रविवार, 24 अप्रैल 2011

दस्तक

दस्तक

याद है मुझे कहा था मैंने,

जी लूंगी, रह लूंगी अकेले,

पर किसी के मोह पाश में न बंधूगी.

कितने स्थान बदले कितने झूठ बदले.

निश्चिन्त हो गई.

कर जो लिया था इन्द्रियों पर नियंत्रण

अचानक

वज़न घटने लगा, असहज रहने लगी,

दस्तक पर जीने लगी, कुछ महसूस करने लगी.

रोम रोम से बातें करनें लगी.

रुग्ण देह ले कर फिरने लगी.

आखिर कब तक बचती.

हार गयी तुम्हारे प्रेम के,
 
रेडिओ धर्मी तत्वों के आगे.

ढूंढ़ रही हूँ तुम्हें इत उत,

तुम्हारे विकिरणों से छलनी देह लिए.

अब आ भी जाओ

बचा लो मुझे

सिर्फ अपने लिए.

रविवार, 17 अप्रैल 2011

टोटका


टोटका



न जाने क्यों आजकल
इक अजीब सा डर सताने लगा है
डर सताता है ज़माने की निगाहों का
कहीं हमारी प्यार भरी जिंदगी को
ज़माने की नज़र न लग जाये,
गली मोहल्ले और दादी माँ,
सभी के टोटके अपनाए
पर चैन नहीं आया 
सुना है हर टोटके का तोड़ भी होता है....
पर आज मैं 
इक बेजोड़, बेतोड़, रामबाण टोटका ले ही आई हूँ.
सुनो ! किसी से कहना मत ...
अब से मैं बनी रहूंगी भ्रष्टाचार
और तुम 
पुलिस के ऊँ......चे अफसर. 
दुनिया की नज़रों, में सबके सामने.
हम दोनों छत्ती....स 
एकांत,अकेले कमरों और पलों में तिर....सठ ..
बोलो, अपने प्यार को ज़माने की जालिम नज़र से
बचाने के लिए क्या मंजूर है तुम्हें ये टोटका.     

रविवार, 10 अप्रैल 2011

तुम्हारी


तुम्हारी 



पिछली कविता में तुमसे इक सवाल पूंछा था,

"मेरी हर धड़कन में बस तुम ही हो 
और तुम्हारी धड़कन में .....???"
अजीब  सी बैचैनी हो रही है 
तुम्हारा  जवाब जो नहीं आया.
हर इक आहट तुम्हारी मिस कॉल सी लगती है.
पुरानी यादों को ताज़ा करना चाहा तो पाया 
मेरी रिंग टोन आज भी वही है 
"चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो......." 
पर तुम्हारी कॉलर ट्यून 
कुछ बदल सी गई है.
तुम्हारी सांसे जैसे ही मेरी सांसों में घुलने लगती हैं.
अचानक ही  सिग्नल वीक हो जाता है !
सारा का सारा सिग्नल पकड़ने की चाह में अपना टावर,
अपने दिल पर ही लगा रखा है.
तुम्हारे ख्वाब को जब जब अपना बनाना चाहा 
अचानक इक महिला का चिर परिचित सा स्वर बीच में आ गया
"उपभोक्ता अभी व्यस्त है" 
"नेटवर्क के बाहर है" 
"कॉल सम्भव नहीं है"  
असमंजस में हूँ 
कहीं तुम "नंबर पोर्टेबिलिटी"  के मोह पाश में तो नहीं हो 
या  फिर २ जी से ३ जी होने की कोई चाहत???
अगर ऊपर  लिखी बातें सिर्फ मेरा भरम है तो अच्छा है
यदि लेश मात्र भी सच है,
तो तुम्हें आगाह किये देती हूँ
कि अक्सर मोह पाश, माया जाल पर मोह दंश भारी पड़ जाता है. 
सो लौट आओ अपने "ओरिजनल सर्विस प्रोवाइडर" के पास   
क्योंकि सिर्फ वो ही तुम्हारा अपना है.
मिस... कॉल.... नहीं इस बार तुम्हारी कॉल की प्रतीक्षा में,
आज भी तुम्हारी ही मैं. 

रविवार, 3 अप्रैल 2011

एक प्रश्न

एक प्रश्न



जब तब बहस छिड़ती है,
कहते हैं स्त्री कमज़ोर है. 
पुरुष से शारीरिक रूप से. 
क्या करें प्रकृति से ही 
सब कुछ कम पाया है. 
आकार छोटा, मांस पेशियाँ कम.   
शक्ति कम, गुरुत्व केंद्र भी नीचा. 
यहाँ तक कि दि....ल .....भी छोटा. 
बड़ा कुछ है, तो वो  है फेफड़ा, 
और इस नन्हे से दिल  की धडकनें. 
तुम्हारे बड़े दिल से कहीं ज्यादा.  
ये सब मैं नहीं कह रही हूँ,
सत्यापित हो चुका है ये. 
मेरे फेफड़ों  में आवारा फिरती इक इक साँस,
सिर्फ  तुम्हारे लिये ही जीती है.
मेरी हर धड़कन में बस तुम ही हो 
और तुम्हारी धड़कन में .....???
कौन बड़ा लगता है तुमको ?   
छोटे दिल वाली मैं या बड़े दिल वाले तुम.
आखिरी निर्णय भी तुम्हारा ही मान्य है मुझे .
तुम्हारी प्रतिक्रिया में प्रतीक्षारत ......   
तुम्हारी मैं .  
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