जल संचयन
मैं, जल पवित्र नदियों और सागर का,
उड़ के अम्बुद बन इतराता अंबर में,
देखता हूँ जब धरा पे
सूखी माटी, प्यासे तन-मन.
गिरता हूँ, टपकता हूँ, बिखरता हूँ,
सरकता हूँ, तर करता हूँ,
हर आंगन, अटारी, चौबारा और मन....
इस तरह प्यार करता हूँ इस धरिणी
और इसकी संतान से
कि यहीं से बनता हूँ ,
यहीं के लिए बनता हूँ,
यहीं पर ही मर मिटता हूँ.
मैं, जल पवित्र नदियों और सागर का
बहाया जाता हूँ घर कि नालियों में,
गंदे नालों में, सड़कों पे,
गटर में और न जाने कहाँ कहाँ.
कहते हैं सृष्टि में,
जीवन का अभिन्न अंग हूँ मैं !!!
मेरे बिन जी नहीं सकते तुम सब.
पर.... मुझे प्यार भी तो नहीं करते.
दुलारो, पुकारो, पुचकारो, थपथपाओ,
मुझे प्यार करो.
भर लो किसी पोखर, किसी बावड़ी में,
कहीं नांद, कहीं हौद में,
कर लो हर घर में, वर्षा जल संचयन
तुम सब के प्रति मेरे प्रगाढ़ प्रेम का,
एक बार, यूँ भी तो जवाब दे के देखो.
मैं, जल पवित्र नदियों और सागर का.
जल संचयन को आप अंग्रेजी में water harvesting से जानते है.
(चित्र साभार गूगल के सौजन्य से.)