रविवार, 22 मई 2011

मेरे एहसास


मेरे एहसास 
(1)

कभी पट गयी थीं धमनियां मेरी,
अवसाद के कोलेस्ट्राल से, 
जब से तुम आये,  
सबेरे की सैर, 
वो मिश्री घोलता संगीत. 
हर पल अपने पल का अहसास,
तुम्हारी मीठी बातों में,
कोलेस्ट्राल तो घुल गया
अब शायद मेरी बारी है .....

(2)

कभी दिल जोरों से धड़क जाता था,
उनके आने पर, 
और कभी उनके न आने पर. 
कभी सांसे बेतरतीब हो जाती थीं.
उनसे नज़र मिल जाने पर, 
या फिर बिछड़ जाने पर.
कभी दिल दिमाग अनियंत्रित हो जाता था.
उनका स्पर्श पाने पर, 
या कभी उसका अहसास हो जाने पर, 
अब सब नियंत्रित है 
अब तो लगता वही मुझे मेरा पेस मेकर है,  
उन मजबूत बाहों से लिपट जाने पर.  

42 टिप्‍पणियां:

  1. कभी दिल जोरों से धड़क जाता था,
    उनके आने पर,
    और कभी उनके न आने पर.
    कभी सांसे बेतरतीब हो जाती थीं.
    उनसे नज़र मिल जाने पर,
    या फिर बिछड़ जाने पर......
    भाव पहलू बहुत नाज़ुक हैं

    जवाब देंहटाएं
  2. अवसाद के कोलेस्ट्राल .. नवीनतम बिम्ब है

    वही मुझे मेरा पेस मेकर है,..अब इसके लिए क्या कहूँ ;):) ऐसा पेसमेकर यूँ ही सब नियंत्रित रहे ..

    सुंदरता से लिखे एहसास

    जवाब देंहटाएं
  3. रचना जी,
    बहुत भावुक हैं आप !
    येह दिल के लिए ठीक नही |
    मुक्तभोगी हूँ; मैं!
    खुश रहिये !
    शुभकामनाएँ !
    अशोक सलूजा|

    जवाब देंहटाएं
  4. अब सब नियंत्रित है
    अब तो लगता वही
    मुझे मेरा पेस मेकर है,
    उन मजबूत बाहों से लिपट जाने पर.

    रचना जी आपने खूबसूरती से 'पेस मेकर'लगाकर सब कुछ नियंत्रण में कर लिया है.
    आपके दिल का भी कमाल है
    आपकी 'रचना' बेमिशाल है.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.मेरी नई पोस्ट आपका इंतजार कर रही है.

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  5. वाह, नए बिम्बो के साथ सुन्दर भाव समन्वय् !

    जवाब देंहटाएं
  6. दोनों ही काव्य रचनाएं आंतरिक पीड़ा की सुन्दर सहज अभिव्यक्ति हैं...

    विशेष रूप से इस पंक्ति में नूतन उपमा ने अभिव्यक्ति को चार चांद लगा दिए हैं-

    ‘‘कभी पट गयी थीं धमनियां मेरी,
    अवसाद के कोलेस्ट्राल से’’

    मर्मस्पर्शी एवं भावपूर्ण काव्यपंक्तियों के लिए कोटिश: बधाई !

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  7. यह पेसमेकर काम बढ़िया करेगा .... :-)
    शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  8. पेसमेकर के बाद पेसमेकर के बिना रह पाना कहाँ संभव है । कोलेस्ट्रोल को घोलती सुन्दर रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  9. मर्मस्पर्शी एवं भावपूर्ण काव्यपंक्तियों के लिए धन्यवाद|

    जवाब देंहटाएं
  10. कभी दिल जोरों से धड़क जाता था,
    उनके आने पर,
    और कभी उनके न आने पर.
    कभी सांसे बेतरतीब हो जाती थीं.
    उनसे नज़र मिल जाने पर,
    या फिर बिछड़ जाने पर......
    bahut hi sundar shabd bhav

    जवाब देंहटाएं
  11. दिल तो है दिल, दिल का ऐतबार क्या कीजे... ज्यादा भरोसा ठीक नहीं उपकरणों पर, मधुर भावपूर्ण रचना !

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  12. (1) उफ्फ
    (2) उधर भी यही अहसास हों तो सोने पै सुहागा

    अत्यंत भावपूर्ण रचनाएँ - बधाई

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  13. रचना एक प्रथक ही अर्थ लेती हुई मसलन आने पर भी और न आने पर भी दिल का धडकना, नजरे मिल जाने पर और विछड जाने दौनों स्थितियों में श्वास गति का अनियंत्रित हो जाना ।अच्छी रचना

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  14. अवसाद को घोलने के लिये मन का आनन्द आवश्यक होता है।

    जवाब देंहटाएं
  15. नए प्रतीको और भावों के साथ सुंदर कविताएं।

    जवाब देंहटाएं
  16. अवसाद के कोलेस्ट्राल..नूतन उपमा के लिए बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  17. नए भावबोध के साथ रची गयी रचनाएँ मन के विविध भावों को खूबसूरती से सामने लाती हैं ...आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
  18. भावमय करते शब्‍दों के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं
  19. दोनों ही बहुत सुंदर रचनाये हैं ...

