रविवार, 4 जुलाई 2010

समय


समय




असमय ही,

समय के कुछ पल बह गए थे.


सहेजा बहुत,

सो कुछ रह गए थे.


एक समय था,

समय से मेरी अंजुरी भरी थी.

पर समय, तो समय से,

सरकता रहा.

मैं सोती रही,

वो खोता रहा.

नींद से जागी,


जब सबेरा हुआ,



पर अंजुरी थी खाली,


वो न मेरा हुआ.


सहेजे बहुत मैंने,


बहके हुए पल


पर,


समय पर,


समय को बनाना न आया.

जो छूटा था पीछे,

उसको लाना न आया.


सभी को नचाया,

इशारे पे अपने


पर शायद

समय को नचाना न आया.





33 टिप्‍पणियां:

  1. bahut sunder........
    ajee ye samay hee hume nachata hai.........
    kathputalee matr mahsoos hota hai kabhee kabhee...

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  2. समय की रफ़्तार तो वही रहती है ... बस इंसान ही साथ नही रह पाता ... अच्छी रचना है बहुत ही ...

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  3. सभी को नचाया,
    इशारे पे अपने

    पर शायद
    समय को नचाना न आया.

    यहीं तो इंसान मात खा जाता है और समय अपनी गति से चलता रहता है और हर एक को चलाता रहता है...लेकिन इंसान सोचता है की हर एक को मैं चला रहा हूँ.

    यही इंसान समझ ले तो...ऐसी रचनाओ का जन्म न हो...बहुत सुंदर शब्दों में ढली आपकी हमारी सबकी आप-बीती लिख दी.
    बधाई.

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  4. इसीलिये तो इसे बलवान कहते हैं ।

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  5. सटीक अभिव्यक्ति....समय के हाथों ही इंसान मात खाता आया है....

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  6. सभी को नचाया,
    इशारे पे अपने
    पर शायद
    समय को नचाना न आया.

    सुन्दर अभिव्यक्ति !

    जवाब देंहटाएं
  7. समय को सहेजने और उनके खोने के द्वन्द के बीच की ए़क सुंदर कविता ! समय को लेकर कई नयी अभिव्यक्ति है इस कविता में ! प्रभावशाली रचना

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  8. "सभी को नचाया,
    इशारे पे अपने
    पर शायद
    समय को नचाना न आया"

    शाश्वत सत्य की रोचक तथा प्रशंसनीय प्रस्तुति - "कोई इसे नचा कर दिखाए तो जानें"

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  9. bahut badhiya.......

    samay ke liye badi pyari baat kahi aapne......

    maine bhi kuchh dino pahle likha tha....

    समय"
    जिसमे है सिर्फ तीन अक्षर
    जो है एक छोटा सा शब्द मात्र
    लेकिन है इसमें समाहित
    अति विशाल शक्तियों को
    समेटे रखने वाला पात्र
    जड़ जगत के जीव सर्वत्र
    नाचते हैं, गाते हैं...
    इसके धुरी पर हो कर एकत्र.........!!!


    इसके गति के साथ
    जिसने भी बैठाया ताल-मेल
    सफलता की बुलंदियों पर
    पहुंचा बन कर सुपर मेल
    परन्तु, हम जैसे साधारण लोगो की सोच..?
    हमारे लिए तो ये वही है
    पसेंजेर, वही रलेम-पेल!!!!!!!!!!1

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  10. पर समय, तो समय से,
    सरकता रहा.
    मैं सोती रही,
    वो खोता रहा.
    ठीक ही कहा है , जो जागत है सो पावत है , जो सोवत है सो खोवत है ।
    समय की महिमा अपरम्पार ।
    अब देखिये न बड़ी मुश्किल से , कितने समय के बाद, आपका ब्लॉग खुल पाया है ।

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  11. समय को बनाना न आया.

    जो छूटा था पीछे,

    उसको लाना न आया.


    सभी को नचाया,

    इशारे पे अपने


    पर शायद

    समय को नचाना न आया.

