रविवार, 13 नवंबर 2011

चाय


चाय


तुम्हारी भूरी आँखों से झरती 

वो गोल दानेदार शरारत
चाय के पानी सी उबलती मेरी सांसें.  
शहद के दो बूंद सी
उसमें मिलती तुम्हारी सांसें 

और नींबू की बूंद का एक कतरा भी नहीं.. 
बस नीबूं की फांक से 
तुम्हारे अधर
और मैं ...
चमक उठी, खिल उठी 
सुनहरी हो गयी.

रविवार, 6 नवंबर 2011

चाँद

चाँद 
इस करवा चौथ
मैंने भी व्रत रखा 
निर्जला औरों की तरह.
रात सबने चाँद को पूजा 
और चली गयीं
अपने अपने चाँद के साथ 
अपने अपने चाँद के पास.
अकेला रह गया 
आस्मां का वह चाँद और
मैं...
मैंने उसे बुलाया 
अपनी दोनों हथेलियों के बीच
कस कर उसे भींचा    
दोहरा किया और छुपा लिया 
तकिये के नीचे.
सोने की नाकाम कोशिश 
पर न जाने कब 
चाँद सरक गया 
रह गयी तो बस 
गीली हथेलियाँ और तकिया. 
नहीं जानती 
मेरी आँखों के समंदर में 
सैलाब आया था 
या रात चाँद बहुत रोया था 
हाँ पर सूरज 
जरुर मुस्कुरा रहा था.
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