रविवार, 20 मई 2012

जलन


जलन






कैद में किसी के कभी रहती नहीं, 
बंद मुट्ठी से फिसलने का हुनर जानती हूँ.

सिर्फ साँसों - उसांसों से किसी की
मीलों का सफर करना जानती हूँ.

नमी किसी की रखती नहीं पास अपने
उसको दफ़न करना जानती हूँ.

घुलती नहीं साथ किसी के कभी
पर मिलने का सबब जानती हूँ.

बनता नहीं अकेले घर मेरा कभी
हिल-मिल के घर बनाना जानती हूँ.

रंग रूपहला, सुनहरा, स्याह अलग है मेरा.
रंगत की चमक बरकरार रखना जानती हूँ.

उड़ा ले जाये हवा  कहीं भी मुझे  
मैं अपना वजन रखना जानती हूँ.

चुप हूँ तो न जानो कुछ भी नहीं, 
कभी बबंडर बनना भी जानती हूँ.

सब मैं ही जानती हूँ कुछ तुम भी तो जानो
क्या जीने का सलीका मैं ही जानती हूँ?

भाड़ का चना बन के देखो तो जानो,
रेत हूँ मैं, रेत की जलन सिर्फ मैं जानती हूँ.

38 टिप्‍पणियां:

  1. अपने बारे में सब जानना ही अभीष्ट है..

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  2. बहुत सुंदर ....काश हिल मिल कर रहन रेत से ही सीख सकें ...

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  3. बहुत सुन्दर भाव संयोजन्।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर
    और बेहतरीन प्रस्तुति:-)

    जवाब देंहटाएं
  5. नारी हृदय की कोमलकांत संवेदनाओं को संबल देकर दृढ बनाती सुन्दर रचना ........बधाई

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन भावों का अदभुत संयोजन

    जवाब देंहटाएं
  7. मेरी चुप्पी में भी तूफ़ान है..................

    बहुत सुंदर भाव....

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  8. सब मैं ही जानती हूँ कुछ तुम भी तो जानो क्या जीने का सलीका मैं ही जानती हूँ?
    भाड़ का चना बन के देखो तो जानो, रेत हूँ मैं, रेत की जलन सिर्फ मैं जानती हूँ.

    वाह ,,,, बहुत सुंदर भाव लिये रचना,,,अच्छी प्रस्तुति

    RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....

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  9. bahut dhardar sher... khas taur par antim sher... ret ka jalan.. naya prayog hai.. bahut khoob...

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  10. यह विश्वास बना रहे ....
    शुभकामनायें आपको

    जवाब देंहटाएं
  11. जो विपरीत परिस्तिथियों में जीना सीख जाए , वही जिन्दा रह सकता है .
    adaptation इसी को कहते हैं .
    सुन्दर भाव .

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  12. बेहतरीन भावों का ताना-बाना इस अभिव्‍यक्ति में ...आभार ।

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  13. रेत के माध्यम से जीवन दर्शन ही बयान कर दिया आपने रचना जी, प्रभावशाली कविता !

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  14. सशक्त अभिव्यक्ति...... बहुत बढ़िया

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  15. अलग अंदाज़ लिए हर शेर ...
    रेत की जलन सहने वाला ही जनता है ... सच कहा है ..

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  16. बहुत सुन्दर भाव लिए रचना |
    "कैद में किसीके कभी रहना जानती नही ,
    बंद मुठ्ठी से फिसलना जानती हूँ "बहुत उंदा
    आशा

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  17. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति....बधाई .

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  18. चुप हूँ तो न जानो कुछ भी नहीं,
    कभी बबंडर बनना भी जानती हूँ.

    अर्थपूर्ण शेरों से सजी अच्छी गजल।

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  19. आपने बहुत ही सुंदर भावों को सजाकर प्रस्तुत किया है । कविता का अंदाज एवं शैली अच्छी लगी । मेरे पोस्ट पर आपका निमंत्रण है । धन्यवाद ।

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  20. नमी किसी की रखती नहीं पास अपने उसको दफ़न करना जानती हूँ.
    Bilkul sahee kaha aapne!

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  21. awesome...
    pahla sher hi kamaal kar gaya... gajab ka descripton...

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  22. आप के शब्दों में आप का परिचय ...बहुत सुंदर,सशक्त और सार्थक !
    शुभकामनाएँ!

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  23. उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  24. सुगठित ...सुनियोजित ...और गहन भाव भी ...!!!
    बहुत सुंदर रचना है .....!!
    रचना जी बधाई एवम शुभकामनायें....!!

    जवाब देंहटाएं
  25. कल 29/05/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  26. गहन भाव लिए पंक्तियाँ...आभार...

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  27. अपने आप को जान लेना ...खुद में पूर्णता की अनुभूति हैं ....

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  28. वाह रचनाजी ...रेत की मानिंद हूँ ...क़ैद करो न मुझको तुम ....जितना भींचोगे.....गिरफ्त से निकल जाऊंगी

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  29. उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  30. आपका भी मेरे ब्लॉग मेरा मन आने के लिए बहुत आभार
    आपकी बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना...
    आपका मैं फालोवर बन गया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी,......
    मेरा एक ब्लॉग है

    http://dineshpareek19.blogspot.in/

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  31. बहुत अच्छी भावपूर्ण अभिव्यक्ति, बधाई.

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  32. बहुत खूब...

    इस बेहतरीन शेर को संपादित करना चाहिए, ऐसा लगता है..

    भाड़ का चना बन के देखो तो जानो,
    रेत हूँ मैं, रेत की जलन सिर्फ मैं जानती हूँ.

    दूसरे मिसरे में रेत हूँ, कह चुकने के बाद रेत की जलन न लिखकर जलती कड़ाही में जलने की पीड़ा का भाव आ जाता तो क्या गज़ब लगता।

    रेत हूँ, कड़ाही में जलना सिर्फ मैं जानती हूँ..या कुछ ऐसा ही..
    कृपया अन्यथा न लें..मेरे मन के भाव हैं गलत भी हो सकते हैं।
    सादर।

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