रविवार, 7 अगस्त 2011

गुमनाम विरासत


गुमनाम विरासत 
     

सदियों पुरानी, टूटती गिरती, बेजान ईमारत
और हम ........
खड़ी कर देते हैं उसके चारों ओर
इक चहारदिवारी 
घोषित करवा देते हैं उसे "धरोहर"
  
कभी हमारे घर की 
जीती जागती विरासत 
तंग आकर हमसे ही 
खींच लेती है आप ही अपने चारों ओर 
इक चहारदिवारी.

कितनी ही बार उजड़ने बसने की
दास्ताँ बयां करती हैं वो       
सदियों पुरानी, टूटती गिरती, बेजान ईमारत.
पर अपने ही घर की विरासत के
चेहरे पर पढ़ नहीं पाते.

उजड़ने, बसने और बिगड़ने के जद्दोजहद की लकीरें 
पुराने अवशेषों को जीवंत करने की कवायत में
उन इमारतों को उनका चेहरा लौटाने  को 
चिनाई में लगाते हैं गोंद, चूना, सुर्की.

अपनी विरासत की
कमजोर. कांपती, टूटती, 
चरमराती हड्डियाँ 
नहीं नजर आती कभी ख्वाब में.

कभी चमकाने को खंडहर की सूरत 
पलस्तर करके
चढ़ा देते हैं मोटी मोटी परतों में 
संगमरमर का पाउडर, 
बेल का शीरा, उड़द की दाल.

अपने घरों में नहीं नसीब होती 
दो जून की रोटी उन्हें 
रौशन घरों के इन्हीं किन्हीं कमरों के 
चका चौंध अंधेरों में बसती हैं  
हमारी अपनी वो गुमनाम विरासतें....    

(प्रस्तुत चित्र हम्पी में हांथियों के अस्तबल का है जिसे गूगल से साभार लिया गया है) 

52 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा ॥ खँडहर हुई इमारतों पर तो चूना सीमेंट लगाकर मरम्मत कर दी जाती है । लेकिन बासी होते रिश्तों की ओर कोई ध्यान नहीं देता ।
    शायद मेटीरियल युग का ही यह अंजाम है ।

    कुछ ऐसा ही चित्र दिल्ली के पुराना किला का भी है ।

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  2. कभी हमारे घर की
    जीती जागती विरासत
    तंग आकर हमसे ही
    खींच लेती है आप ही अपने चारों ओर
    इक चहारदिवारी... bahut hi gambheer baat hai, kash samajh me yah baat aa jati

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  3. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति , आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. "अपनी विरासत की कमजोर. कांपती, टूटती, चरमराती हड्डियाँ नहीं नजर आती कभी ख्वाब में"

    कवि/लेखक का सामाजिक दायित्व निभाते हुए गहन चिंतन से परिपूर्ण प्रेरक प्रस्तुति - साधुवाद

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  5. mulyavan vichar pravah kavy ko aadhar dete huye ,virasat ko sadaiv saga samajhane ki koshish ko samman ..
    kash kuchh achha kar paate ... shukriya ji

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  6. आपकी कवितायेँ आदमी को आदमी बने रहे देने की जद्दोजहद की मनोवैज्ञानिक कोशिश होती है... हम खुद को कैसे खँडहर में तब्दील कर देते हैं पता नहीं चलता... सुन्दर कविता..

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  7. नया विषय और अंदाज़ ....
    शुभकामनायें आपको !

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  8. अपने घरों में नहीं नसीब होती दो जून की रोटी उन्हें रौशन घरों के इन्हीं किन्हीं कमरों के चका चौंध अंधेरों में बसती हैं हमारी अपनी वो गुमनाम विरासतें..

    बहुत मार्मिक और संवेदन शील रचना .. अच्छी प्रस्तुति

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  9. @सदियों पुरानी, टूटती गिरती, बेजान ईमारत
    और हम ........
    खड़ी कर देते हैं उसके चारों ओर
    इक चहारदिवारी
    घोषित करवा देते हैं उसे "धरोहर"---------
    -----बहुत खूबसूरत.

    जवाब देंहटाएं
  10. मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
    एस .एन. शुक्ल

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  11. गुमनाम विरासतें अपना इतिहास स्वयं कहें।

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  12. अलग विषय/अलग अंदाज़.
    वाह, क्या बात है.

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  13. एक अलग अंदाज में अपनी बात कहने का ढंग अच्छा लगा , बधाई

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  14. धरोहर अपने आप में क्या-क्या समेटे रहती है. हमसे कुछ कहना चाहती है पर हम सुनते कहाँ है . बहुत सुन्दर लिखा है.

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  15. कभी हमारे घर की
    जीती जागती विरासत
    तंग आकर हमसे ही
    खींच लेती है आप ही अपने चारों ओर

    इमारतों को विरासत समझ कर शायद अधिक साज संवर कर लेते हैं लोग लेकिन आज के युग में घर की जीती जागती विरासत के प्रति आपके विचार बहुत सुंदर हैं.

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  16. gambheer chintata ka vishay hai ye...aapka lekhan bahut prabhavit karta hai.......

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  17. भावनाओं के महल एक एक कर ध्वस्त होते जा रहें हैं, या फिर तरह-तरह की दीवारों में क़ैद। उनकी दीवारों पर चूना-पत्थर लगाकर कामचलाऊ तो बनाया जा सकता है टिकाऊ नहीं}

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  18. कभी हमारे घर की
    जीती जागती विरासत
    तंग आकर हमसे ही
    खींच लेती है आप ही अपने चारों ओर
    इक चहारदिवारी...

