रविवार, 28 नवंबर 2010

आकर्षण

आकर्षण



कुछ लोग अत्यधिक सख्त होते है,

या हो जाते हैं.

जैसे कि तुम.

सबने तुम्हें आज़मा के देखा.

मैंने भी,

अंतर इतना ही था,

कि सब नमी से, व्यथित थे.

और मैं, नमी के लिए.

जानती जो हूँ, कि नमी के बिना,

मेरा अस्तित्व ही नहीं,

एक वो ही है, जो मुझे,

तुम्हारे नजदीक लाती है.

तुम्हारे नजदीक आते ही

फैलती हूँ, बिखरती हूँ.

मैं लिपटती हूँ, तुम्हारी देह से.

पाती हूँ सम्पूर्ण अपने आपको.

और जानते हो तब कैसी,

लालिमा निखरती है तुम्हारी काया पर.

क्या कहूँ अब,

जब से धरा है तुमने ये लौह रूप,

तुम्हारा सामीप्य पाने को.

मुझे जंग होना ही पड़ा है.



(चित्र गूगल से साभार)

52 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय रचना जी
    नमस्कार !
    बहुत सुंदर रचना एक दम अलग हटके भाव लिए हुए !
    अपने आप को समझना और समझाने की प्रक्रिया है इस रचना में .. लाजवाब .....
    आपकी रचनात्मकता लाजबाब है

    जवाब देंहटाएं
  2. कुछ लोग अत्यधिक सख्त होते है,
    या हो जाते हैं.
    जैसे कि तुम.
    सबने तुम्हें आज़मा के देखा.
    मैंने भी,
    इतनी गम्भीरता ला दी रचना में कि रचना अनेकार्थी हो गई है

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रभाव छोड़ने में कामयाब रचना के लिए बधाई ! ..

    जवाब देंहटाएं
  4. जब से धरा है तुमने ये लौह रूप,
    तुम्हारा सामीप्य पाने को.
    मुझे जंग होना ही पड़ा है.

    ,...बढ़िया बिम्ब

    सुन्दर प्रभावपूर्ण कृति

    जवाब देंहटाएं
  5. तुम्हारा सामीप्य पाने को.
    मुझे जंग होना ही पड़ा है.

    जंग भी तो नमी से ही लगा है ...बहुत खूबसूरत रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  6. आदरणीया रचना जी
    बहुत ही अलग अंदाज़ में बहुत कुछ कह देती है आप की ये कविता.

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. रचना जी.. जीवन के समीकरण को आकर्षण के रूप में आपकी प्रस्तुति अदभुद है.. जीवन के अनछुए पहलु को कितनी सहजता से व्यक्त करती हैं आप कि विस्मित रह जाता हूँ मैं.. बहुत सुन्दर कविता..

    जवाब देंहटाएं
  8. लौह-अयस्क में भी आपको प्रेम के सूत्र दिख गये, कठोरता और जीवन्तता का सटीक संयोजन।

    जवाब देंहटाएं
  9. एक बहुत ही नवीन व्याख्या या कहें उपमा कि लोहे का सानिंघ्य पाने को जंग बनजाना

    जवाब देंहटाएं
  10. रचना जी, आज तो आपने भूले बिसरे सूत्र याद दिला दिए. फेरस, फेरिक और फेरेसोफेरिक ओक्साइड के माध्यम से रिश्तों की पहचान... अयः रचना खुद से मिलाने का अनुभव दे गयी..

    जवाब देंहटाएं
  11. रचना जी ..
    आपकी रचना तो हमेशा ही अछि होती है...लेकिन इस बार कुछ ख़ास है....
    बहुत अच्छा...

    जवाब देंहटाएं
  12. रचना जी

    आज फिर आपकी कविता ने दिमाग और दिल दोनों को खुश कर दिया....

    Oxidation of iron को जों आपने इमोशनल टच दिया लाजवाब है

    जवाब देंहटाएं
  13. विज्ञान के बेहतरीन तर्कों का भावनाओं से अद्भुत मिलन - आभार।

    जवाब देंहटाएं
  14. गज़ब का बिम्ब प्रयोग और उतनी ही सुन्दर भावाव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  15. नए बिम्ब हैं ... अच्छा लगा ...
    आप लौह में भी कविता ढूढ़ लिए ... कमाल है ...

    जवाब देंहटाएं
  16. जब से धरा है तुमने ये लौह रूप,
    तुम्हारा सामीप्य पाने को.
    मुझे जंग होना ही पड़ा है.
    बहुत सुन्दर कविता..

