रविवार, 27 मार्च 2011

क्षणिकाएं

क्षणिकाएं  
 [1]
सीली हवा
अनवरत सिसकियों की आवाज़
अलमारी में रखी
किताबों के
जिल्द सिसक रहे थे
किताबों को माउस कुतर गए थे.
[2]
अपनी चिकनी देह पर
मेरे  चिर परिचित हाथों का
कोमल स्पर्श पाने की  जिद्द
वर्षों का अनशन
आखिर दम तोड़ ही दिया
कल मेरी कलम ने. 

[3]

अंगूठे और तर्जनी में
आजकल ठनी है
अंगूठे का स्पर्श
न मिल पाने के कारण
वो अनमनी है  
कभी घंटों का साथ
अब जन्मों की दूरी....
कम भी कैसे हो
मध्यस्थता करने वाला
कलम भी तो न रहा अब.

46 टिप्‍पणियां:

  1. वाह . सचमुच में क्षणिका . गंभीर विषय की तरफ इंगित करती हुई . मोउस हाथ में पकड़कर हम कलम को भूलते जा रहे है .

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  2. अच्छा ध्यान दिलाया है । लेकिन क्या करें , वापस मुड कर जा भी तो नहीं सकते ।

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  3. एक मौन भरा दिल से एहसास !

    खुश और स्वस्थ रहें !

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  4. सभी बहुत मर्मस्पर्शी हैं ..जीवन के सत्यों को उद्घाटित करती हुई ...आपका आभार

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  5. तीनो क्षणिकाएं बेहतरीन हैं ! कंप्यूटर के युग में कलम बेगाना हो गया है !

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  6. अंगूठे और अनामिका में
    आजकल ठनी है
    अंगूठे का स्पर्श
    न मिल पाने के कारण
    वो अनमनी है ...
    manna padta hai jaha n pahunche ravi wahan pahunche kavi, bahut hi sukshm drishti

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  7. रचनात्मकता में पिरोयीं क्षणिकायें।

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  8. kitabon par computer bhari hai , sunder treeke se btaya hai aapne
    doosri kshnikaaen bhi sunder
    bdhaai ho

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  9. कलम पर बेहद खूबसूरत प्रस्तुति एक बार फिर मैं इसे लोगों तक पहुंचाऊंगा.

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  10. बहुत सूक्ष्मता से किया गया अवलोकन ...लेकिन अभी भी कलम का स्थान सुरक्षित है ...मन के भाव सीधे माउस से क्लिक नहीं होते :):)

    अनामिका और अंगूठे के बीच कलम सम्बन्ध बना ही देती है :):)

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  11. कलम दवात का स्थान पेन ने लिया पेन का स्थान बाल पेन ने और अब अंगूठे और अनामिका की जगह सारी उंगलियों ने ही ली है |
    फिर भी अंगूठा तो अंगूठा ही है न उसकी बराबरी कहाँ ?

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  12. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (28-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  13. अब तो हस्ताक्षर भी डिजिटल हो गया है । कलम से लिखे पत्रों में आत्मीयता की एक अलग खुशबू होती थी । ई-बुक और कागज वाली किताब की जंग में किताब पिछड़ गई है । हालांकि तकनीकी उन्नति ने लोगों को करीब लाने और परस्पर संवाद को सफल बनाने में नए माध्यमों के रूप में बहुत योगदान दिया है । पर कलम और किताब का एक विशिष्ट स्थान है । कलम को खोना सच में बड़ा दुखद है । बहुत अच्छी क्षणिकाएँ ।

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  14. आदरणीय रचना दीक्षित जी
    नमस्कार !
    ........तीनो क्षणिकाएं बेहतरीन हैं !

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  15. .शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।

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  16. सभी क्षणिकाएं सुन्दर ....