    खूब शब्द चुने रचना जी...... अलग से विषय पर रची बेहतरीन कविता

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  19. सतह पर आने के बाद अवशेष खुद अपनी दास्ताँ कहते हैं...

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  20. कभी हमारे घर की
    जीती जागती विरासत
    तंग आकर हमसे ही
    खींच लेती है आप ही अपने चारों ओर
    sunder bhav uttam likha hai
    rachana

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  21. कितनी ही बार उजड़ने बसने की
    दास्ताँ बयां करती हैं वो
    सदियों पुरानी, टूटती गिरती, बेजान ईमारत।
    पर अपने ही घर की विरासत के
    चेहरे पर पढ़ नहीं पाते।

    पुरानी पीढ़ी के प्रति संवेदनाहीन होते समाज को संदेश देती हुई यह कविता बहुत अच्छी लगी।
    यह कविता आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करती है।

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  22. कितनी ही बार उजड़ने बसने की
    दास्ताँ बयां करती हैं वो
    सदियों पुरानी, टूटती गिरती, बेजान ईमारत.
    पर अपने ही घर की विरासत के
    चेहरे पर पढ़ नहीं पाते.

    आपकी रचनायें जटिल विषयों पर उतरतीं हौं

    .....

    मैंने आपसे क्षणिकायें भेजने का आग्रह किया था ?.....

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  23. बहुत अच्छा लगा अपनी बात को कहने के यह अंदाज... हमें अपने भीतर अपने आसपास झाँकने की जरूरत है... कहीं वहाँ तो कुछ दरक नहीं रहा है...

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  24. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! लाजवाब प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  25. सदियों पुरानी, टूटती गिरती, बेजान ईमारत और हम ........ खड़ी कर देते हैं उसके चारों ओर इक चहारदिवारी घोषित करवा देते हैं उसे "धरोहर"


    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...!
    मर्मस्पर्शी रचना !

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  26. गहन भावों का समावेश हर पंक्ति में ...आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  27. कभी चमकाने को खंडहर की सूरत
    पलस्तर करके
    चढ़ा देते हैं मोटी मोटी परतों में
    संगमरमर का पाउडर,
    बेल का शीरा, उड़द की दाल.

    कल्पना को नये आयाम देने की प्रभावकारी कोशिश

    जवाब देंहटाएं
  28. नया विषय....बहुत सुन्दर लिखा है....

    जवाब देंहटाएं
  29. har bar ek nayi soch ke tana bane bunti naye shabdo ka un par prayog sada se hi aapki rachna ki visheshta rahi hai. ye bhi usi vishesh me se ek hai.

    sunder abhivyakti.

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  30. तंग आकर हमसे ही
    खींच लेती है आप ही अपने चारों ओर
    इक चहारदिवारी.
    ओह्!!...बहुत ही कटु सत्य बयाँ कर डाला....बेहद अफसोसजनक.

    जवाब देंहटाएं
  31. कभी हमारे घर की
    जीती जागती विरासत
    तंग आकर हमसे ही
    खींच लेती है आप ही अपने चारों ओर
    इक चहारदिवारी.....

    बहुत खूबसूरत प्रस्तुति , आभार

    जवाब देंहटाएं
  32. rachna ji ...aapki rachnatmakta aapke lekhan me jhalkti najar aa rahi hai ..bahut sundar...achchha lga aapke blog par aakr..itne samay se kaise door rahi aapke blog se ....

    जवाब देंहटाएं
  33. सब कुछ तो कह दिया गया . आपकी कवितायेँ नवीन बिम्बों का प्रतिरूप है

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  34. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
    .....आपकी रचना सोचने को बाध्य करती है

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  35. वाह, बिलकुल ही नए अंदाज़ में गहरी बात कह दी है आपने.बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  36. .

    रचना जी ,
    बहुत ही सुन्दर और सशक्त रचना है आपकी ! अंतिम पंक्तियाँ मन को झकझोर देने वाली हैं !

    .

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  37. भावपूर्ण मार्मिक रचना बिलकुल चित्रकाव्य की तरह....
    पुरानी इमारतों की तो हम हिफाज़त करते हैं किन्तु अपने बूढ़े माँ-बाप को , अपने बुजुर्गों को उपेक्षा का दंश ही दे पाते हैं हम | कितना अच्छा हो कि हम इनके हर सुख-दुःख का हमेशा ख्याल रखें , इनका जीवन यथासंभव खुशियों से भरें |

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  38. रक्षाबंधन एवं स्वाधीनता दिवस के पावन पर्वों की हार्दिक मंगल कामनाएं.

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  39. nice feelings .

    रक्षाबंधन के पर्व पर बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं...

    देखिये
    हुमायूं और रानी कर्मावती का क़िस्सा और राखी का मर्म

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  40. कभी हमारे घर की
    जीती जागती विरासत
    तंग आकर हमसे ही
    खींच लेती है आप ही अपने चारों ओर
    इक चहारदिवारी...
    baat me to kafi dam hai ,magar is par dhyaan dene waale kam hai ,rachna kafi achchhi hai ,rakhi parv ki badhai

    जवाब देंहटाएं
  41. विरासत सहेजने की कशमकश में आज छिनता जा रहा होता है।

    जवाब देंहटाएं
  42. सोच को नयी दिशा डी है इस रचना में ... समझ नहीं आता की क्या जरूरी है ... लाजवाब प्रस्तुति है ...

    जवाब देंहटाएं
  43. कभी हमारे घर की
    जीती जागती विरासत
    तंग आकर हमसे ही
    खींच लेती है आप ही अपने चारों ओर
    इक चहारदिवारी...

    खूबसूरत प्रस्तुति....

    जवाब देंहटाएं

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