रविवार, 30 मई 2010

राहें

राहें



कभी भूल गए थे, जिन राहों को

कल, मैंने उन पर चल कर देखा

प्रेम पसारे, राहें तकते 

उनको   आज वहीँ पर देखा

मैंने कितनी धारें बदलीं, 

हर पल अपनी  राहें बदलीं

नाते-रिश्ते,  दुनियादारी,

जाने कितनी बाहें बदली

पर, आस बिछाए,  सांसें ओढ़े

उनको फिर भी जगते देखा 

आओ लौट चलें उन पर फिर

उनमें   मैंने सम्मोहन देखा

आज की इन नयी राहों पर

कहाँ   नेह  बरसते   देखा  

 कभी भूल गए थे जिन राहों को

कल मैंने उन पर चल कर देखा




36 टिप्‍पणियां:

  1. कभी भूल गए थे, जिन राहों को
    कल, मैंने उन पर चल कर देखा
    भूली बिसरी यादों संग चलना अच्छा लगता है

    सुन्दर रचना

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  2. समय समय पर संबंधों पर पड़ी गर्त को हटाते रहना चाहिए ।
    इसी से संबंधों में नवीनता बनी रहती है ।
    सुन्दर रचना ।

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  3. बहुत खूबसूरती से लिखे हैं एहसास...अच्छी रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. कभी भूल गए थे जिन राहों को

    कल मैंने उन पर चल कर देखा

    वाह क्या बात है रचना जी. बहुत सुन्दर.

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  5. बस ये रास्ते हम न भूले और न हमसे छूटे...

    बहुत सुन्दर रचना.

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  6. कभी भूल गए थे जिन राहों को

    कल मैंने उन पर चल कर देखा
    Na jane kaunsi duniya me aap le gayin! Man wahin atka hua hai..
    And what a hauntingly beautiful picture!

    जवाब देंहटाएं
  7. "मैंने कितनी धारें बदलीं,
    हर पल अपनी राहें बदलीं
    नाते-रिश्ते, दुनियादारी,
    जाने कितनी बाहें बदली
    पर, आस बिछाए, सांसें ओढ़े
    उनको फिर भी जगते देखा"
    भावपूर्ण रचना के साथ-साथ हमेशा की तरह मनमोहक तस्वीर

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  8. कभी भूल गए थे, जिन राहों को
    कल, मैंने उन पर चल कर देखा ...
    बहुत सुंदर पंक्तियाँ... बहुत भावात्मक प्रस्तुति...

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  9. काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर

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  10. आप बहुत सुंदर लिखती हैं. भाव मन से उपजे मगर ये खूबसूरत बिम्ब सिर्फ आपके खजाने में ही हैं

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  11. अति सुन्दर ...उत्तम कृति !!!..सब कुछ सधा हुआ सा !!!!!

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  12. कभी भूल गए थे जिन राहों को

    कल मैंने उन पर चल कर देखा
    बेहतरीन पंक्तियाँ...अक्सर पल दो पल चल लेना चाहिए उन राहों पर.

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  13. आपकी राहें कविता पढ़ी... बहुत अच्छी लगी..बधाई.

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  14. sundar rachana ke liye badhaee ho rachana ji...Satish Golyan......
    my e mail : merimadhushala@gmail.com

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  15. पुरानी रहो पर चलना....ओह..पढ़ते-पढ़ते ही चले गए थे जी उन पुरानी राहो पर...

    कुंवर जी,

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  16. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता है! पढ़कर बहुत अच्छा लगा!

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  17. Rachna Ji,
    Sunder Rachna ke liye badhaai
    नाते-रिश्ते, दुनियादारी,
    जाने कितनी बाहें बदली
    पर, आस बिछाए, सांसें ओढ़े
    उनको फिर भी जगते देखा

    Surinder Ratti

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत खूबसूरत एहसासों को समेटे हुए रचना ...
    आज की इन नयी राहों पर
    कहाँ नेह बरसते देखा
    कभी भूल गए थे जिन राहों को
    कल मैंने उन पर चल कर देखा

    बहुत सुन्दर !

