गुरुवार, 29 जुलाई 2010

अब से रावण नहीं मरेगा

अब से रावण नहीं मरेगा




कहते हैं, रावण व्यथित नहीं होता

मैं, कैकसी-विश्वश्रवा पुत्र

दसग्रीव

सूर्पनखा सहोदर, मंदोदरी पति, लंकेश

अपराधी हूँ ,

हाँ! मैं अपराधी हूँ...

पर मात्र एक

अक्षम्य अपराध

सीता हरण का

पर यहाँ तो होता है

प्रतिदिन

न जाने कितनी ही सीताओं का अपहरण

फिर दुस्श्शासन बन चीर हरण,

करती हैं वो, मरण का

रोज ही  वरण

एक अपराध का दंड मृत्यु

सौ अपराध का दंड मृत्यु

फिर क्यों ???

मैं एक अपराध के लिए

युग युगान्तरों तक जलूं

मैं, दशकंधर सबने देखा है

तुम सब कितने सर, किसने देखा है

मैं, लंकेश, लंकापति, दशानन

व्यथित हूँ !!!

मैं रावण हूँ

पर रामायण बदलने न दूंगा

अब मैं रावणों के हांथों नही मरूँगा

ये प्रण लेता हूँ

अब न मरुँगा,

अब न जलूँगा

जाओ ढूंढ़ लाओ,

मात्र एक राम मेरे लिए

तब तक मैं यहीं प्रतीक्षारत हूँ

मैं, कैकसी-विश्वश्रवा पुत्र

दसग्रीव

सूर्पनखा सहोदर, मंदोदरी पति, लंकेश

अपराधी हूँ ,

पर सिर्फ राम का.



रविवार, 25 जुलाई 2010

नीरवता

नीरवता




मेरी स्मृति की निर्जनता में,
मेरी सांसें सेंध लगा जाती हैं
मेरे नीरव आभूषण भी
उच्छवासों को दे जाती हैं
मैं गीत विरह के अक्सर गाती
वो प्रणय- राग सुनाती हैं
पर मेरी नीरवता तो कैद
मेरे कजरौटे में,
सुबह सबेरे आँखों में सज जाती है
मेरे नैनों की निर्जन घाटी

हिमाच्छादित होती जाती है
हिम की पसरी रेती में
निष्ठुर  यादें  संरक्षित होती जाती है
मेरी ऑंखें मौन, विरह का
स्वप्न सजाती जाती हैं
मुझे विस्मृत करती सारी स्मृतियाँ
स्वयमेव ही आ जाती हैं
मेरे जीवन के निःस्पंदन को
निःस्वन करती जाती हैं
मेरी स्मृति की निर्जनता में,
मेरी सांसें सेंध लगा जाती हैं.

रविवार, 18 जुलाई 2010

बार-कोड

बार-कोड


मेरी पलकों के  बार-कोड ने

कल जब बहुत शोर मचाया था
 
अपने बार-कोड रीडर से तुमने,

फ़ौरन मुझे पढ़वाया था

एक्सपायरी डेट पास जान


जश्न खूब मनाया था


एक्सपायरी डेट निकल गयी

तो क्या,

मैं नयी पैकिंग में आऊँगी,


अपने माथे पे बिंदिया की जगह,

क्यू टैग,  सजाऊँगी,

 अपनी देह पर जहाँ तहां,

मेग्नेटिक

सिक्योरिटी टैग  लगाउँगी  

तुम्हे छोड़ कोई हाथ लगाये,

तो बीप- बीप चिल्लाऊँगी

मार्केट के मोस्ट सेलेबल के

आगे अपनी धाक जमाऊँगी

तुम क्या समझे बहुत पढ़े हो

चालाकी तुमको आती है

घर में रहती हूँ तो क्या !!!!!

मार्केटिंग मुझको भी आती है






बार कोड, बार कोड रीडर, सेंसर टैग्स मार्केटिंग सिक्यूरिटी में उपयोग आने वाले उपकरण हैं


रविवार, 11 जुलाई 2010

मैनेक़ुइन

" मैनेक़ुइन"



मैनेक़ुइन हूँ , तो क्या हुआ  

मैं भी इंसानों सा दिल रखती हूँ

हर दिन मेरा पूनम होता

रात अमावस होती है

आधे कपड़े, पूरे कपड़े

ऐसे कपड़े, वैसे  कपड़े

जाने कैसे, कैसे कपड़े

कभी दुल्हन बनूँ

कभी नग्न रहूँ

सारा सारा दिन खड़ी रहूँ

रातों को पूरी ढकी रहूँ

मुझको भी लज्जा आती है

ऑंखें मेरी  भी भर आती हैं

सबकी बुरी नज़र सताती है

सारा दिन सब मुझको तकते हैं

मेरी बात न करते, थकते हैं

रात के अंधियारे में

हम सब मिल रोज़ सुबकते हैं

कोई मुझको भी आ कर ले जाये

घर में बिस्तर पर मुझे बिठाये

बिटिया जैसा प्यार जताए.

फिर क्यों न जीवन सफल हो जाये.


(Mannequin  - A life-size full or partial representation of the human body, used for the fitting or displaying of clothes; a dummy)





रविवार, 4 जुलाई 2010

समय


समय




असमय ही,

समय के कुछ पल बह गए थे.


सहेजा बहुत,

सो कुछ रह गए थे.


एक समय था,

समय से मेरी अंजुरी भरी थी.

पर समय, तो समय से,

सरकता रहा.

मैं सोती रही,

वो खोता रहा.

नींद से जागी,


जब सबेरा हुआ,



पर अंजुरी थी खाली,


वो न मेरा हुआ.


सहेजे बहुत मैंने,


बहके हुए पल


पर,


समय पर,


समय को बनाना न आया.

जो छूटा था पीछे,

उसको लाना न आया.


सभी को नचाया,

इशारे पे अपने


पर शायद

समय को नचाना न आया.





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