राजनीति
राजनीति मेरे रग रग में बसी है
लूट, खसोट, सेंधमारी और क़त्ल करवाए मैंने.
फिर उन्हीं के आशियाने भी बसवाये मैंने.
हर राजनीतिज्ञ की तरह अपने इर्द गिर्द,
अभेद्य सुरक्षा आवरण भी रचाए मैंने.
हर सुरक्षा चूक की तरह,
यहाँ भी एक चूक हो गयी.
मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल हो गयी.
करवाती थी, लोगो से, लोगो के लिए, जो मैं.
अपने लिए अपने आप ही कर बैठी वो मैं.
तख्ता पलट गया मेरा.
मोहल्ले की संसद में मजबूर हो गयी मैं.
आम राजनेता की तरह, मायूस हो नहीं,
बड़े अभिमान से नैतिक जिमेद्दारी भी ले बैठी मैं.
आज तक कर रही हूँ,
अपनी भूल का प्रायश्चित मैं.
जो लोग किया करते थे,
कभी दर पर मेरे.
वो आमरण अनशन आज भी किये बैठी हूँ मैं.
जो किया करती थी कभी,
हजारों दिलों पर राज, मैं.
तेरे दिल के द्वार पर
दरबान बनी बैठी हूँ, मैं.
हाँ, इस प्रेम की राजनीति में,
जो कुछ कबूला है मैंने,
वो सच है.
पर कैसे गिर गयी,
मेरी मग़रूर सरकार.
इसका मुझे आज भी अचरज है.
तख्ता पलटने वाले का भी तो तख्ता पलटता है
जवाब देंहटाएंदेश की राजनीति से प्रेम राजनीति बेहतर है।
जवाब देंहटाएंप्रेम में झुकना ही तो प्रेम की परिभाषा है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, रचना जी ।
ये हुई न बात ! मगरूर की सरकार तो गिरती ही है ! कभी कभी अपने ही काजल से अपने को नजर लग जाती है ! प्रेम की राजनीती कौन समझ पाया है आजतक.. वैसे तेवर लग रहे थे थोड़े थोड़े ...हे हे ! इस भीषण गर्मी में फुहार की तरह बढिया पोस्ट ! बधाई !
जवाब देंहटाएंराजनीति और प्रेम का समीकरण बैठाती आपकी रचना ... अलग अंदाज़ में .... बहुत अच्छी लगी ...
जवाब देंहटाएंEk rachna ki drashi se dekho to nisandeh kavita khoobsoorat hain...Prem mein agar raajniti aur magroor vyavhaar aa jaaye to fir prem kaha...dil ke rishton mein ego ki koi jagah nahi :-)
जवाब देंहटाएंतेरे दिल के द्वार पर
जवाब देंहटाएंदरबान बनी बैठी हूँ, मैं.
हाँ, इस प्रेम की राजनीति में,
जो कुछ कबूला है मैंने,
वो सच है.
पर कैसे गिर गयी,
मेरी मग़रूर सरकार.
इसका मुझे आज भी अचरज है.
bahut hi sundar ,aapka kahana kuchh had tak uchit bhi hai ,rajniti ka ansh mil hi jaata hai .....umda
प्रिया जी
जवाब देंहटाएंमैं आपकी बात से सहमत हूँ, पर कुछ लोग प्रेम के नाम पर राजनीति करते रहते हैं जिसका उन्हें गुरुर भी रहता है गलती से अगर उन्हें सच्चा प्रेम हो जाये तभी असलियत समझ आती है और सारी मगरुरियत भी धरी रह जाती है|
सामयिक कविता है प्रेम की राजनीति ही सर्वश्रेष्ठ है..."
जवाब देंहटाएंरचना जी, आपकी यह रचना बहुत अच्छी लगी ! सामाजिक तौर पर भले ही राजनीतिक चाल कामयाब हो जाती है, पर प्रेम सम्बन्ध में समीकरण कुछ और ही होते हैं, यहाँ राजनीति भी अलग होती है ।
जवाब देंहटाएंवो आमरण अनशन आज भी किये बैठी हूँ मैं.
जवाब देंहटाएंजो किया करती थी कभी,
हजारों दिलों पर राज, मैं.
तेरे दिल के द्वार पर
दरबान बनी बैठी हूँ, मैं.
पर कैसे गिर गयी,
मेरी मग़रूर सरकार.
इसका मुझे आज भी अचरज है.