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  19. आपकी रचनाएँ बहुत ही सरल, सुंदर और सौम्य है

    कभी अजनबी सी, कभी जानी पहचानी सी, जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…

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  20. good one! rachna ji ek baar aapki kis post par hi padha tha hi aap koi write-up Bhagat singh par likhne waali hain ....Uska intezaar hai

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  21. सच है चलता तो इंसान है राहें तो वहीं खड़ी रहती हैं ... प्रतीक्षा में ... अच्छी रचना है ..

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  22. भूल गयी राहों पे फिर से चलने का भी अपना ही मजा है.भूले भटके कई फसाने कई जमाने याद आते है.

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  23. आज की इन नयी राहों पर
    कहाँ नेह बरसते देखा
    bilkul sahi kaha hai kya hota ja rha hai kyo ?bhavna shuny hote ja rhe hai aaj ?kahi ham hi to iske jimmevar nahi?

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  24. पर, आस बिछाए, सांसें ओढ़े
    उनको फिर भी जगते देखा

    sundar rachna

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  25. ,,,,एक बात और ....आपकी प्रोफाइल में लिखी कविता बहुत सुन्दर है ,,,कम शब्दों में बेहतरीन और सार्थक रचना ..,पढ़कर अच्छा लगा !!!!

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  26. "
    "मैंने कितनी धारें बदलीं,
    हर पल अपनी राहें बदलीं
    नाते-रिश्ते, दुनियादारी,
    जाने कितनी बाहें बदली
    पर, आस बिछाए, सांसें ओढ़े
    उनको फिर भी जगते देखा"रचना आपने बहुत सुंदर लिखा सच मच हर शब्द साधा हुआ लिखा है.. बहुत सुंदर भाषा!!

    जवाब देंहटाएं
  27. "
    "मैंने कितनी धारें बदलीं,
    हर पल अपनी राहें बदलीं
    नाते-रिश्ते, दुनियादारी,
    जाने कितनी बाहें बदली
    पर, आस बिछाए, सांसें ओढ़े
    उनको फिर भी जगते देखा"रचना आपने बहुत सुंदर लिखा सच मच हर शब्द साधा हुआ लिखा है.. बहुत सुंदर भाषा!!

    जवाब देंहटाएं
  28. कोशिश करनी होगी - इन नई राहों में नेह बरसे.

    जवाब देंहटाएं
  29. कभी भूल गए थे जिन राहों को

    कल मैंने उन पर चल कर देखा
    aapki ye poori rachna bahut hi pasand aai main apne blog par jab kuchh panktiyan dekhi is rachna ki tabhi utavali ho uthi padhne ko aur kud aai tippani karne .bahar rahi ek mahine se do din pahle lauti hoon ,man to nahi raha abhi judne ka magar fikr sabhi sathiyon ki khinch laai .aur kholte hi aapki rachna ke shabd -shabd man ki baate kahne lage mujhse .aur rahat mili ....

    जवाब देंहटाएं
  30. कभी भूल गए थे, जिन राहों को
    कल, मैंने उन पर चल कर देखा
    भूली बिसरी यादों संग चलना अच्छा लगता है

    शानदार रचना.

    जवाब देंहटाएं
  31. मैंने कितनी धारें बदलीं,
    हर पल अपनी राहें बदलीं
    नाते-रिश्ते, दुनियादारी,
    जाने कितनी बाहें बदली
    पर, आस बिछाए, सांसें ओढ़े
    उनको फिर भी जगते देखा

    सुंदर भावाभिव्यक्ति....

    जवाब देंहटाएं
  32. शब्दों में खूबसूरती से पिरोये गए एहसास......
    बहुत सुन्दर!

    शुभकामनाएं....

    जवाब देंहटाएं

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