    जवाब देंहटाएं
  20. बिलकुल नए बिम्ब से सुसज्जित ...सुन्दर रचना...

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  21. सुंदरता से लिखे एहसास
    इस मखमली अहसास का तो जवाब नहीं!
    बहुत सशक्त अभिव्यक्ति!

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  22. कमाल के भाव हैं आपके ,बहुत संवेदनशील हो ...शुभकामनायें

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  23. आपकी कवितायेँ विस्फोट करती हैं.. हमेशा एक नया बिम्ब प्रस्तुत कर.. अद्भुत है यह प्रस्तिती..

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  24. कभी दिल जोरों से धड़क जाता था,
    उनके आने पर,
    और कभी उनके न आने पर.
    कभी सांसे बेतरतीब हो जाती थीं.
    उनसे नज़र मिल जाने पर,
    या फिर बिछड़ जाने पर.....
    bahut sunder bhav
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  25. सुन्दर कविता.. नवीनतम विम्ब... बेहतरीन प्रस्तुतीकरण...

    जवाब देंहटाएं
  26. राजीव जी की टिप्पणी पोस्ट नहीं हो पा रही है. शायद कोई तकनीकी गडबडी है. सेटिंग में तो कोई चेंज नहीं किया है मैंने फिर भी.

    खैर फिलहाल उनकी टिप्पणी जो उन्होंने मेल से भेजी है यहाँ लगा रही हूँ. यदि किसी और को भी ऐसी समस्या आई हो तो समाधान मुझे भी बताएं.

    राजीव जी ने कहा है:-

    मेरी टिप्पणी आपके ब्लॉग पर पोस्ट नहीं हो पा रही है,इसलिए मेल पर भेज रहा हौं.

    "कभी दिल जोरों से धड़क जाता था,
    उनके आने पर,
    और कभी उनके न आने पर."
    ऐसा ही होता है जब दिल पार किसी और का वश हो. आपने तो अनायास ही बिहारी और सूर की दुनियां में पहुंचा दिया.श्रृंगार के दोनों पक्षों का अद्भुत संगम है आपकी रचना.बिम्ब-पक्ष इतना नया और सटीक(कोलेस्ट्राल) है कि भावनाएं चलती हुई दिखती है.बेहद असरकारी.


    धन्यबाद राजीव जी.

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  27. अब तो लगता वही मुझे मेरा पेस मेकर है,
    उन मजबूत बाहों से लिपट जाने पर.

    सुंदर सामंजस्य वैज्ञानिक बिम्बो का कविता में. अदभुत. शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  28. "कभी दिल जोरों से धड़क जाता था,
    उनके आने पर,
    और कभी उनके न आने पर."
    ऐसा ही होता है जब दिल पार किसी और का वश हो. आपने तो अनायास ही बिहारी और सूर की दुनियां में पहुंचा दिया.श्रृंगार के दोनों पक्षों का अद्भुत संगम है आपकी रचना.बिम्ब-पक्ष इतना नया और सटीक (कोलेस्ट्राल से पेसमेकर तक) है कि भावनाएं चलती हुई दिखती है.बेहद असरकारी.

    जवाब देंहटाएं
  29. कभी दिल जोरों से धड़क जाता था,
    उनके आने पर,
    और कभी उनके न आने पर.
    कभी सांसे बेतरतीब हो जाती थीं.
    उनसे नज़र मिल जाने पर,
    या फिर बिछड़ जाने पर......
    भाव पहलू बहुत नाज़ुक हैं.

    बहुत सुंदर कविता.शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं
  30. तुम्हारी मीठी बातों में,
    कोलेस्ट्राल तो घुल गया
    अब शायद मेरी बारी है .....

    sunder......

    jai baba banaras....

    जवाब देंहटाएं
  31. तुम्हारी मीठी बातों में,
    कोलेस्ट्राल तो घुल गया..

    Bahut dino baad kuch esa padhne ko mila.. ! Behad sundar bhav hai ! Aabhar !

    जवाब देंहटाएं
  32. कोलेस्ट्राल तो घुल गया
    अब शायद मेरी बारी है ...

    बहुत खूब .. विज्ञान और साहित्य को जोड़ कर आप जो कविता की उत्पत्ति करती हैं ... लाजवाब ...

    जवाब देंहटाएं
  33. कोलेस्ट्राल तो घुल गया अब शायद मेरी बारी है .....
    और
    अब तो लगता वही मुझे मेरा पेस मेकर है,
    सच नए से प्रयोग हैं.
    - विजय

    जवाब देंहटाएं
  34. सुंदर भाव संयोजन..कोलेस्ट्राल..पेसमेकर..सुन्दर
    बिम्ब

    जवाब देंहटाएं
  35. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने ! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!

    जवाब देंहटाएं
  36. कोलेस्ट्राल,धमनियां,पेसमेकर--वाह ग़ज़ब का प्रयोग है रचना जी,नयापन है.मज़ा आ गया.दिल पर किसी का एक शेर याद आ गया है, आपको सुनाता हूँ.
    कोलेस्ट्राल,धमनियां,पेसमेकर सबसे निजात दिलाता हुआ:-
    दिल की बिसात क्या थी निगाहे-जमाल में.
    इक आइना था टूट गया देख भाल में.

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  37. Great article and blog and we want more :)

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