रविवार, 28 अक्तूबर 2012

आशा


आशा

तिमिरपान कर लेती हूँ जब, चिमनी सा जी जाती हूँ 
आँखों में भर जाए समंदर तो, मछली सा पी आती हूँ 

सर सर सर सर चले पवन जब खुशियाँ मैं उड़ाती हूँ 
शब्दों के तोरण से कानों में घंटे घड़ियाल बजाती हूँ   
अंतस की सोई अगन को मध्धम मध्धम जलाती हूँ 
मूक श्लोक अंजुरी में भर कर नया संकल्प दोहराती हूँ   

तिमिरपान कर लेती हूँ जब, चिमनी सा जी जाती हूँ 
आँखों में भर जाए समंदर तो, मछली सा पी आती हूँ 

जीवन के इस हवन कुण्ड में अपने अरमान चढ़ाती हूँ
क्षत विक्षत आहत सी सांसें कहीं कैद कर आती हूँ 
भूली बिसरी बातों पर फिर नत मस्तक हो जाती हूँ 
आशा की पंगत में बैठे जो उनका दोना भर आती हूँ
   
तिमिरपान कर लेती हूँ जब, चिमनी सा जी जाती हूँ 
आँखों में भर जाए समंदर तो, मछली सा पी आती हूँ 

हिचकी या सिसकी हो कोई उसको थपकी दे आती हूँ 
शूलों की पदचापों पर फिर अपना ध्यान लगाती हूँ 
घावों में भर जाय नमक तो खारा जल भर आती हूँ 
पीड़ा में पीड़ा को भर कर पीड़ा कम कर आती हूँ   

तिमिरपान कर लेती हूँ जब, चिमनी सा जी जाती हूँ 
आँखों में भर जाए समंदर तो, मछली सा पी आती हूँ

रविवार, 21 अक्तूबर 2012

उड़ान

उड़ान



मिलता है जब भी 
कोई संदेश सहसा 
सुखद या दुखद 
जाग उठती है उत्कंठा 
वहाँ सम्मिलित होने की 
सबसे मिलने की 
सुख दुःख साझा करने की 
तैयार होती हूँ अकेले ही 
जानती ये भी हूँ 
सब कुछ बदल गया होगा 
शहर, सड़कें, लोग
आरक्षण, ई आरक्षण, 
तत्काल आरक्षण,
दलालों के बीच भटकती, 
पिसती लौट आती हूँ   
खोलती हूँ विन्डोज़ 
हो जाती हूँ सवार माउस पर 
जकड़ती हूँ उँगलियों से कर्सर को 
खोलती हूँ गूगल मैप्स 
और फिर ...
मेरा गंतव्य शहर, 
मुहल्ला, गली मकान...
दस्तक देती हूँ कर्सर से
खुल जाती हैं मन की 
किवडियां, किवडियां,
गले मिलती हूँ सबसे 
चाची, मौसी, मामी, भाभी, भईया   
हँसती हूँ, मुस्कुराती हूँ, 
खिलखिलाती हूँ 
इस बीच...
आँखों की कोरों में दबे आँसू
टपकते हैं टप्प टप्प ...
कोई भांप न ले 
मेरे मन की व्यथा 
बंद करती हूँ विन्डोज़, 
खोलती हूँ खिड़की  
ओढ़ती हूँ चेहरे पर शालीनता
और बस ...

रविवार, 14 अक्तूबर 2012

आत्महत्या


आत्महत्या 
व्यथित होती हूँ
जब पढ़ती हूँ
समाज में व्याप्त व्यभिचार
तनाव, बेचैनी, हताशा.
भाग दौड में जीवन हारते लोग
हर रोज कितनी ही आत्महत्याएं 
पुलिस, तहकीकात, शोक सभाएं.
मेरे घर में भी हुईं
कल कुछ आत्महत्याएं.
हैरान हूँ, शोकाकुल हूँ.
असमंजस में हूँ
बन जाती हूँ.
कभी पुलिस,
कभी फोरेंसिक एक्सपर्ट,
कभी फोटोग्राफर. 
देखती हूँ हर कोने से
उठाती हूँ खून के नमूने
सहेजती हूँ बिखरे अवशेषों को.
नहीं जानती कोई कारण इसका.
मेरी बेरुखी...अनदेखी...
या व्यस्तता.
पर हां ये सच है
मेरे दिल में रची बसी
मेरी करीबी कुछ किताबों ने
मेरी ही अलमारी की
तीसरी मंजिल से कूद कर
आत्म हत्या कर ली.

रविवार, 7 अक्तूबर 2012

इज़हार

इज़हार 

आंसुओं में आज अपने, 
फिर नहा कर

मैं अपने दर्द का, 
इज़हार करना चाहती हूँ

दूर ही रहना ऐ खुशिओं,
पास तुम आना नहीं

मैं अभी कुछ और पल, 
इंतजार करना चाहती हूँ

आज तक पल छिन मिले,
सब शूलों के दंश से

मैं शूल दंशों से,
अपना श्रंगार करना चाहती हूँ

पीर का हर एक मनका,
बांध के रखा था जो

मैं उसी माला की,
भेंट चढ़ना चाहती हूँ

बात जो हमने कही, 
वो कंटकों सी चुभ गयी

मैं अपनी कही हर बात, 
वापस लेना चाहती हूँ

रास्ता हमने चुना जो, 
आज मुश्किल हो गया

एक पल जो सुख मिले, 
तो मौत के ही पल मिले

मैं इसी अहसास को, 
जीवित रखना चाहती हूँ

आज तुमको साथ में,
अपने रुला कर

मैं आंसुओं की फिर, 
बरसात करना चाहती हूँ

आंसुओं में आज अपने, 
फिर नहा कर

मैं अपने दर्द का, 
इज़हार करना चाहती हूँ
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