रविवार, 6 मार्च 2011

रुमाल


रुमाल
 

पुरानी फ़िल्में...
वो नायक नायिका का रूठना मनाना.    
नायिका के आंचल का उड़ना, 
नायक का उसे पकड़ना और फिर मान जाना.   
नायिका का रोना.
नायक का रुमाल निकालना,
आंसू पोंछना. 
रुमाल का कभी नायक के पास,
कभी नायिका के पास रह जाना.   
सारी उम्र उसे पास रखना.
सहेजना, प्यार करना, कभी उलाहना देना.
मैं भी तो तुम्हारे जीवन की नायिका हूँ. 
जब भी रूठी हूँ ,
उठा लाते हो कुछ पेपर नेपकिन. 
मेरे गालों के भीगने से भी पहले,
भीग जाते हैं वो, 
कहाँ सहेजूं, कैसे सहेजूं,
उन्हें दोनों हाथों के बीच गोल गोल घुमाते हो
फैंक देते हो डस्ट बिन में.
कई बार सोचती हूँ पूछूं तुमसे,
क्यों नहीं रखते हो इक रुमाल बस मेरे लिए. 
पर डरती हूँ कहीं  पूंछ न बैठो तुम,
तुम भी तो कहाँ रखती हो आंचल आज कल.

53 टिप्‍पणियां:

  1. गहरे भाव कविता के, बात सहारे की थी, एक रूमाल ही सही।

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  2. बहुत कुछ कह गई आप की रचना !
    न आज आँचल है न ही रुमाल रहा
    हवा मे उड गया दिल में न प्यार रहा

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  3. कई बार सोचती हूँ पूछूं तुमसे,
    क्यों नहीं रखते हो इक रुमाल बस मेरे लिए.
    पर डरती हूँ कहीं पूंछ न बैठो तुम,
    तुम भी तो कहाँ रखती हो आंचल आज कल. ...
    क्या बात है,आज आपकी लेखनी नें मेरे भी कई पुराने बीते हुए पलों की याद दिला दी.सुंदर रचना,आभार.

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  4. न वो आंचल और न वो रुमाल रहे,
    तो क्या हुआ
    भावनाएं तो वही हैं

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  5. तुम भी तो कहाँ रखती हो आंचल आज कल.
    इस एक पंक्ति ने वर्तमान परिवेश की पोल खोल कर रख दी ।
    सच , वक्त के साथ ज़माना कितना बदल जाता है ।

    आज सुबह सुबह यह रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा ।

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  6. अब तो ज़माना ही डिस्पोसेबल चीजों का आ गया है ..शायद प्यार भी...और जिंदगी जैसे चलती हुई मशीन ..किसे फुर्सत कि रुमाल को सहेजे और कभी देखे उसकी तरफ !!...पर डरती हूँ कहीं पूंछ न बैठो तुम, तुम भी तो कहाँ रखती हो आंचल .. बहुत अच्छी लगी आपकी ये कविता ..

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  7. बहुत भावना पूर्ण सन्देश और अहसास पूर्ण होता है कभी कभी यह रुमाल ...आपने इस रचना के माध्यम से कर दिया कमाल

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  8. भावप्रवणता और सुन्दर बिम्बों द्वारा मनोभावों और विचारो का प्रकटन .

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  9. क्यों नहीं रखते हो इक रुमाल बस मेरे लिए,
    पर डरती हूँ कहीं पूंछ न बैठो तुम,
    तुम भी तो कहाँ रखती हो आंचल आज कल।

    बदलते वक़्त के साथ-साथ जज़्बात और अहसासों में भी तब्दीलियां होने लगी हैं।
    अच्छी कविता।

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  10. वाह ... क्या बात लिखी है ... सच है आज ज़माना बदल रहा है .. हर चीज़ बदल रही है ... भावनाएं भी बदल रही हैं ...

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  11. पर डरती हूँ कहीं पूंछ न बैठो तुम,
    तुम भी तो कहाँ रखती हो आंचल आज कल.
    बहुत खुब बहुत गहरे भाव लिये हे आप की यह रचना.
    धन्यवाद

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  12. क्यों नहीं रखते हो इक रुमाल बस मेरे लिए,
    पर डरती हूँ कहीं पूंछ न बैठो तुम,
    तुम भी तो कहाँ रखती हो आंचल आज कल।
    क्या बात है रचना जी. परिवर्तन की खूबसूरत कविता. बहुत ही सुन्दर.

