रविवार, 12 दिसंबर 2010

भोर

भोर



छंटने लगा धरा से अब तो,

पसरा हुआ तिमिर आच्छादन.

नील तमस का अंत समय है,

टूट रहा धरती से बंधन.

दूर गगनचुम्बी शिलाओं पर,

आतुर बैठे हैं सब हिम कन.

उनको अपने प्याले में भरने को,

घूम रहे हैं इत उत घन.

बहका रही धरा को अब है,

पुष्प पराग औ सुरभि की बिछलन.

शुष्क समीर की सरगम,

लगी चाटने है तुहिन कन.

अरुणिम पीत हरीतिमा देखो,

बिखर रही है सुमन सुमन.

ये किसे रिझाने को प्राची,

इतराती आंगन आंगन,

संकेत और संवाद कह रहे.

आने को है नवयौवन.

देखो कैसे विस्मित करता,

ये सांसों में भरकर जीवन.

ये हिमकर का है पुनर्गमन

और रविकर का पुनरागमन.

 
(चित्र गूगल से साभार)

55 टिप्‍पणियां:

  1. दूर गगनचुम्बी शिलाओं पर,

    आतुर बैठे हैं सब हिम कन.

    उनको अपने प्याले में भरने को,

    घूम रहे हैं इत उत घन.
    kaayal ho gaye jee kitna sunder prakruti varnan....mazaa aagaya........
    yanha south me rah kar to aisee hindi padna aise shavdo ka upyog karna sapna hee hai jee........
    sach maniye kai shavdo se arse baad sakshatkar huaa........
    Aabhar

    जवाब देंहटाएं
  2. सुबह का सुंदर वर्णन, शब्दों का चयन और भी सुंदर , बहुत बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह , क्या चित्रण किया है भोर का . एकदम सटीक अभिव्यक्ति .

    जवाब देंहटाएं
  4. रविकर, रविवार, हिमकर...
    वाकई बहुत प्यारा पुनरागमन...

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत प्यारा गीत है रचना जी.सचमुच मज़ा आ गया

    जवाब देंहटाएं
  6. संकेत और संवाद कह रहे.
    आने को है नवयौवन.
    bahut hi badhiyaa

    जवाब देंहटाएं
  7. sbadon ke sunder chayan ne bhor ke varnan ko aur bhi khoobsurti pradaan ki hai.

    vismit karti aapki rachna bahut hi sunder hai.badhayi.

    जवाब देंहटाएं
  8. भोर का बेहद खूबसूरत चित्रण।
    आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (13/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

    जवाब देंहटाएं
  9. माफ कीजिएगा रचना जी! पहली बार असहमत हूँ सबसे कि ये कविता है... क्षमा मांगते हुए कहना पड़ रहा है कि हम इसे कविता मानए को तैयार नहीं...
    वास्तव में यह एक बहुत ही ख़ूबसूरत पेंटिंग है, जो आपने शब्दों से तैयार की है. हर शब्द एक अलग रंग की छटा बिखेर रहा है और दृश्य स्वतः दृष्टिगोचर होने लगता है!!

    जवाब देंहटाएं
  10. रचना जी, इसे अच्छी कविता कहने की बजाय प्रकृति प्रेम पर शब्दों से सुसज्जित अच्छा शब्द चित्र कहना ज़्यादा श्रेयस्कर लग रहा है| बधाई|

    जवाब देंहटाएं
  11. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  12. रचना जी नमस्कार.. आपकी यह कविता पढ़ कर मुझे विलियम वर्डस्वर्थ की कविता डेफ़ोडील्स की याद आ गई.. आप भी पढ़िए मेरे साथ कुछ पंक्तियाँ...
    " I WANDER'D lonely as a cloud
    That floats on high o'er vales and hills,
    When all at once I saw a crowd,
    A host, of golden daffodils;....
    ....... For oft, when on my couch I lie
    In vacant or in pensive mood,
    They flash upon that inward eye
    Which is the bliss of solitude;
    And then my heart with pleasure fills,
    And dances with the daffodils."

    जवाब देंहटाएं
  13. रचना जी , आपके हिंदी ज्ञान को नमन करता हूँ । बहुत सुन्दर वर्णन किया है भोर का ।

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत ही मधुर और कोमल शब्दों मेी बाँधा है भोर के आगमन को ... लाजवाब रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  15. रचना जी,
    आपके शब्द चित्र ने जैसे भोर को सजीव कर दिया !
    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना ! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! उम्दा प्रस्तुती! बधाई!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  17. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 14 -12 -2010
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..


    http://charchamanch.uchcharan.com/

    जवाब देंहटाएं
  18. मनोहारी चित्रण है भोर का..
    इसे लिखने के लिए आभार स्वीकारें...

