रविवार, 29 अगस्त 2010

सूरजमुखी

सूरजमुखी

  

बन के सूरजमुखी, तकती रही ताउम्र जिसे,

वो मेरा सूरज नहीं किसी और का चाँद निकला.



जब भी देखी तितलियाँ रंग बिरंगी उसने,

दिल धड़का, उछला, मचला सौ बार निकला.


 
मुझ पर न पड़ी मुहब्बत भरी नज़र उसकी,

ये शायद मेरी ज़र्द रंगत का गुनाह निकला.

 

इस क़दर ज़ुल्म ढाए हैं उसने मुझ पर,

पर दिल की बस्ती से वो आज भी बेदाग़ निकला.

 

दोष क्या दें बादलों को सूरज ढांपने का,

हाय! जब अपनी किस्मत में ही दाग़ निकला.



खड़े हैं आज भी मुंह उठाये तेरी ओर,

पर तू तो चलता फिरता इक बाज़ार निकला.


कभी तो रखेगा तू, दो जलते हुए हर्फ़ मेरी पंखुरी पे,

इसी हसरत में ये सूरजमुखी हर बार निकला.


रविवार, 22 अगस्त 2010

परिणिति

परिणिति  



हम यानि मैं और तुम

कितने खुश थे

मैं मदमस्त तुम आश्वस्त

तुम सदा ही अपनी बाहें फैलाए

मैं उनमें

लिपटती, झूलती,फिसलती

उनके बीच से निकलती

सारा सारा दिन अठखेलियाँ करती

कभी दूर जा बैठती

ये सोच की आज तुम्हे बहुत सताया

फिर अगले पल तुम्हें मायूस

अपनी ओर बाहें फैलाये देख

आ जाती खनकती हुई तुम्हारी परिधि में

याद है हमारे प्रणय की वो परिणिति

और कुछ रौशन गाँव

हमारे प्रेम की छाँव में

पढ़ता नन्हा ननकू

हमारी प्रणय परछाई

और अँधेरे में सहारा पाती एक माई

कितने खुश थे हम

याद आया ..........

जब तुम पवन चक्की और मैं हवा हुआ करते थे

रविवार, 15 अगस्त 2010

सफ़र


सफ़र






कुछ भी तो नहीं बदला

रस्ते पर के ठूंठ

हर ठूंठ की छाँव में सुस्ताती धूप.

पानी की एक एक बूंद को तरसती

समंदर में एक सीपी

कहीं कोठरी में सुबकता बचपन

कहीं बचपन में पनपता यौवन

कुछ भी तो नहीं बदला

देह में धधकता दावानल

बयार में घुलता गंधक

आँखों में तरता तेज़ाब

ये सिर्फ शब्द नहीं

कुछ न कह पाने की व्यथा है

कहते हैं

देश ने प्रगति की है

निर्धन निरीह और निर्बल

आज भी वहीँ हैं

आज से तिरसठ साल पहले

छोड़ आई थी जहाँ.




रविवार, 8 अगस्त 2010

जल प्रपात


" जल प्रपात" 




मेरे नैनों के जल प्रपात से, 
किंचित,गंधक के सोते सा 
पवित्र औषधीय जल बहता  है 
कितना व्यथित किया सबने, मुझे 
ये पावन नीर बहाने  को 
कोई निहारे खुश हो जाये 
कोई डिबिया भर घर ले जाये 
कोई पाप उतारे, कोई पांव पाखरे 
कोई भात बनाए, अपनों में बांटे  
कोई कलह उबाले, फिर छींटे मारे  
ये जग खारे जल से पोषित  
पर  मेरे दृग  दो  बूंद  न  आया  
सौ बार  मुझे यदि  जनम  मिले  तो  
मुझको  दरिया  जल में  देना  
मैं  बहूँ,  मेरे नैन  बहें
खारा पन दिन रैन रहे  
जीवन में कुछ चैन रहे  
फिर चाहें, सारा  जग  बेचैन रहे   




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