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  13. rachna ji
    bahut hi gahrai se likhi bahut gahre bhav abhvyakt prastut karti aapki kavita behad hi achhi lagi
    aaj aapki kvita ne kaiyo ke doli ki purani yado ko nisandeh taza kar di hogi
    bahut hi bhav -bhini prastuti
    badhai
    poonam

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  14. पर डरती हूँ कहीं पूंछ न बैठो तुम,
    तुम भी तो कहाँ रखती हो आंचल आज कल।
    स्वयं से सवाल करती रचना.रुमाल के सहारे बहुत कुछ कह गयी आपकी कविता .

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  15. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (7-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  16. गहरे भावो से भरी कविता . बात तो भाव्नाओ की होती है.

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  17. कई बार सोचती हूँ पूछूं तुमसे,
    क्यों नहीं रखते हो इक रुमाल बस मेरे लिए.
    पर डरती हूँ कहीं पूंछ न बैठो तुम,
    तुम भी तो कहाँ रखती हो आंचल आज कल.
    Kya baat kah dee! Bahut bhavuk ho,hai na?

    जवाब देंहटाएं
  18. क्यों नहीं रखते हो
    इक रुमाल बस मेरे लिए.
    पर डरती हूँ कहीं पूंछ न बैठो तुम,
    तुम भी तो कहाँ रखती हो आंचल आज कल.

    भावनाओं को गहन अर्थ दिए हैं ...आज के परिवेश को भी कह दिया है ..सुन्दर अभिव्यक्ति

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  19. सुंदर रचना ...... साथ की बात है यहाँ भले ही रुमाल ही जरिया क्यों ना हो.....

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  20. रुमाल और आँचल तो प्रतीक मात्र है ...भावनाओं की ऐसी क़द्र अब कहाँ !

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  21. itni gahri baat...........sach me hamare life style ne sab kuchh badal diya..!

    rumal ko paper napkin ke sahare aapne bahut pyara sa manobhav darshane ki koshish ki hai........

    sarahniya..!

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  22. बदलते समय के साथ प्रेम के प्रतीक और स्वरुप भी बदल रहे हैं. शुभकामना

    जवाब देंहटाएं
  23. कई बार सोचती हूँ पूछूं तुमसे,
    क्यों नहीं रखते हो इक रुमाल बस मेरे लिए.
    पर डरती हूँ कहीं पूंछ न बैठो तुम,
    तुम भी तो कहाँ रखती हो आंचल आज कल.......

    मामला गंभीर है...

    जवाब देंहटाएं
  24. गहरे भावों से पूर्ण बहुत सुन्दर संवेदनशील रचना..

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  25. कई बार सोचती हूँ पूछूं तुमसे,
    क्यों नहीं रखते हो इक रुमाल बस मेरे लिए.
    पर डरती हूँ कहीं पूंछ न बैठो तुम,
    तुम भी तो कहाँ रखती हो आंचल आज कल.
    bahut badhiya ,hardeep ji bahut sahi baat kahi ,aaj aadikaal se bhi badtar haalat ho rahe hai .gahri aur sundar .

    जवाब देंहटाएं
  26. विगत का वर्तमान के संग एक सजीव जोड़, एक सजीव चित्रण. रुमाल ने भी इश्क में बड़ा काम किया है पर अब वह अंदाज़ बहुत कम रह गया है. रुमाल की भींगी खुशबू की तरह महकती कविता है यह.

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  27. बहुत खूब , नया अंदाज़ !! आपको शुभकामनायें !

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  28. अरे .. कविता एक धार से चल रही थी मीठी मीठी... और अचानक... एक बहुत बड़ी बात कह गयी.. abrupt change ..bahut khoob ///sundar kavita

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  29. कई बार सोचती हूँ पूछूं तुमसे,
    क्यों नहीं रखते हो इक रुमाल बस मेरे लिए.
    पर डरती हूँ कहीं पूंछ न बैठो तुम,
    तुम भी तो कहाँ रखती हो आंचल आज कल.

    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ! बदलती वेशभूषा ने प्रेम प्रदर्शन के प्रतिमान भी बदल दिए हैं ! बस यही कामना है भावनाओं का स्थायित्व बना रहे ! बहुत प्यारी रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  30. अरे वाह ! क्या बात है ! बहुत सुन्दर कविता ! बहुत अच्छा लगा पढकर ! सच है आजकल भावनाओं को सहारा नहीं मिलता है ...

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  31. बहुत सुंदर अहसास लिये भावपूर्ण रचना !