    तीसरी क्षणिका बहुत ही प्यारी लगी |

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  17. तीनो क्षणिकाएं एक से बढ कर एक जी बहुत सुंदर, आप ने कलम की अच्छी याद दिलाई, सच मे उसे भुलते जा रहे हे

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  18. बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत क्षणिकाओं के लिए आपको हार्दिक बधाई।

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  19. बहुत सूक्षम अहसास.
    तीनों क्षणिकाएं उम्दा.
    तीसरी तो बहुत खूबसूरत है.
    बरबस ध्यान हाथपर चला गया,
    अनामिका और अंगूठे की दूरी मापने लगा.
    कमबख्त अनामिका लिखती भी तो नहीं है.
    सलाम.

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  20. बेहतरीन भाव लिए क्षणिकाएं ...बहुत बढ़िया

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  21. मुझे यह बहुत अच्छी लगी
    "अंगूठे और अनामिका में ------
    अब जन्मों की दूरी "|बहुत खूब लिखा है |बधाई
    आशा

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  22. कंप्यूटर आने से कागज़ और कलम छूटता जा रहा है . साथ ही लिखावट और लिखने वाले के अहसास भी.

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  23. वास्तव में कलम एक माध्यम है । अनामिका ही क्यों मध्यमा भी थोडा बहुत असंतुष्ट तो होगी ही अनामिका की जगह कहीं आप तर्जनी तो नहीं लिखना चाह रही थी ?

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  24. बहुत सुंदर क्षणिकाएं, लेकिन अनामिका तो वैसे भी अंगूठे से काफी दूर है पड़ोसन तो तर्जनी है न ?

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  25. वाह ...बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों का संगम ...।

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  26. तीनों एक से बढ़ कर एक क्षणिकायें हैं ! कम्प्यूटर के युग में किताबों और कलम की वेदना को बड़ी सूक्ष्मता के साथ उभारा है ! पढ़ कर आनंद आ गया ! बधाई स्वीकार करें !

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  27. रचना जी, चिर संगी के प्रति एक अपराध की ओर इंगित करती है यह क्षणिकाएं.. किन्तु इस बात की खुशी है कि हम इस अपराध के अपराधी नहीं!!

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  28. बेहद खूबसूरत क्षणिकाएँ

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  29. अंगूठे और तर्जनी में
    आजकल ठनी है
    अंगूठे का स्पर्श
    न मिल पाने के कारण
    वो अनमनी है
    कभी घंटों का साथ
    अब जन्मों की दूरी....
    कम भी कैसे हो
    मध्यस्थता करने वाला
    कलम भी तो न रहा अब.
    bahut hi unchi baate hai ,sabhi laazwaab .

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  30. bahut imandari aur bareeki se kalam ka anguthe aur tarzani ke sath...sath na dene ka dard bakhubi bayaan kiya hai. bahut badhiya.

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  31. जाट देवता की राम राम ।
    कलम व हाथ का साथ नहीं छूट सकता है ।
    मजेदार यात्रा देखनी है, तो आ जाओ हमारे ब्लाग पर । अपनी कीमती राय जरुर दे।

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  32. rachna ji
    bahut hi achhi xhanikayen. sabhi ek se badh kar ek .teesari wali xhanika ni kuchh jyada hi prabhvit kiya .
    sabhi kamaal ki
    badhai
    poonam

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  33. कम्प्यूटर युग का सत्य...


    उम्दा क्षणिकायें.

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  34. इस जमाने में कलम दवात और किताबों की याद :-(
    श्रद्धांजलि

    कुछ हम जैसों के लिए भी लिखा करो ...:-(

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  35. कलम का न रहना दारुण है !एक कसक की खुबसूरत व्याख्या ! बहुत सुंदर है !

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  36. Wow!......आप की क्षणिकाओं ने कितना कुछ याद दिला दिया रचनाजी!....हार्दिक धन्यवाद!

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  37. अदभुद विम्ब उठाया है आपने... माउस और कलाम के बीच द्वन्द.... देह और देह से परे प्रेम.... अंगूठे और तर्जनी के बीच स्पर्श का विम्ब... सर्वथा नूतन और सार्थक बन पड़ा है... बहुत बढ़िया क्षणिकाएं !

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  38. सब क्षणिकाएँ लाजवाब ... संवेदनशील ... लाजवाब ...

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  39. I must say I really like it. Your imformation is usefull. Thanks for share

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