    रचना जी सही कहा बहुत सुन्दर रचना है अगर हम समय को नचा सकते तो दुख ही कहाँ रहता। बस यही अपने हाथ मे नही। शुभकामनायें

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  12. वक़्त के दिन और रात, वक़्त के कल और आज
    वक़्त की हर शै ग़ुलाम, वक़्त का हर शै पे राज.
    आपने भी इसी समय के महत्व को रेखांकित किया है... इस मूल्यवान शै पर एक अनमोल रचना!

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  13. सहेजे बहुत मैंने,
    बहके हुए पल
    पर,
    समय पर,
    समय को बनाना न आया.
    जो छूटा था पीछे,
    उसको लाना न आया.


    क्या बात है रचना जी ,
    पा गई न आप भी पार..सीख ही गई शब्दो की जादूगरी..देखिए,
    सब कुछ समय पर होता है, समय न होता है ना होने देता है.. रोता है न रोने देता है..समय तो पल पल बस जैसे हमीं को हमीं में बोता है
    सचमुच
    सब कुछ समय पर होता है

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  14. samay ke saath chal pana kai baar asanbhav hota hai aur samay apni abadh gati se gatisheel rahta hai. ... vishay par achchhi pakad.....

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  15. जो छूटा था पीछे,
    उसको लाना न आया.
    सभी को नचाया,
    इशारे पे अपने
    पर शायद
    समय को नचाना न आया.

    समय को सहेजने क प्रयास ही मानवीय गुणो के विकास में सहायक होता है।"सभी को नचाया, इशारे पे अपने पर शायद समय को नचाना न आया"- समय स्वयम् में एक कैन्वस है जिसमे जीवन के सारे रङ्ग हैं ।इसे सहेज् कर रखना ही स्वयम् को आगे ले जान है।

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  16. bahut sundar soch ,samya to swabhavvash chanchal aur asthir hai ,ansuna karta nikal jaata hai kabhi kabhi ,khoob likhi hai .

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  17. samay to samay se sarakta raha.....ek shashvat sach ka chitran.....sunder

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  18. Hi..

    Aha. Yun to puri kavita atyant sundar hai par kavita ki antim panktia swatah hi hothon par ek muskaan saja gayin..

    Sab kuchh bandh ke rakha tha par..
    Samay bandh na paaya koi..
    Samay ret sa nikla karta..
    Muthi main jo pakde koi..

    Sundar kavita..

    Deepak..

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  19. समय को सहेजना आपने सिखाया है इस कविता में ! खोने और पाने और ना सहेज पाने का द्वन्द भी है ! सुंदर रचना ! प्रभावित करती है !

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  20. सभी को नचाया,
    इशारे पे अपने

    पर शायद
    समय को नचाना न आया.

    bahut kuchh keh jaati hai ye panktiyan!... jiska naam samay ho use bhala baandhkar kaise rakh sakten hai bhalaa!... ati uttam prastuti!

    जवाब देंहटाएं
  21. rachna ji,
    sachmuch samay ke aage sabko nachana padtaa hai.bhala samay ko koun nacha saka hai?
    poonam

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  22. सभी को नचाया,

    इशारे पे अपने


    पर शायद

    समय को नचाना न आया.


    वाह .....!!

    आइना दिखलाती रचना .....!!

    जवाब देंहटाएं
  23. सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार.

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  24. बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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  25. wahhhhhh behatrin prastuti

    samay ki dhaar to yun hi aviral bahti rahegi na rahenge to sirf hum hi na rahenge

    जवाब देंहटाएं
  26. सभी को नचाया,

    इशारे पे अपने

    पर शायद

    समय को नचाना न आया.

    सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  27. सभी को नचाया,

    इशारे पे अपने

    पर शायद

    समय को नचाना न आया.

    सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  28. असमय ही,
    समय के कुछ पल बह गए थे.

    वाह क्या बात है, सुंदर !

    जवाब देंहटाएं

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