रविवार, 28 मार्च 2010

अहसास

सा




आशुतोष ने फिर

उषा का घूँघट उठाया है.

लजा के उसने भी

चेहरा तो दिखया है.

सुहागन हो गयीं दिशाएं सारी

सिंदूर यूँ सजाया है.

पर

ओस की बूंदों का आंचल

दूब के सर से भी तो

तूने ही हटाया है,

क्या बात है दिवाकर

कोई मलिन विचार आया है.

क्या भूल गया प्रतिद्वंदी घन को,

जो कुछ करने पे आ जायेगा,

दूब को चूनर ओढ़ा उषा को ले जाएगा.

मैं तो सदा हद में रही,

चाहे जितना भी ऊँची उड़ी.

तू भी जरा हद, बना ले अपनी

नहीं तो आदमी बन जाएगा.

आदमी बन जाएगा.


रविवार, 21 मार्च 2010

गुरुत्वाकर्षण

गुरुत्वाकर्षण


बचपन में पढ़े तो बहुत थे

विज्ञान के नियम.

पर उनके होने का 

पहला आभास हुआ तब,

जब पहली बार 

तुम्हे देखा भर था,

शाश्वत सा हो गया वो आकर्षण,

मुझे अहसास था.

मैं फिर भी आश्वस्त रही, 

कि किसी न किसी  दिन तो टूटेगा, 

उस न्यूटन का भरम

और मैं स्वतः ही निकल जाऊंगी.

 कभी तुम्हारे दायरे से बाहर.

पर हैरान हूँ मैं, 

उसकी दूरदर्शिता पर 

सत्यापित हो चुके हैं उसके नियम. 

आज भी यथावत है

वो चुम्बकत्व, रोमांच 

तुम, मैं   

तुम्हारी बाँहों के गुरुत्व बल के घेरे

और सम्पूर्णता.


(न्यूटन के नियम :  आम भाषा  में
कोई वस्तु चल रही है तो चलती रहेगी, जब तक कोई रोके नहीं.
हर क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है.
किन्ही भी दो वस्तुओं के बीच सदैव एक आकर्षण बल होता है, जो गुरूत्वाकर्षण कहलाता है)

रविवार, 14 मार्च 2010

दीवानगी

दीवानगी




ढूंढा करती थी जिन्हें बाग़ औ दरिया में कभी,
जाने क्यों आज वो सारे वीराने मिले.

जम गए थे जो लफ्ज़ कभी सीने में मेरे,
उनको बहाने के आज सौ बहाने मिले.

 इस कदर रुसवा हुआ तू मुझसे,
बस मयखाने में ही तेरे ठिकाने मिले.

पलट के देखा तो झुके हुए अल्फाज़ तेरे,
आज भी  हर सफे पे पुराने मिले.

आ मिल झूम के इक बार फिर मुझसे ऐसे,
जैसे मुद्दत के बाद दो दीवाने मिले.

हद हो गयी तेरी दीवानगी की अब तो,
सूखे हुए लब तेरे आज भी मेरे सिरहाने मिले.  

रविवार, 7 मार्च 2010

द्वन्द

द्वन्द

आज आमाशय की तंग गलियों में

जठर का रिसाव रोज़ की अपेक्षा थोडा कम है.

प्राण वायु व कलुषित वायु की कलह से उपजे,

 वायु के बुलबुले 

जठराग्नि को हवा दे रहे हैं.

फलतः मेरु द्रव में मद्धम - मद्धम

स्पंदन की अनुभूति हुई है,
 
जो मस्तिष्क द्रव से मिल,

 मेरु- मस्तिष्क द्रव में,

अनायास ही कोलाहल में परिणित हुआ है,

 और अब मस्तिष्क पटल पर,

कुछ पीली, सफ़ेद तरंगों के

 उद्दीपन का फैलाव,

 शरीर में एक अजीब सी

नवजात हलचल को जन्म दे रहा है,

क्या ये,

किसी घातक रोग की विलक्षणता के लक्षण हैं.

या

किसी के प्रेम के अनुमोदन का ज्वर

और उसकी मौन स्वीकृति की

उदघोषणा से पहले का

मानसिक द्वन्द.



(प्राण वायु - ओक्सीज़न, कलुषित वायु- कार्बन डाई ऑक्साइड, मेरु द्रव-स्पाइनल फ्लुइड, मस्तिष्क द्रव-सेरेब्रल फ्लुइड, मेरु - मस्तिष्क द्रव---सेरेब्रो- स्पाइनल फ्लुइड)








        

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