रविवार, 22 अप्रैल 2012

परिवर्तन या स्थाइत्व

परिवर्तन या स्थाइत्व 



पिछली कविता की व्यथा
कल सागर को क्या सुना दी
मेरी बात समाप्त होने से पहले ही
हाहाकार कर चीत्कार उठा वो
भिगो गया मुझे नख शिख
बोला,
परिवर्तन के लिए मुझे बाध्य करेगा जो
मिटा दूँगा उसे, समाहित कर लूँगा अपने में
मैं भयभीत हो भागने को आतुर हुई.
सो बोल उठा, 
ये तो बस एक ही पहलू है
नदी तो शांत, सौम्य, मृदुल और मीठी होती है
संस्कारी पुरुष, धर्म गुरु, साध्वी, माताएं आती हैं यहाँ.
करते हैं वे आचमन, आराधना, अर्चना और स्नान.
धुल जाते है पाप, 
हो जाता है शांत चित्त.
और मैं..., मैं..हूँ.
"मेचो मैन" "लेडीज़ किलर"
न जाने कितनी ही नदियाँ, उनकी धाराएँ,
कल कल का नाद लिए मीलों का सफर तय कर
मुझमें समाहित होने को आतुर होती हैं.
मुझमें समाहित होती हैं.
अनगिनत बिकनी बालाएं नमकीन होने को,
नमक इश्क का चखने को
खिंची चली आती हैं मेरी ओर.
फिर परिवर्तन क्यों और कैसा?
लौट आई मैं
शायद हर कोई बाध्य नहीं है परिवर्तन को.
मात्र दुर्बल और असहाय ही विवश
किए जाते हैं...
या हो जाते हैं ?

34 टिप्‍पणियां:

  1. नदी और सागर के माध्यम से की गई बहुत प्रभावशाली अभिव्यक्ति ....शुभकामनाएँ ।

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  2. वाह............

    अद्भुत...
    बेहद प्रभावशाली रचना.....
    सादर.

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  3. बिल्कुल नई सोच के साथ नई कविता ।
    यदि सब अच्छा ही अच्छा हो रहा हो तो बदलने का दिल किसका करता है ।
    अंतिम पंक्तियों में कड़वी सच्चाई है ।

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  4. दबाना कहें या परिवर्तन .... पर अन्दर ज्वालामुखी होती है, जो असली परिवर्तन लाती है
    यह रचना एक परिवर्तन का ही स्वरुप है या विरोध या निःसहाय स्वीकृति या उद्वेलित प्रश्न !

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  5. बलशाली परिवर्तित नहीं होते..
    परिवर्तन तो विनीत और सरल लोगों के लिए होता है...

    बहुत ही प्रभावशाली रचना...

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  6. आपकी कवितायें काफी समय से पढ़ रहा हूँ.. शायद ही कोई छूटी हो.. हर कविता एक नए अन्दाज़ में, एक नयी बात कहती है, एक नयी सोच को जन्म देता है.. यह कविता तो नदी और सागर के बिम्बों के सहारे परिवर्तन की एक नयी परिभाषा रचती है!!

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  7. नदी और सागर के संदर्भमें....बहुत सुन्दर रचना...बधाई!

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  8. कभी कभी परिवर्तन इतना सूक्ष्म होता है की खुद कों भी पता नहीं चलता ... शायद सागर के साथ भी ऐसा ही कुछ है ...

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  9. प्रशंसनीय प्रस्तुति....शुभकामनाएँ

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  10. सागर और नदी के प्रतीकों में बहुत गहरे भावों को प्रश्न बना कर खड़ा कर दिया है.

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  11. सागर बल शाली है सो न बदलना चाहे तो उसकी मर्जी...पर नदी को तो बदलना ही होता है हर मौसम में, हर मोड़ पर...प्यास बुझानी हो तो नदी ही काम आती है.

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  12. नदी-नाले उस सागर की चिंता करें भी क्यों जिसके पास इतना कुछ है फिर भी वह चिंतित है अपने अस्तित्व में थोड़े-बहुत परिवर्तन की बात मात्र से। जो जहां है,जितना है जिसके पास,उसी में खुश रहे,हाए, सागर को भी नसीब नहीं हुआ यह!

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  13. शायद हर कोई बाध्य नहीं है परिवर्तन को
    मात्र दुर्बल और असहाय ही विवश
    किए जाते हैं
    या हो जाते हैं

    सटीक बिंब के माध्यम से सत्य की अभिव्यक्ति।

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  14. कविता में प्रयुक्त बिंब थोड़े कठिन हैं समझने को। फिर भी परिवर्तन को सही माना जा सकता है।

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  15. बहुत ही सार्थकता लिए सशक्‍त अभिव्‍यक्ति ।

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  16. सोचने को विवश करती है कविता...सचमुच क्या परिवर्तन निर्बल..दमित लोगों को की ही कोशिश का नतीजा है..
    प्रभावशाली रचना

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  17. सुन्दर, ख़ूबसूरत भावाभिव्यक्ति .

    कृपया मेरे ब्लॉग meri kavitayen की 150वीं पोस्ट पर पधारने का कष्ट करें तथा मेरी अब तक की काव्य यात्रा पर अपनी प्रति क्रिया दें , आभारी होऊंगा .

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  18. दुर्बल और असहाय समय के साथ स्वयं को बदलते रहते हैं. कुछ मजबूरी के साथ, कुछ विवेक के साथ. सुंदर कविता.

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  19. प्रभावशाली रचना के लिए बधाई !
    शुभकामनायें !

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  20. सागर का अपने पर इतना घमंड ...ये तो सही नहीं हैं ....परिवर्तन ही इस संसार का नियम हैं

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  21. आखिर में बहुत अच्छा सवाल पूछा है आपने...परिवर्तन के लिए असहाय और दुर्बलों को ही क्यों बाध्य किया जाता है?

    ...जवाब सभी के शायद अलग अलग होंगे...लेकिन यह रचना बहुत ही उत्तम है....बधाई!

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  22. अद्भुत रचना सागर और नदी का एक सटीक और सजीव चित्रण भींगा गया काव्य की लहरों में, बधाई कल्पना के इस नए आयाम को.

    जवाब देंहटाएं
  23. अद्भुत रचना सागर और नदी का एक सटीक और सजीव चित्रण भींगा गया काव्य की लहरों में, बधाई कल्पना के इस नए आयाम को.

    जवाब देंहटाएं
  24. lajabab rachana ke liye abhar Rachana ji ...vakai bahut achchha likh rahi hain ap.

    जवाब देंहटाएं
  25. अनगिनत बिकनी बालाएं नमकीन होने को,
    नमक इश्क का चखने को
    खिंची चली आती हैं मेरी ओर.
    फिर परिवर्तन क्यों और कैसा?
    लौट आई मैं
    शायद हर कोई बाध्य नहीं है परिवर्तन को.



    बाध्य कर दिया आपने चिन्तन के लिए....
    अपनी कविता के माध्यम से कुछ न कुछ चिन्तनीय छोड़ जाती हैं आप,
    यह परिवर्तन को उगाना है..

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  26. sach kaha parivartan durbal aur nisahay logo ki hi majboori hai shayad..shaktishali nhi badalna chahta....very unique poem :)

    मत भेद न बने मन भेद - A post for all bloggers

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