रविवार, 19 सितंबर 2010

आशा

आशा



जाने कितनी रातों को

छुप छुप कर, हम भी रोये हैं

जीवन में हमने भी अपने

बबूल से दिन ढोए हैं

फूलों का कभी साथ न पाया

काँटों में जखम पिरोये हैं

जाने कैसे कितने घाव

इन्हीं आँखों से धोए हैं

टूटे हुए मरहम के धागे भी

आज तक संजोए हैं

वयोवृद्ध अहसास हमारे

अब तक ताके पर सोये हैं

सूखे हुए आशा के बीज

अब अरमानों में भिगोए हैं

धरा पर तो जगह नहीं है

अंबर में सपने बोये हैं

44 टिप्‍पणियां:

  1. फूलों का कभी साथ न पाया
    काँटों में जखम पिरोये हैं

    कभी कभी काँटों में भी फूल खलते हैं ।

    सूखे हुए आशा के बीज
    अब अरमानों में भिगोए हैं
    धरा पर तो जगह नहीं है
    अंबर में सपने बोये हैं

    कुछ बीज सूखे होकर भी अंकुरित हो जाते हैं ।
    यही आशा है ।
    सुन्दर रचना ।

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  2. त्रुटि सुधार --कभी कभी काँटों में भी फूल खिलते हैं ।

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  3. सूखे हुए आशा के बीज

    अब अरमानों में भिगोए हैं

    धरा पर तो जगह नहीं है

    अंबर में सपने बोये हैं

    Kitna sundar likhtee hain aap!Baar,baar padhneka man hota hai...!

    जवाब देंहटाएं
  4. सूखे हुए आशा के बीज
    अब अरमानों में भिगोए हैं
    धरा पर तो जगह नहीं है
    अंबर में सपने बोये हैं
    बहुत सुन्दर. यही विश्वास तो नया जीवन देता है इन्सान को.

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  5. bahut hi achhi rachna.....
    जाने कितनी रातों को
    छुप छुप कर, हम भी रोये हैं
    waaah bahut sundar..kayi khubsurat panktiyaan...
    जाने कैसे कितने घाव
    इन्हीं आँखों से धोए हैं
    gr8...
    ----------------------------------
    मेरे ब्लॉग पर इस मौसम में भी पतझड़ ..
    जरूर आएँ...

    जवाब देंहटाएं
  6. धरा पर तो जगह नहीं है
    अंबर में सपने बोये हैं
    बहुत सुंदर पंक्तियां है...भाव बहुत अच्छे हैं

    जवाब देंहटाएं
  7. वयोवृद्ध अहसास हमारे
    अब तक ताके पर सोये हैं

    बहुत भाव पूर्ण ..

    अंबर में सपने बोये हैं

    सच है सपनों के लिए तो बिलकुल भी जगह नहीं है ...बहुत सुन्दर रचना ..

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  8. सूखे हुए आशा के बीज
    अब अरमानों में भिगोए हैं
    धरा पर तो जगह नहीं है
    अंबर में सपने बोये हैं

    आशा का दामन थामें रखना चाहिए .... सपने जीवित रहने चाहिएं ..... सूखे बीज भी पल्लवित हो जाएँगे ...

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  9. बहुत अच्छी रचना लगी.
    धन्यवाद.
    WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

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  10. अनूठी कविता...........

    प्यारी कविता ..........

    उत्तम पोस्ट !

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  11. जाने कविता का दर्द है या मेरे अंदर का सूनापन पलकों की कोर गीली हो गई आपकी कविता पढ कर... बेहद पसंद आई...

    जवाब देंहटाएं
  12. कौन सा शब्द लिखूं या छोड़ दू...जिसके लिए ये लिखूं की ये बहुत बढ़िया लगा...क्युकी मुझे सारी रचना ही बहुत बढ़िया लगी. और दिल से निकली तो हर बात ही दिल तक पहुँचती है.

    सो बहुत बहुत सुंदर 'रचना' बधाई.:)

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  13. पलकों से सपने लेने आयी,
    उजालों में गुरूर से लूटने आयी,
    खो गयी रौशनी सितारों की,
    तेज़ धूप हमें होश में लाई...
    बहुत कमाल की रचना है
    दिल मे उतर गयी
    शुभकामनायें

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  14. बहुत ख़ूब… प्रेरणादायक... आकाश सपने बोने का अनुभव... सोचकर रोमांच होता है... अब जाकर यकीं हुआ कि
    कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता
    एक पत्थर ज़रा तबीयत से उछालो यारो!

