांस का झुरमुट
अचानक पट गया फूलों से

और पट गए
गावं के बुजुर्गों के माथे
चिंता की लकीरों से.

इन फूलों का खिलना.
एक नकारात्मकता, एक विपत्ति.
धरती माँ की छाती फटने का संदेश.

हाँ
कुछ गांवों में फल फूलों के साथ
अकाल के आने की ये दस्तक है.

रविवार, 12 मई 2013

पहेली

पहेली 

आजकल मेरे शहर में
जब तब होता है
बादलों का जमावड़ा
बादल की बाँहों में होती है
लुका छिपी वर्षा की
खुश होती हूँ
जानती हूँ दोनों के संगम से
जल्दी ही पनपेंगी
कुछ नन्हीं बूंदें
वर्षा की कोख में
होगी कुछ हलचल
फिर कौंध उठेगी बिजली
उठते ही प्रसव पीड़ा के
जन्म लेंगी नन्ही नन्ही बूंदे
बज उठेंगी थालियाँ
उतरेंगी नन्ही परियां धरती पर
पर कुछ भी नहीं हुआ ऐसा वहां
उठीं अनगिनत उंगलियां
सबने एक ही स्वर में कहा
बाँझ हो गई वर्षा
सोच नहीं पाती हूँ मैं
नहीं है कोई जवाब मेरे पास
वर्षा बाँझ हो गई
या बादल नपुंसक.

रविवार, 5 मई 2013

शमा

शमा


कहते हैं उसे
दर्द नहीं होता
वो किसी के प्यार में
पागल नहीं होता
पलक पांवड़े नहीं बिछाता
गिरता नहीं बिखरता नहीं
बूंद बूंद रिसता नहीं
बहता नहीं टूटता नहीं
कल एक मोमबत्ती को
दिए के प्यार में
जलते सुलगते
बिखरते टूटते
सीमाओं को तोड़ते देखा
और दिया
एक जलन तपिश
आग रौशनी थी उधर
फिर भी
अपनी ही सीमाओं में
बंधा शांत
एक ठहराव
एक अकेलापन
अचानक देखती हूँ
लौ के एक भाग का
टूटना गिरना स्याह होना
अँधेरे में खो जाना
क्या इसी को कहते
दीप तले अँधेरा.
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