    जवाब देंहटाएं
  17. बेहतरीन प्रस्तुति .गहरे जज्बात के साथ लिखी गई सुंदर कविता

    जवाब देंहटाएं
  18. नमी और जंग का खूब इस्तेमाल किया है आपने।

    जवाब देंहटाएं
  19. जब से धरा है तुमने ये लौह रूप,
    तुम्हारा सामीप्य पाने को.
    मुझे जंग होना ही पड़ा है.
    क्या उपमा है रचना जी. बहुत खूब.

    जवाब देंहटाएं
  20. जब से धरा है तुमने ये लौह रूप,
    तुम्हारा सामीप्य पाने को.
    मुझे जंग होना ही पड़ा है.
    भाव के अनुकूल बिम्ब का सुंदर प्रयोग ...
    शुक्रिया
    चलते -चलते पर आपका स्वागत है

    जवाब देंहटाएं
  21. क्या कहूँ अब,
    जब से धरा है तुमने ये लौह रूप,
    तुम्हारा सामीप्य पाने को.
    मुझे जंग होना ही पड़ा है.

    एक नई बात है इन पंक्तियों में ,बहुत सुंदर!

    जवाब देंहटाएं
  22. जब से धरा है तुमने ये लौह रूप,

    तुम्हारा सामीप्य पाने को.

    मुझे जंग होना ही पड़ा है.
    रचना कामाल की अभिव्यक्ति है प्यार का एहसास करवाने के लिये जंग का बिम्ब बहुत अच्छा लगा। इस्को आगे बढाऊँ----
    और जब जंग अपना असर दिखायेगा
    तो जानते हो
    तुम तुम नही रह जाओगे
    तब तुम्हारी पहचान मुझ से होगी
    और लोग कहेंगे
    जंग खाये हुये एक लौह पुरुष
    आजमा कर देख लो
    हा हा हा धृ्ष्ठता कर रही हूँ । लेकिन अंजाम तक जाये बिना कैसे चलेगा। बधाई इस रचना के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  23. जब से धरा है तुमने ये लौह रूप,

    तुम्हारा सामीप्य पाने को.

    मुझे जंग होना ही पड़ा है.
    रचना कामाल की अभिव्यक्ति है प्यार का एहसास करवाने के लिये जंग का बिम्ब बहुत अच्छा लगा। इस्को आगे बढाऊँ----
    और जब जंग अपना असर दिखायेगा
    तो जानते हो
    तुम तुम नही रह जाओगे
    तब तुम्हारी पहचान मुझ से होगी
    और लोग कहेंगे
    जंग खाये हुये एक लौह पुरुष
    आजमा कर देख लो
    हा हा हा धृ्ष्ठता कर रही हूँ । लेकिन अंजाम तक जाये बिना कैसे चलेगा। बधाई इस रचना के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  24. Hi..

    Teri kavita jab bhi padhi hai..
    Wo sabse hai alag lagi..
    'AKARSHAN' bhi humko 'RACHNA',
    si hi anupam hamen lagh..

    Har kavita main teri..
    Ek naveen sa bhav dikha..
    'LOHE' sang 'JUNG' ka rishta..
    Na humko yah 'PREM' dikha..

    'Wah'..RACHNA ji ki rachnasheelta vilakshan hai.. Eshwar aapke lekhan ko naye aayam de..

    Sundar kavita..

    Deepak..

    जवाब देंहटाएं
  25. जब से धरा है तुमने ये लौह रूप,
    तुम्हारा सामीप्य पाने को.
    मुझे जंग होना ही पड़ा है.
    .....

    तुम डाल डाल हम पात पात. तुम्हें पाने के सौ सौ जतन हमने किए . तुम्हारी रहगुजर पर चलते चले गए. खूबसूरत रचना .

    जवाब देंहटाएं
  26. बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने ! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब लगा! उम्दा प्रस्तुती!

    जवाब देंहटाएं
  27. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी इस रचना का लिंक मंगलवार 30 -11-2010
    को दिया गया है .
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    जवाब देंहटाएं
  28. तुम्हारा सामीप्य पाने को.
    मुझे जंग होना ही पड़ा है.

