रविवार, 25 सितंबर 2011

आगोश

आगोश 




रात के आगोश से सवेरा निकल गया, 

समंदर को छोड़ कर किनारा निकल गया.   


रेत की सेज पे चांदनी रोया करी,   

छोड़ कर दरिया उसे, बेसहारा निकल गया.


सोई रही जमी, आसमाँ सोया रहा, 

चाँद तारों का सारा नज़ारा निकल गया.


ठूंठ पर यूँ ही धूप ठिठकी सुलगती  रही, 

साया किसी का थका हारा निकल गया. 


गूंगे दर की मेरे सांकल बजा के रात, 

कुदरत का कोई इशारा निकल गया.  


घुलती रही मिसरी कानों में सारी रात,

हुई सुबह तो वो आवारा बंजारा निकल गया.


बाँहों में उसकी आऊं, पिघल जाऊं,
ख्वाब ये मेरा कंवारा निकल गया.

मेरी तस्वीर पे अपने लब रख कर, 

मेरे इश्क का वो मारा निकल गया.

चित्र मेरे कैमरे से, अन्य चित्रों के लिये मेरे दूसरे ब्लॉग "Perception" जिसका पता है shashwatidixit.blogspot.com, पर भी जाएँ.

46 टिप्‍पणियां:

  1. rachna ji
    bahut bahut hi bhavo se saji hai aapki rachna.sach me man ke ke andar chalne wale bhavo ko bakhubi shabd diye hain aapne
    bahut bahut badhai

    deri se aane ke liye xhama chahti hun.
    dhanyvaad sahit
    poonam

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय रचना दीक्षित जी
    नमस्कार !
    रात के आगोश से सवेरा निकल गया,
    समंदर को छोड़ कर किनारा निकल गया.
    ....सुन्दर भाव भीनी अभिव्यक्ति यह अन्दाज़ तो एकदम जुदा
    .....मन को छूती बेहतरीन रचना !

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  3. बहुत खूब, ज़िन्दगी ऐसे ही रूप दिखाती है।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर चित्र के साथ खूबसूरत भावनाओं की सफल अभिव्यक्ति.

    जवाब देंहटाएं
  5. गूंगे दर की मेरे सांकल बजा के रात,
    कुदरत का कोई इशारा निकल गया.


    बाँहों में उसकी आऊं, पिघल जाऊं,
    ख्वाब ये मेरा कंवारा निकल गया.

    वाह , आज तो बदले बदले से सरकार नज़र आते हैं ... खूबसूरत गज़ल

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  6. वाह रचना दी, मैंने बहुत प्रयाश किया कि मैं यह निर्णय कर सकूँ कि आपकी गजल की सबसे सुंदर शेर कौन सी हैं, किंतु असमर्थ रहा,क्योंकि हर अगली लाइन पिछली लाइन से बेहतर व खूवसूरत है। बहुत खूब।सुंदर प्रस्तुति के लिये बहुत-बहुत बधाई।

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  7. खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति....

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  8. खूबसूरत ग़ज़ल..चित्र भी बोलते से प्रतीत हो रहे हैं....

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  9. बहुत सुन्दर रचना जी । क्या खूबसूरत ग़ज़ल कही है ।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुन्दर , सार्थक रचना , सार्थक तथा प्रभावी भावाभिव्यक्ति ,

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सुन्दर , सार्थक रचना , सार्थक तथा प्रभावी भावाभिव्यक्ति ,

    जवाब देंहटाएं
  12. बाँहों में उसकी आऊं, पिघल जाऊं,
    ख्वाब ये मेरा कंवारा निकल गया.

    मेरी तस्वीर पे अपने लब रख कर,

    मेरे इश्क का वो मारा निकल गया.
    Aah!

    जवाब देंहटाएं
  13. बाँहों में उसकी आऊं, पिघल जाऊं,
    ख्वाब ये मेरा कंवारा निकल गया.

    उफ़ चंद शब्दो मे ही सारा हाल-ए-दिल बयाँ कर दिया।

    जवाब देंहटाएं
  14. आदरणीय रचनाजी,नमस्कार !
    ज़िन्दगी ऐसे ही रूप दिखाती है।

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  15. वाह बहुत खूबसूरत और लयबद्ध.

