रविवार, 5 अगस्त 2012

वर्षा


वर्षा  

वर्षा के इस मौसम में, मेरा उर घट क्यों रीता है.
वर्षा के इस मौसम में, तो पौधा-पौधा जीता है.

दादुर के इस मौसम में, क्यों मन की कोयल गाती है.
उर के कोने- कोने में, क्यों कटु संगीत सुनाती है.

झींगुर के इस मौसम में, मेरी उर वीणा क्यों बजती है.
उर वीणा के क्षत-विक्षत तारों को जोड़ा करती है

वर्षा के इस मौसम में, मेरा उर घट क्यों रीता है.
वर्षा के इस मौसम में तो पौधा-पौधा जीता है.

माना वर्षा के बाद तो हर पत्ता-पत्ता रोता है,
अपने प्रियतम के जाने पर शोक मनाया करता है.

क्यों वर्षा के इस मौसम में मेरा उर मानव सोता  है,
वर्षा की ठंडी बूंदों से मन आह़त होता रहता है.
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