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  15. Good One! sach mein aashayein hi zindgi ban jaati hai...aur han wo vyovradh waali baat yaani tazurba uske bina bhi muskile hahin

    जवाब देंहटाएं
  16. स्वप्न ही तो आशा का संचार करती हैं. स्वप्न दिखते रहें, आशा जीवित रहे...यूँ ही प्रेरक सृजन चलता रहे।

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  17. नभ के सपने,
    कब थे अपने,
    पंख खो दिये,
    अब तो खग ने।

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  18. "सूखे हुए आशा के बीज
    अब अरमानों में भिगोए हैं
    धरा पर तो जगह नहीं है
    अंबर में सपने बोये हैं"
    रचना जी आपकी हर कविता कुछ नया कहती है.. इसी कविता को देखिये... आप अम्बर मे बीज बोने की बात कर रही है.. कितनी उम्दा बात है यह... एक नया बिम्ब है यह... हौसले की... आशावादी ... सुन्दर कविता... प्रेम और आशा मे डूबी हुई... अब तो रविवार को आपकी कविता का इन्त्जार रहने लगा है...

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  19. बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    समझ का फेर, राजभाषा हिन्दी पर संगीता स्वरूप की लघुकथा, पधारें

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  20. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 22 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  21. आशा ही तो हमें जिंदा रखे हुए है, रचनाजी!....हम इस आशा में रात गुजारते है कि कल सुबह होगी!...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!....धन्यवाद रचनाजी! आपकी शुभकामनाएं ही मेरा संबल है!

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  22. ...रचनाजी, हम सब साथ साथ है!....मेरे उपन्यास पर अगर फिल्म बनती भी है, तो भी मै यही हूं और यही रहूंगी!...धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  23. अच्छी प्रस्तुति

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  24. फूलों का कभी साथ न पाया


    काँटों में जखम पिरोये हैं

    Sunder Shabd

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  25. वयोवृद्ध अहसास हमारे

    अब तक ताके पर सोये हैं

    सूखे हुए आशा के बीज

    अब अरमानों में भिगोए हैं

    धरा पर तो जगह नहीं है

    अंबर में सपने बोये हैं
    bahut hi khoobsurat ,ek kami ko poora karne ke liye jis tarah aapne rasta dhoondha ,jawab nahi .

    जवाब देंहटाएं
  26. अतीत को याद करने अथवा
    उसमें खोने का जीवन्त प्रयास ।
    अति सुन्दर....अभिव्यक्ति ।
    सद्भावी -डंडा लखनवी

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  27. आसमान पर सपने बोने की आशा फलती फूलती रहे ...!

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  28. सुन्दर भावाव्यक्ति लिखते रहिये ...

    जवाब देंहटाएं
  29. खे हुए आशा के बीज
    अब अरमानों में भिगोए हैं
    धरा पर तो जगह नहीं है
    अंबर में सपने बोये हैं ।


    बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द, भावमय प्रस्‍तुति ।

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  30. फूलों का कभी साथ न पाया
    काँटों में जखम पिरोये हैं
    जाने कैसे कितने घाव
    इन्हीं आँखों से धोए हैं...
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! इस ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना के लिए बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  31. सूखे हुए आशा के बीज
    अब अरमानों में भिगोए हैं
    धरा पर तो जगह नहीं है
    अंबर में सपने बोये ...

    बहुत ही भावो में डूबी सुन्दर पोस्ट ...

    जवाब देंहटाएं
  32. अब तक ताके पर सोये हैं
    सूखे हुए आशा के बीज
    अब अरमानों में भिगोए हैं
    धरा पर तो जगह नहीं है
    अंबर में सपने बोये हैं
    बहुत ही सुन्दर पंक्तियां----सहज ढंग से आपने आशावादी विचारों को प्रस्तुत किया है।

    जवाब देंहटाएं
  33. जाने कैसे कितने घाव

    इन्हीं आँखों से धोए हैं

    दर्द को भी अब दर्द होने लगा है !दर्द खुद ही घाव धोने लगा है !
    बेहद मर्मस्पर्शी कविता है ! हृदय के दंश की अभिव्यक्ति है ! बधाई

    जवाब देंहटाएं
  34. सूखे हुए आशा के बीज
    अब अरमानों में भिगोए हैं
    धरा पर तो जगह नहीं है
    अंबर में सपने बोये हैं
    ...himmate-marda-madad-e khuda...

    जवाब देंहटाएं
  35. धरा पर तो जगह नहीं है
    अंबर में सपने बोये हैं


    rachna ki khoobsurat rachna ke liye dhero bandhaii ....awaysome

    जवाब देंहटाएं

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