रविवार, 21 अगस्त 2011

ये किसकी है आहट...

ये किसकी है आहट...


केसरिया परदे के पीछे 
सांवरी रात अलसाने लगी है.  
कपासी बादलों से सुनने को लोरी
निशा सलोनी मचलने लगी है.

सुनहरी किरणों से निकल कर परियां 
जादू नया जागने लगी हैं. 
इतरा के, इठला के, बल खा के, 
धूप की कलियाँ चटखने लगी हैं.

फूल, पत्तों, दूब और पेड़ों से 
ओस की बूंदें विदाई लेने लगी हैं. 
ये किसके स्वागत को देखो
दिशाएं सजने सवरने लगी हैं.

लिपट के रात की बाँहों में सोया था,
उस सवेरे के आने की आहट होने लगी है.

केसरिया परदे के पीछे 
सांवरी रात अलसाने लगी है.

निशा, जादू, ओस,   सुनहरी, केसरिया, बादल, किरणे, रचना, हिंदी कविता, 


रविवार, 14 अगस्त 2011

साथ...


साथ...


बहुत दिनों बाद
बगीचे की सैर को पहुँची
मुझे देख
वहां के दरख़्त, पेड़, झाड़ियाँ
और यहाँ तक कि टूटे पत्ते भी
मुस्कुराये, खिलखिलाए, तालियाँ बजाईं.    
ठंडी हवा खिलखिलाई, खुशबू महकाई   
तारो ताजा हो उठी मैं, 
फिर उठी और चल पड़ी.
तभी बुजुर्ग दरख़्त की
एक डाली लटकी, लचकी और 
मेरे पास आई
और कानों में बोली
कभी आ जाया करो यहाँ भी
अच्छा लगता है.


(चित्र असम के शिवसागर में स्थित रोंगघर के अंदर से बगीचे का है, मेरे अपने चित्रों में से एक)

रविवार, 7 अगस्त 2011

गुमनाम विरासत


गुमनाम विरासत 
     

सदियों पुरानी, टूटती गिरती, बेजान ईमारत
और हम ........
खड़ी कर देते हैं उसके चारों ओर
इक चहारदिवारी 
घोषित करवा देते हैं उसे "धरोहर"
  
कभी हमारे घर की 
जीती जागती विरासत 
तंग आकर हमसे ही 
खींच लेती है आप ही अपने चारों ओर 
इक चहारदिवारी.

कितनी ही बार उजड़ने बसने की
दास्ताँ बयां करती हैं वो       
सदियों पुरानी, टूटती गिरती, बेजान ईमारत.
पर अपने ही घर की विरासत के
चेहरे पर पढ़ नहीं पाते.

उजड़ने, बसने और बिगड़ने के जद्दोजहद की लकीरें 
पुराने अवशेषों को जीवंत करने की कवायत में
उन इमारतों को उनका चेहरा लौटाने  को 
चिनाई में लगाते हैं गोंद, चूना, सुर्की.

अपनी विरासत की
कमजोर. कांपती, टूटती, 
चरमराती हड्डियाँ 
नहीं नजर आती कभी ख्वाब में.

कभी चमकाने को खंडहर की सूरत 
पलस्तर करके
चढ़ा देते हैं मोटी मोटी परतों में 
संगमरमर का पाउडर, 
बेल का शीरा, उड़द की दाल.

अपने घरों में नहीं नसीब होती 
दो जून की रोटी उन्हें 
रौशन घरों के इन्हीं किन्हीं कमरों के 
चका चौंध अंधेरों में बसती हैं  
हमारी अपनी वो गुमनाम विरासतें....    

(प्रस्तुत चित्र हम्पी में हांथियों के अस्तबल का है जिसे गूगल से साभार लिया गया है) 
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