रविवार, 31 मार्च 2013

पासवर्ड


पासवर्ड 

मैं पासवर्ड हूँ
अजब अनोखा
मैं हैक होना चाहता हूँ
हैंग होना चाहता हू
खो जाना चाहता हूँ
भुला देना चाहता हूँ अपने आपको
एक बार आजमा कर तो देखो
हां मैं तुम्हारा और केवल तुम्हारा
पासवर्ड हूँ.

और फिर

पिछले कुछ दिनों से
बस एक ही मैसेज
बार बार देखती हूँ
आपका अकाउंट किसी ने खोला था
क्या वो आप थीं ?
जोर डालती हूँ 
दिमाग पर.
याद आने लगता है 
सब कुछ.
स्पैम में चले जाते हैं
मुझे उलझन में
डालने वाले सपने
चुपचाप बिना कुछ कहे.
डिलीट होने लगे हैं.
बुरे सपने 
अपने आप ही.
मैमोरी फुल सी होने लगी है
अच्छे और सुखदाई सपनों की
पर बिना कुछ भी किये
ये सब कैसे...
साफ़ समझ आने लगा है...
हैक हो गया है 
"मेरे सपनों का पासवर्ड"
कहीं वो हैकर 
"तुम" तो नहीं .....

रविवार, 24 मार्च 2013

फागुन में

फागुन में



तन मेरा महुआ हुआ जाता है फागुन में,
हर घाव मरहम हुआ जाता है फागुन में.

ये खुमारी ये सिहरन अजब सी हवा में,
नशा भांग को हुआ जाता है फागुन में.

अंबर की सियाही से खत चाँद ने लिखा,
आंचल बदली का ढला जाता है फागुन में.

बालों की लटों से ढांप रखा है चेहरा उसने,
मुख  गुलाल हुआ जाता है फागुन में.

जाऊं न जाऊं कहाँ जाऊं ठहर जाऊं,
मन उसका बयार हुआ जाता है फागुन में.

भीगा सा तन मन है भीगा सा आंचल,
बिन उनके अंगार हुआ जाता है फागुन में.

मिलने की आस हो और मिल न पाए,
आँखों में रंग उतर आता है फागुन में.

तन मेरा महुआ हुआ जाता है फागुन में,
हर घाव मरहम हुआ जाता है फागुन में.

रविवार, 17 मार्च 2013

तुम्हारे लिये

तुम्हारे लिये

एक बार फिर
कल तुमने इतनी दूर से ही
मेरे मन मेरी आत्मा को
मेरे भीतर कहीं दूर तक छुआ.
तुम्हारे शब्द कानों के रास्ते
मेरे शरीर में अब तक 
घुल रहे हैं धीमे धीमे. 
और मैं भी
जानती हूँ ये सब
केवल मेरा मन रखने को
नहीं कहा था तुमने.
इतने इतने इतने सालों बाद भी
तुम्हारी आवाज़ में
वही नयापन वही सच्चाई वही खनक.
वही वही वही सब कुछ था.
तुमने जब कहा
दोपहर सोते हुए सपने में
तुमने मुझे देखा
मैं बोल रही थी उठ जाओ
नहीं तो रात को
नींद नहीं आएगी.
और तुम झपट कर उठ बैठे
फोन पर बताया
आज भी सपने में
मैं सिर्फ तुम्हें ही देखता हूँ.
मैं ... निःशब्द ...
मेरी आँखों की कोरों पे
चमक उठे थे
कुछ बेशकीमती मोती.
चुचाप समेट उन्हें
एक बार फिर
साँस की डोर में
पिरो लिया है
बस तुम्हारे लिए.

रविवार, 10 मार्च 2013

साँसे


साँसे 

जब दूर जा रहे थे
तुम मुझसे
मुझे डर था
तुम्हारे वियोग में
कहीं टूट कर बिखर कर
खो न जाएँ मेरी सांसें
तुमने अपने शीत गृह में
सहेज कर रख ली थीं
मेरी सांसें
हर चीज़ को सजाना
संवारना
सहेजना
तुम्हारी आदत जो है
जब ही मायूस हुई हूँ
कुछ खोया है मेरा
तुमने पल भर में ही
मेरा वो मुझे
लौटा दिया है
पर आज नहीं
आज जब मांगी थी
अपनी सांसें वापस
तुमसे
कनखियों से देख
बस मुस्कराए थे
अगले ही पल
उभरी थीं बेबसी
कुछ लकीरें
तुम्हारे चेहरे पे
तुमने कहा था
अब कहाँ वो शीत गृह
अब कहाँ वो सांसें
खोई हुई हैं
मेरी सांसे
तुम्हारी सांसों में
जाने तब से।

रविवार, 3 मार्च 2013

अहसास


अहसास
 

मेरे बालों में रह रह के,
महकता बादल.
मेरे होंठों पे,बसने को,
मचलता बादल.

मेरे बाजुओं में आकर के,
पिघलता बादल.
मेरी पाजेब से मिलकर के,
फिसलता बादल.

ये बादल नहीं,
स्पर्ष है किसी का.
जो तन मन भिगोये,
ये प्यार है उसी का.

मेरी सांसों में आकर के,
सुलगता ये बादल.
मेरी आँखों से जब तब,
छलकता ये बादल.

मेरी धडकनों में रह-रह के,
धधकता ये बादल
जिगरे नासूर से रह-रह के,
रिसता ये बादल.

ये बादल नहीं
अवसाद है किसी का.
जो मन को भिगोये,
ये अहसास है उसी का.
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