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  32. आँचल और रुमाल को ले कर कोई इतनी अच्छी कविता भी लिखता है, अद्भुत| बधाई रचना जी|

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  33. कई बार सोचती हूँ पूछूं तुमसे,
    क्यों नहीं रखते हो इक रुमाल बस मेरे लिए.
    पर डरती हूँ कहीं पूंछ न बैठो तुम,
    तुम भी तो कहाँ रखती हो आंचल आज कल. ...


    bahut sundar kavita.........

    जवाब देंहटाएं
  34. कई बार सोचती हूँ पूछूं तुमसे,
    क्यों नहीं रखते हो इक रुमाल बस मेरे लिए.
    पर डरती हूँ कहीं पूंछ न बैठो तुम,
    तुम भी तो कहाँ रखती हो आंचल आज कल.

    bahut sunder

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  35. कैसे छूट गई ये कविता मुझसे! नए हालात में नए अर्थ जताती कविता! लेकिन रुमाल से डर लगता है. ऑथेलो और डेस्डिमोना के विनाश के बाद!!

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  36. फिलहाल तो मन ठहर गया है इस रुमाल पर. अभी पिछे के पोस्ट पढना बाकी है.

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  37. ये रुमाल, ये यादें, ये किसी का सहारा. ये महकी हवा. कुछ मैंने भी सहेज रखा है.
    - इस वक़्त इस भावपूर्ण कविता की प्रशंशा में क्या बोलूं.

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  38. सच मे आज कल हर चीज़ के मायने बदल गये हैं आँचल तार तार हो गये और औरत को रुमाल समझ कर दिल भ्रा तो डुस्टबिन मे फेंक दिया। अच्छी रचना के लिये बधाई।

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  39. रचना जी, आप की कविता के भाव अति कोमल, सजीले व मर्म-स्पर्शी हैं ।सहृद साधुवाद ।

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  40. बहुत ही सुन्दर भाव....
    वैसे भावनाओं का जिंदा रहना ज्यादा ज़रूरी है..:)

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  41. 'शून्य' से शुरु हुआ? और सिलसिलेवार यानी 'मंजिले', सरगम, प्रणयपर्व, उत्तराधिकारिणी, आहट और रुमाल तक का सफर बेहद ही शानदार रहा। सच भी है जब आदमी शून्य से प्रारंभ होता है तो बहुत कुछ हासिल करता चला जाता है, आज मैने किया।
    मैं सच में कम आता हूं ब्लॉग पर, कम क्या नहीं की श्रेणी में खुद को गिनना चाहिये। और यकीन रखिये मैं इसलिये भी नहीं आया कि आप निरंतर मेरे ब्लॉग को पढती रही हैं। बस थोडा वक्त था तो आपको पढने की इच्छा हुई। मेरी सुबह की एक शानदार शुरुआत कही जा सकती है यह? रुमाल, और आंचल का आज खो जाना यहां यह भी दर्शाता है कि आप सामने वाले से अपेक्षा तो रखते हैं किंतु भूल जाते हैं कि कहीं आपसे भी किसी की अपेक्षा होती है। अगर दोनों ओर से वो अपेक्षा पूर्ण होती रहे तो वाह जिन्दगी के मायने खिल उठते हैं।
    आपकी रचनाओं में नाजुकता है। रिश्तों की मुलायम, मखमली सी डोर में बन्धे शब्द सफर करते हैं, कभी तो सीधे मर्म को छूते हैं, कभी दिमाग के तारों को झंकृत कर देते हैं...। और जब कोई पाठक पिछले एक घंटे से बैठा आपकी इन छह-सात रचनाओं को गंभीरता से पढ रहा हो तो समझा जा सकता है कि वो कितना भीगा होगा, भावुकता के इस सागर में..।

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  42. बहुत सटीक अभिव्यक्ति , मन के भय की ।

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  43. रुमाल का कभी नायक के पास,
    कभी नायिका के पास रह जाना.

    आपकी कविता प्यारी है,सच रचना जी.
    मगर ये क्या:-
    आप मुद्दत से हमारे ब्लॉग पर आई नहीं.

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  44. चलिए आपको नैपकिन to milte hain .....
    varna aaj kal ye bhi nseeb nahi hote ......

    rumaal par wo geet याद aa gya ....
    raah mein ik reshmi rumaal mila hai ......

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  45. बदलते समय के साथ प्रेम के प्रतीक और स्वरुप भी बदल रहे हैं.
    अच्छी रचना के लिये बधाई।

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  46. वाह कहूँ रचना जी?
    नहीं आह ज्यादा ठीक है
    लिखती रहिएगा
    सादर
    प्रदीप नील www.neelsahib.blogspt.com

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