रविवार, 22 अगस्त 2010

परिणिति

परिणिति  



हम यानि मैं और तुम

कितने खुश थे

मैं मदमस्त तुम आश्वस्त

तुम सदा ही अपनी बाहें फैलाए

मैं उनमें

लिपटती, झूलती,फिसलती

उनके बीच से निकलती

सारा सारा दिन अठखेलियाँ करती

कभी दूर जा बैठती

ये सोच की आज तुम्हे बहुत सताया

फिर अगले पल तुम्हें मायूस

अपनी ओर बाहें फैलाये देख

आ जाती खनकती हुई तुम्हारी परिधि में

याद है हमारे प्रणय की वो परिणिति

और कुछ रौशन गाँव

हमारे प्रेम की छाँव में

पढ़ता नन्हा ननकू

हमारी प्रणय परछाई

और अँधेरे में सहारा पाती एक माई

कितने खुश थे हम

याद आया ..........

जब तुम पवन चक्की और मैं हवा हुआ करते थे

38 टिप्‍पणियां:

  1. कविता कहाँ से शुरू हुआ और पूरी कविता को जिस भाव से ढाला उसके अंत में आकर लगा की हम भावों को पिरो कर कहाँ से कहाँ तक ले जा सकते हैं.
    बहुत सुन्दर आपकी अभिव्यक्ति.

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  2. लो कल्लो बात हम तो कहाँ कहाँ के खयालो में खो गए और लेकिन, किन्तु परन्तु आपकी अंत की पंक्ति ने तो झटके से खवाबो से धक्का दे दिया.

    क्या बात है सुंदर अभिव्यक्ति ...मन की बात कहते कहते मानो दिमाग हावी हो गया हो.हा.हा.हा.कुछ ऐसा सा लगा.

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  3. रचना जी कविता को कहाँ से शुरू किया और कहाँ ले गई... बिलकुल दूसरी दुनिया में.. ए़क नए अनुभव से साथ... अंतिम पंकितयां को कविता की जान हैं
    "जब तुम पवन चक्की और मैं हवा हुआ करते थे"
    और कविता को परिभाषित भी करती हैं.. बधाई!

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  4. वाह वाह तुम पवन मैं चक्की ....
    बढ़िया भावपूर्ण रचना प्रस्तुति....

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  5. बहुत सुन्दर ...अंतिम पंक्ति ही पञ्च लाईन है ...

    अच्छी रचना ..

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  6. बहुत मस्ती है, प्यार का एहसास है इस रचना में ... ऐसे ही सुनहरी यादों में जीवन बीते तो कितना अच्छा .... अच्छी रचना है ...

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  7. Aisi spapnil bhi duniya kabhi kisikee hoti hogi? Padhte,padhte man khwabon kee ek alag duniyame rahguzar kar aaya!

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  8. बहुत मस्ती है, प्यार का एहसास है इस रचना में

    जवाब देंहटाएं
  9. कविता को एक नए अंदाज़ में परिभाषित किया है आप ने !

    जवाब देंहटाएं
  10. अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
    कल (23/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
    और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।

    जवाब देंहटाएं
  11. इतना समर्पण बरसों पहले पंडित भरत व्यास के काव्य में देखा था
    तुम उषा की लालिमा हो, भोर का सिंदूर हो
    मेरे साँसों की हो गुंजन, मेरे मन की मयूर हो
    तुम हो पूजा, मैं पुजारी, तुम क्षमा मैं भूल हूँ.
    और आज आपने प्रणय से परिणय की यात्रा में पवन और पवनचक्की का बिम्ब प्रस्तुत कर एक नई उपमा दी है. बहुत सुंदर!!

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  12. अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
    कल (23/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
    और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत ही सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है! शुरू से अंत तक आपकी रचना पढ़ते हुए मैं उसमें मुग्ध हो गयी ! अंतिम पंक्ति तो कमाल का लिखा है आपने !

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  14. वाह , पवन चक्की और हवा की आँख मिचौली --क्या खूब बांधा है प्रणय सूत्र में ।
    आज तो आपने सरल शब्दों में भी बहुत भावपूर्ण रचना रच दी ।
    बेहतरीन ।

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  15. गजब...बहुत उम्दा रचना! आनन्द आ गया.

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  16. bahut hi khubsurat rachna.....
    umdaah prastuti...
    mere blog par is baar..
    पगली है बदली....
    http://i555.blogspot.com/

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  17. जब तुम पवन चक्की और मैं हवा हुआ करते थे ..................... गहरी अभिव्यक्ति.

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  18. जब तुम पवन चक्की और मैं हवा हुआ करते थे ..................... गहरी अभिव्यक्ति.

    जवाब देंहटाएं
  19. पवन चक्की और हवा को लेकर एक अद्भुत कल्पना.

    जवाब देंहटाएं
  20. बहुत ख़ूबसूरत बुनाई...अंत बहुत बढ़िया लगा इस कविता का.

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  21. रक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!

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  22. Hi..

    Wo lekar ke, hain fir aaye...
    ek naya aayam...
    kaviyon ko wo dete lagte...
    sabko ek paigam..

    Nij se thoda upar uthkar...
    rakho sabka man...
    aas paas jo kuch hai tere...
    usmen hai jeevan...

    "Manequeen" ho ya "Pawan-chakki"...
    sabme hai ek prem chhupa...
    dekh nahi paayi hai duniya...
    jo kuchh "Rachna" tumhen dikha..

    Sundar Rachna...

    Raksha Bandhan ki hardik Shubhkamnayen...

    Deepak..

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  23. पवन चक्की के माध्यम से सुन्दर भावनाओ का समन्वय |
    बहुत गहरी सोच होती है आपकी रचनाओ में |

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  24. हमारी प्रणय परछाई

    और अँधेरे में सहारा पाती एक माई

    कितने खुश थे हम

    याद आया ..........

    जब तुम पवन चक्की और मैं हवा हुआ करते
    bahut sundar ,

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  25. RACHANA JI ,
    JABARDASHT PREM KAVITA .. MAN KI SAARE BHAAV CHA GAYE HAI KAVITA ME.. KYA KAHUN.. SHABD NAHI HAI ABHI MERE PAAS.. ABHI TO AAPKKI KAVITA KE SHABDO KI GOONJ HI GOONJ RAHI HAI ..

    VIJAY
    आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html

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  26. जी याद तो आ रहा है कुछ कुछ ....कुछ और याद दिलाने की कोशिश करें ...
    अक्सर लोग ये परिणय प्रेम ही तो भूल जाते हैं .....
    सुंदर भावाभिव्यक्ति .....!!

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  27. कविता एक जीवत दृश्य की तरह चलती मन पे गहरी छाप छोडती हुई जब तुम पवन चक्की और मैं हवा हुआ करते थे के साथ पूर्ण परिणिति को प्राप्त होती है..

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  28. अनूठे बिम्बों से सजी एक और शानदार रचना

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  29. जब तुम पवन चक्की और मैं हवा हुआ करते थे..
    ..वाह क्या बात है !

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  30. कविता का नया रूप देखने को मिला.
    सुन्दर अभिव्यक्ति.

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  31. Abhi to "Bikhare sitare'pe kayiyon ko dhanywaad kahana baaqee hai..unme se ek aap hain!

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  32. रचना जी
    नमस्कार !
    नए बिम्ब नए प्रतीक , वाकई अद्भुत है .
    सादर

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  33. Jab tum pawan chakki aur main hawa hua karte the..... pranay smritiyon ko jiwant karne ka anutha andaj......

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  34. " Bikhare Sitare" blog pe aakaa shukriya ada kiya hai..zaroor dekhen.

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