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  16. प्रिय श्रेष्ठ माफ़ी चाहते हैं ,समय से संवाद नहीं करने का ,कारन ,अपनी एक ,पुस्तक प्रकाशन सम्बन्धी व्यस्तता / आपके आशीष की कामना... आगे समुन्नत सृजन के लिए बधाई /

    जवाब देंहटाएं
  17. ठूंठ पर यूँ ही धूप ठिठकी सुलगती रही,
    साया किसी का थका हारा निकल गया.

    गूंगे दर की मेरे सांकल बजा के रात,
    कुदरत का कोई इशारा निकल गया.

    nayi soch aur naye shabdo ko aayam deti sunder rachna.

    जवाब देंहटाएं
  18. घुलती रही मिसरी कानों में सारी रात,
    हुई सुबह तो वो आवारा बंजारा निकल गया।

    बहुत प्यारी ग़ज़ल।

    जवाब देंहटाएं
  19. सोई रही जमी, आसमाँ सोया रहा,
    चाँद तारों का सारा नज़ारा निकल गया.

    ठूंठ पर यूँ ही धूप ठिठकी सुलगती रही,
    साया किसी का थका हारा निकल गया.


    बेहद खूबसूरत गज़ल ....

    जवाब देंहटाएं
  20. रचना जी !आपकी इस रचना में इंसानी ज़ज्बात मानसून के बादलों की तरह उमड़ते-घुमड़ते नज़र आ रहे हैं . बधाई और शुभकामनाएं .

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  21. ठूंठ पर यूँ ही धूप ठिठकी सुलगती रही,

    साया किसी का थका हारा निकल गया.
    bahut hi badhiyaa

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  22. सुन्दर चित्र के साथ बहुत बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है ! बेहतरीन प्रस्तुती!

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  23. बेहतरीन गजल... बहुत उम्दा शेर कहे हैं जो सीधे दिल से निकले हैं... बधाई!

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  24. सुन्दर चित्र के साथ बहुत बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखा..बेहतरीन रचना !

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  25. गज़ल शैली में लिखी यह रचना आपकी अन्य रचनाओं से भिन्न होते हुए भी सुन्दर है!!

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  26. बाँहों में उसकी आऊं, पिघल जाऊं,
    ख्वाब ये मेरा कंवारा निकल गया.

    ....लाज़वाब...हरएक शेर दिल को छू जाता है..बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं




  27. आपको सपरिवार
    नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  28. मेरी तस्वीर पे अपने लब रख कर,
    मेरे इश्क का वो मारा निकल गया...

    बहुत कमाल का शेर है ... क्या बात है ...

    जवाब देंहटाएं
  29. सुन्दर ग़ज़ल.
    हर शेर बढ़िया.

    जवाब देंहटाएं
  30. गूंगे दर की मेरे सांकल बजा के रात,

    कुदरत का कोई इशारा निकल गया.


    घुलती रही मिसरी कानों में सारी रात,

    हुई सुबह तो वो आवारा बंजारा निकल गया.

    रचना जी बहुत सुंदर भावभीनि रचना.

    जवाब देंहटाएं
  31. बेहतरीन रचना ! पहली पंक्ति से ही मन मोह लिया ...

    जवाब देंहटाएं
  32. ठूंठ पर यूँ ही धूप ठिठकी सुलगती रही,

    साया किसी का थका हारा निकल गया.

    बहुत ही ख़ूबसूरत लिखा है..

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  33. चलिए आज़ाद हुआ.
    रचना माँ,
    नमस्ते!
    आशीष
    --
    लाईफ़?!?

    जवाब देंहटाएं
  34. सोई रही जमी, आसमाँ सोया रहा,
    चाँद तारों का सारा नज़ारा निकल गया.

    बहुत खूब...बधाई|

    जवाब देंहटाएं
  35. सोई रही जमी, आसमाँ सोया रहा,
    चाँद तारों का सारा नज़ारा निकल गया.

    बहुत खूब...बधाई|

    जवाब देंहटाएं
  36. रात के आगोश से सवेरा निकल गया,
    समंदर को छोड़ कर किनारा निकल गया...
    खूबसूरत ग़ज़ल...

    जवाब देंहटाएं
  37. रात के आगोश से सवेरा निकल गया,
    समंदर को छोड़ कर किनारा निकल गया.bahut khub.

    जवाब देंहटाएं
  38. I have the same type of blog myself so I will come back back to read again.

    जवाब देंहटाएं

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