रविवार, 17 जनवरी 2010

झूठ के पांव


झूठ के पांव



झूठ के पांव निकलते देखा है

सच पे सवार होते देखा है

कान्हा की आड़ में,

लीला का नाम ले,

कदाचार देखा है

पवनसुतों के सीने में,

व्याभिचार देखा है

मर्यादा पुरुशोत्तमों को करते,

भ्रष्टाचार देखा है

अपनी आयु लीलने को,

जानकी को लाचार देखा है

दूर क्यों जाऊं कहीं,

जब पतियों को,

करते दुश्शासन सा,

दुराचार देखा है

किस किस की गवाही दूँ,

कौन मानेगा

जब मैंने

झूठ के पांव निकलते देखा है

सच पे सवार होते देखा है

(फोटोग्राफ मेरी बेटी शाश्वती दीक्षित द्वारा हमारे व्यक्तिगत एल्बम से)














24 टिप्‍पणियां:

  1. झूठ के पांव निकलते देखा है
    सच पे सवार होते देखा है
    जी हाँ सही फ़रमाया और तस्वीर के तो क्या कहने. सच को सरेआम करती बेजोड़, लाजवाब (विशेषण शायद छोटे पड़ें) अभिव्यक्ति.

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  2. बहुत सुन्दर ,
    झूठ के पांव निकलते देखा है
    सच पे सवार होते देखा है
    vaah
    सब जानते हैं कि ऐसा भी होता है
    लाचार हैं , दर्द मगर होता है

    जवाब देंहटाएं
  3. कान्हा की आड़ में,

    लीला का नाम ले,

    कदाचार देखा है

    पवनसुतों के सीने में,

    व्याभिचार देखा है

    आज यही सब हो रहा है समाज में ..बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  4. आज के सामाजिक माहॉल का सजीव चित्रण किया है आपने ....... झूठ के पाँव बहुत ही लंबे है आज .........

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  5. झूठ के पांव निकलते देखा है
    सच पे सवार होते देखा है

    एक दम सच्चाई ब्यान कर दी , आपने।

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  6. jhoot ke paav lambe hai aur kanoon ke haath chhote...yahi aaj k samaaj ka haal hai aur kyu na ho kehte he na ghar ghar me ram roop me ravan baitha ho aur kanoon k gharo me bhrasht neta to u hi hoga na.

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  7. झूठ के पांव निकलते देखा है

    सच पे सवार होते देखा है...
    बेहद खूबसूरत.

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  8. mujhe rachna hi nahi tasvir bhi behad shaandar lagi ,kyoki jhooth ke paav sune the magar dekhna naseeb aaj hi hua .
    दूर क्यों जाऊं कहीं,

    जब पतियों को,

    करते दुश्शासन सा,

    दुराचार देखा है
    in panktiyon me jo dam hai use padhkar aanand aa gaya .

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  9. सुंदर कविता
    आप सदा ही मन को छू जाने वाली रचनाएँ लिखती हैं किन्तु इसको अद्भुत बनाया है शाश्वती के फोटो ने. मैं तस्वीर को कई बार देखता सा रहा गया था फिर पोस्ट पढ़ना शुरू किया तो इस कमाल के बारे में मालूम हुआ. आपको शुभकामनाएं शाश्वती को आशीष.

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  10. 'झूठ के पांव' पढ़ कर ओर देख कर बहुत अच्छा लगा,ओर आपने जो जो देखा ओर महसूस किया है हमने भी ऐसा ही देखा ओर महसूस किया है बस आपने हिम्मत से कह दिया हम हिम्मत ही नहीं जुटा पाए,हम भी उसी समाज का एक हिस्सा हैं अक्सर हम गलत होते देख कर चुप रहना ही भलाई समझते है -हम आज के समाज के लोग बहुत संकीर्ण ओर अपने तक ही सिमट कर रह गए है ,आपकी लेखनी को प्रणाम ओर हाँ सुन्दर चित्रण के लिए शाश्वती को स्नेहिल आशीर्वाद

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  11. झूठ का सच उजागर करती एक सशक्त रचना. संवेदनाओं के समस्त तारों को झंकृत कर देने की ताकत रखने वाली कविता.
    आदि काल से वर्तमान की नंगी हकीकत बयान कर दी आपने. मैं इस रचना की प्रशस्ति में उचित शब्दों का अभाव महसूस कर रहा हूँ.
    पहली बार आपके ब्लाग पर आया और इस देरी से हुए नुकसान का आकलन कर रहा हूँ. सच, देर हुई आने में लेकिन अभी कुछ बिगड़ा नहीं है.
    इस जानदार-शानदार रचना के लिए आपको बधाई.

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  12. सबसे पहले तो सुंदर फोटोग्राफी की दाद देना चाहूँगा ...वाह क्या मार्डन आर्ट को उतारा है कैमरे में!

    कविता तो लाजवाब है ही. खासकर ये तो पंक्तियाँ -

    झूठ के पांव निकलते देखा है
    सच पे सवार होते देखा है
    ..बधाई.

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  13. अच्छी रचना है और शाश्वति को इस फोटोग्राफ के लिये बधाई ।

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  14. Vartmaan samaaj mein insaniyat mein badlaav ka bahut hi sahi sajeev chitran kiya hai aap ne apni is kavita mein.

    Chitr behad sateek..kavita ke marm ke anurup.
    abhaar.

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  15. सुंदर तस्वीर के साथ एकदम सही फ़रमाया आपने..... झूठ को सच पे सवार होते देखा है..... बहुत उम्दा रचना.....

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  16. बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी ! इस लाजवाब और बेहतरीन रचना के लिए बधाई!

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  17. फोटो अद्भूत है... शाश्वती के फोटोग्राफी भी कमाल हैं..

    कविता में साहस है सत्य का चित्रण किया है आपने.

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  18. मेरी कविता के साथ लगी तस्वीर की सराहना के लिए व मेरी बेटी को प्रोत्साहित करने के लिए आभार

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  19. जितनी उम्दा रचना...उतना ही बढ़िया चित्र. आप दोनों को बधाई.

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  20. हमेशा की तरह बेजोड़ रचना ! फोटोग्राफ तो
    कमाल का है ! बहुत बहुत बधाई !

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  21. अच्छी रचना है और शाश्वति को इस फोटोग्राफ के लिये बधाई ।”

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  22. शाश्वती की तस्वीरें हैरान करती हैं। अभी उधर दूसरे ब्लौग पर भी देख कर आ रहा हूँ। कविता सामयिक है...

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