    क्‍या बात है इतना करीब से गुजरे यह शब्‍द ...।

    जवाब देंहटाएं
  29. जब से धरा है तुमने ये लौह रूप,
    तुम्हारा सामीप्य पाने को.
    मुझे जंग होना ही पड़ा है !
    बहुत ही खीझ भरा बिम्ब का प्रयोग है ! सचमच काफी गुस्सा निकलता हुआ सा प्रतीत हो रहा है ! राहत पहुचने वाली कविता के लिए खुल कर बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  30. आदरणीय रचना जी
    नमस्कार ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...

    जवाब देंहटाएं
  31. इस आकर्षण को कितना अद्भुत रूप दे दिया आपने। यह आकर्षण नहीं, प्रेम है। जहां इतनी शिद्दत हो, इतना महसूस करने का भाव हो। अच्छा लगा।

    जवाब देंहटाएं
  32. जब से धरा है तुमने लौह रूप , मुझे जंग होना ही पड़ा है ...
    इस प्रेम भाव के आगे कौन नतमस्तक नहीं होगा !

    जवाब देंहटाएं
  33. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  34. कुछ लोग अत्यधिक सख्त होते है,
    या हो जाते हैं.
    जैसे कि तुम.
    सबने तुम्हें आज़मा के देखा.
    मैंने भी,
    बहुत ही अर्थपूर्ण रचना है...

    जवाब देंहटाएं
  35. रचना जी ,
    लोहे को अगर जंग लग जाये तो किसी काम का नहीं रहता ......
    उसे साफ़ करना पड़ता है ...दोबारा काम में लाने के लिए .....!!

    जवाब देंहटाएं
  36. रचना माँ,
    नमस्ते!
    अटेंडेंस तो आपकी लग ही गयी.
    खैर, हम आये हैं तो क्लासवर्क, होमवर्क करके ही जायेंगे....
    नमी का क्या है? आपको ज़ंग लगाके....
    अब अगर मैं ऐसे ज़ंग लगाने लगूं.... तो हो गया बस!
    हा हा हा.....
    आशीष
    ---
    नौकरी इज़ नौकरी!

    जवाब देंहटाएं
  37. जब से धरा है तुमने ये लौह रूप,
    तुम्हारा सामीप्य पाने को.
    मुझे जंग होना ही पड़ा है.
    जंग के बिना लोहे का अस्तित्व ही कहाँ ?
    खूबसूरत बिम्ब |

    जवाब देंहटाएं
  38. रचना दीक्षित जी
    अभिवादन !

    कोमल भावनाओं को उद्घाटित करती इस रचना ने शुरू से आख़िर तक बांधे रख …
    सब नमी से, व्यथित थे,
    और मैं, नमी के लिए

    नमी में ही संभावना है नई कोंपलों के लिए … !

    जब से धरा है तुमने ये लौह रूप,
    तुम्हारा सामीप्य पाने को.
    मुझे जंग होना ही पड़ा है.


    आपका समर्पण भाव स्तुत्य है ।

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    जवाब देंहटाएं
  39. Fir se behad alag kism ki upmaaon se susajjit behad khubsoorat kavita :)

    जवाब देंहटाएं
  40. आपके समर्पण भाव से ओत-प्रोत रचनाये और जिंदगी के अनछुए पहलु पर लिखी रचनाये हर बार हतप्रभ कर जाती है और सोचने पर मजबूर करती हैं कि मैं क्यों नहीं लिख पाती इतनी अच्छी रचना.

    बहुत ही खूबसूरत.

    जवाब देंहटाएं
  41. भावनाओं को नए तेवर की चासनी में डुबो कर प्रस्तुत किया है !
    कविता को जितनी खूबसूरती से आपने गढ़ा है ,पाठक को ये उतनी ही मजबूती से बांधती है !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

    जवाब देंहटाएं
  42. जब से धरा है तुमने ये लौह रूप,

    तुम्हारा सामीप्य पाने को.

    मुझे जंग होना ही पड़ा है.
    Wah! Kya baat kahee hai! Aapki ye rachana mujhse kaise chhoot gayee?
    Aaur maine bhee aaj hee aapko yaad kiya tha!

    जवाब देंहटाएं
  43. ओह.... दर्द को ऐसे व्यां किया
    जैसे मुर्छित को अंगारे छुला दिया..].

    जवाब देंहटाएं
  44. जब से धरा है तुमने ये लौह रूप,
    तुम्हारा सामीप्य पाने को.
    मुझे जंग होना ही पड़ा है.

    इतना सक्षम और सटीक उदगार........... भई वाह| आपकी कल्पना शक्ति को नमन|

    जवाब देंहटाएं

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...