    जवाब देंहटाएं
  19. आदरणीय रचना जी
    नमस्कार !
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
    बहुत सुन्दर वर्णन किया है भोर का ।
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

    जवाब देंहटाएं
  20. भोर का अद्भुत चित्रण..... प्रभावी अभिव्यक्ति.....

    जवाब देंहटाएं
  21. इस बेहतरीन शब्द चित्र पर एक बार फिर से मेरी बधाई स्वीकार करें रचना जी|

    जवाब देंहटाएं
  22. रचना जी
    पांच बार पढ़ चूका हूँ पर मन ही नहीं भरता

    जवाब देंहटाएं
  23. अरुणिम पीत हरीतिमा देखो,
    बिखर रही है सुमन सुमन.
    ये किसे रिझाने को प्राची,
    इतराती आंगन आंगन,
    संकेत और संवाद कह रहे.
    आने को है नवयौवन.

    शब्दों का चयन, भावनाओं का प्रवाह लाज़वाब...बहुत ही खूबसूरत शब्दचित्र ...बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  24. अरुणिम पीत हरीतिमा देखो,
    बिखर रही है सुमन सुमन.
    ये किसे रिझाने को प्राची,
    इतराती आंगन आंगन,
    संकेत और संवाद कह रहे.
    आने को है नवयौवन.
    बहुत सुन्दर प्रकृति की छठा का सुन्दर नई उमंग जगाता शब्द शिल्प। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  25. दृष्टि के साथ प्रत्‍येक गमनागमन नया है.

    जवाब देंहटाएं
  26. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों का संगम ...मेरे ब्‍लाग पर आपके प्रोत्‍साहन के लिये आभार ..।

    जवाब देंहटाएं
  27. आशा और उमंग का संचार करती यह कविता बेहतरीन शब्द चित्र है !शाश्वत बिम्ब है जो आँख मुंदने पर भी दिखाई देता है ! अति सुंदर !

    जवाब देंहटाएं
  28. आशा और उमंग का संचार करती यह कविता बेहतरीन शब्द चित्र है !शाश्वत बिम्ब है जो आँख मुंदने पर भी दिखाई देता है ! अति सुंदर !

    जवाब देंहटाएं
  29. आशा और उमंग का संचार करती यह कविता बेहतरीन शब्द चित्र है !शाश्वत बिम्ब है जो आँख मुंदने पर भी दिखाई देता है ! अति सुंदर !

    जवाब देंहटाएं
  30. प्रकृति के सुंदर चित्रण के साथ शब्दों का भी सुंदर संयोजन..बहुत सुंदर...

    http://veenakesur.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  31. नील तमस का अंत समय है,

    टूट रहा धरती से बंधन.

    अरुणिम पीत हरीतिमा देखो,
    बिखर रही है सुमन सुमन.
    ये किसे रिझाने को प्राची,
    इतराती आंगन आंगन,
    संकेत और संवाद कह रहे.
    आने को है नवयौवन. ......

    कितनी सुहानी सुबह है. रोम रोम जागृत कर गयी .

    जवाब देंहटाएं
  32. सुबह का शब्द-चित्र आप ने प्रस्तुत किया है..बहुत सुंदर!

    जवाब देंहटाएं
  33. आपकी चित्रात्मक भाषा का प्रयोग बहुत पसंद आया .........

    जवाब देंहटाएं
  34. शुष्क समीर की सरगम,
    लगी चाटने है तुहिन कन.
    अरुणिम पीत हरीतिमा देखो,
    बिखर रही है सुमन सुमन.


    बहुत सुन्दर चित्रण जिसमें जीवन संघर्ष खुलकर प्रतिबिम्बित हुआ है
    बधाई!!

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  35. bahut hi man bhavan mamohak prakriti ko aanchal m samete uska bkhaan karti hui aapki rachnabahut hi shandaar jaise prakriti se milap karva rahi hai badi khoobsurati ke saath.
    अरुणिम पीत हरीतिमा देखो,

    बिखर रही है सुमन सुमन.

    ये किसे रिझाने को प्राची,

    इतराती आंगन आंगन,
    Wah! iske aag kya kahun
    avarniy
    poonam

    जवाब देंहटाएं
  36. आजकल ब्लोग्स पर अच्छी हिन्दी कवितायें कम ही आती हैं ज्यादा पैरोडियाँ ही होती हैं...
    आपकी कविता पढकर लगा कि वाकई कोई साहित्यिक रचना पढ़ रहा हूँ... बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  37. भाषा और रचना के भाव दोनों उत्तम हैं !

    जवाब देंहटाएं
  38. "समस हिंदी" ब्लॉग की तरफ से सभी मित्रो और पाठको को
    "मेर्री क्रिसमस" की बहुत बहुत शुभकामनाये !

    ()”"”() ,*
    ( ‘o’ ) ,***
    =(,,)=(”‘)<-***
    (”"),,,(”") “**

    Roses 4 u…
    MERRY CHRISTMAS to U…

    मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है

    जवाब देंहटाएं

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