रचनाजी ,
तिल के लिए एक शायर यूं फरमाते हैं-
अब मैं समझा तेरे रुख़सार पै तिल का मतलब,
दौलते हुश्न पै दरबान बिठा रक्खा है।
हालांकि मासूम तिल जानता भी नहीं कि वह दरबान बना बैठा है ।
या शायद शायर जनाब ही नहीं जान पाए कि जिसे वे दरबान समझ रहें है ,वह नेम पलेट है कि आओ ,यहां छुपा है हुश्न का खजाना
खैर बात आपने मगरूर सरकार के गिरने पै खत्म की है
तो विनम्रतापूर्वक अर्ज है कि मगरूर है तो गिरेगी ही। आश्चर्य कैसा ?
बहुत सुन्दर रचना. बधाई.
जवाब देंहटाएंतेरे दिल के द्वार पर
जवाब देंहटाएंदरबान बनी बैठी हूँ, मैं.
rachna ji ye to prem me samarpan ka bhav hai... raajneeti kaise...rajneete ke bahane prem ko abhivyakt karti rachna... sunder srijan
वो सच है.
जवाब देंहटाएंपर कैसे गिर गयी,
मेरी मग़रूर सरकार.
इसका मुझे आज भी अचरज है.
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
आज तो बहुत नया रंग है आपकी नज़्म का...प्रेम में राजनीति....अच्छा कटाक्ष है...
जवाब देंहटाएंवो सच है.
पर कैसे गिर गयी,
मेरी मग़रूर सरकार.
इसका मुझे आज भी अचरज है.
जो सोचते हैं उससे जब उल्टा हो जाता है तो अचरज तो होना ही है...बहुत खूब
सच्चे प्रेम में समर्पण इसी को कहते हैं...जब स्व' से आगे बढ़कर व्यक्ति सोचने लगता है.
जवाब देंहटाएंसच्चे प्रेम में समर्पण इसी को कहते हैं...जब स्व' से आगे बढ़कर व्यक्ति सोचने लगता है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और दिलचस्प रचना! बधाई!
जवाब देंहटाएंइसका मुझे आज भी अचरज है.
जवाब देंहटाएंजो सोचते हैं उससे जब उल्टा हो जाता है तो अचरज तो होना ही है...बहुत खूब
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
जवाब देंहटाएंबढ़िया ...
जवाब देंहटाएंadbhut....... andaz..........
जवाब देंहटाएंbadiya rachana............
बहुत ही सुन्दर रचना! आपकी रचना मुझे भी पसंद आई.
जवाब देंहटाएं______________
'पाखी की दुनिया' में इस बार माउन्ट हैरियट की सैर करना न भूलें !!
फिर से एक उत्कृष्ट रचना.
जवाब देंहटाएंप्रेम में राजनीति नहीं चलती
जवाब देंहटाएंकैकेयी की तरह गिरती है
औंधे मुँह।
--अच्छे भाव है कविता के।
आपके ब्लॉग पर आना सार्थक हुआ। अंवेषण, अहसास सब कविताएं एक से बढ़कर एक हैं।
जवाब देंहटाएंjawaab nahi aapki is rachna ka .......
जवाब देंहटाएंहाँ, इस प्रेम की राजनीति में,
जवाब देंहटाएंजो कुछ कबूला है मैंने,
वो सच है.
पर कैसे गिर गयी,
मेरी मग़रूर सरकार.
इसका मुझे आज भी अचरज है.
Kaisi anoothi tulna hai yah!
राजनीति वो भी प्रेम की.....
जवाब देंहटाएंवाह....
Is tikhi rachna ke liye badhai.
जवाब देंहटाएंअलग अंदाज में प्रभावशाली बात कहती हुई आपकी रचना...
जवाब देंहटाएं(पहले समझने में थोड़ी चूक हो गयी थी. )
इन अबूझे सवालों के जवाब आसान कहां हैं
जवाब देंहटाएंपर सावन रहा सदा नयनों में,
जवाब देंहटाएंजाने क्यों मधुमास न आया.
अम्बर रहा सदा अंखियों में,
पर मैंने क्यों विस्तार न पाया!
मैंने क्यों विस्तार न पाया!
..... ...sundar bimb sayojana ke saath Gahari bhavabhikti
Haardik shubhkamnayne.
aaj rajniti kahan nahi hai ?
जवाब देंहटाएंbahut hi badhiya prastuti ,rachana ji.shabdo ka chayan bhi bahut hi umda hai.
जवाब देंहटाएंpoonam