रविवार, 7 जुलाई 2013

कभी यूँ भी ..

कभी यूँ भी ..

मेरे शहर का एक 
पांच सितारा होटल 
कागज का टपकता 
चाय का कप 
उसे सहारा देने को 
लगाया गया एक और कप 
दुबली पतली काली निरीह 
जाने कैसी चा..य ..
यूँ लगा उसे पानी कह कर पुकारूँ 
अगले ही पल सोचा 
पानी की इस तंगी में 
कल के अखबार की 
सुर्खियाँ ना बन जाए  
"पानी की आत्महत्या"
ढूंढती हूँ कप में चाय 
समझने लगती हूँ 
उसका दर्द  
कभी सजी संवरी सी रहने वाली वो 
दूध के दो छींटों बाद भी 
रोती बिलखती वो विधवा 
चाय और कॉफी
झांकती हूँ उसके कप में
उसे विधवा कहूँ, विधुर कहूँ 
क्या कहूँ, कुछ न कहूँ  
मेरे शहर का एक 
पांच सितारा होटल 
 
 
[५ जुलाई २०१३पुरानी दिल्ली का ओबेरॉय मैडेन  पांच सितारा होटल एक आयोजन जिसमे भाग लेने के लिए भरे थे मैंने ४६०००रूपये ]
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