रविवार, 6 दिसंबर 2009

छत

छत



घर की छत पर
दीवारों के कोनों में
उगते कुछ नन्हें पौधे
केवल नमीं के सहारे
जीते ये पौधे
कितनी ही बार
नोंच कर फेंक दिए हैं मैंने
हर बार
न जाने कहाँ से
अपने अस्तित्व को बचाने को
ढूँढ ही लाते हैं कुछ नमी
अपने आस-पास
फिर उसी नमी की गोद में
पलते बढ़ते पनपते ये पौधे
वैसे ही
मेरे आँखों की कोर में
बसते कुछ सपने
आँखों की नमी में पनपते
कितनी ही बार
तोड़ दिए हैं मैंने
पर ये सपने हैं कि
अपने अस्तित्व को बनाये रखने को
ढूँढ ही लेते हैं,
आँखों के कोनों में छिपी नमी
हर बार टूट कर और मज़बूत होते सपने
इन सपनों को साकार करने के लिए
चाहिए हर रोज़
नमी की कुछ ताज़ा बूंदें
आँखों की नमीं
अब सिर्फ नमीं नहीं है
ये प्राण वायु है मेरे सपनों की

23 टिप्‍पणियां:

  1. जडें जब गहरी होती है तो अस्तित्व नमी ढूढ ही लेता है.

    सुन्दर रचना

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  2. बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ बहुत सुंदर और सार्थक कविता.........

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  3. अच्छी तुलना के साथ भावात्मक अभिव्यक्ति।

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  4. बहुत उम्दा गहन अभिव्यक्ति!!

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  5. सुन्दर रचना,तुलना अच्छी की है ।

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  6. नन्हें पौधे और छोटे सपनों क्या तालमेल बनाया है और सुन्दर शब्दों का प्रयोग कर एक बेहतरीन रचना लिख डाली। वाकई कमाल का लेखन।

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  7. रचना जी
    नमीं और सपनों की खाद से ही तो जीवन - जमीन उर्वर होती है .

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  8. वाह!
    कितनी खूबसूरती से आपने घर की छत पर नमी के सहारे उगते पौधे की तुलना
    आँखों की नमी के सहारे दिखने वाले सपनों से की है
    यह शरीर भी एक घर के समान है
    इसमे भी कई कमरे होते हैं
    नमी से तो भयावह सपने दिखते हैं
    वैसे ही अनचाहे पौधे जैसे....

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  9. Behad Khoobsoorat!
    Aapki 'Rachna' padh kar kuchh vahiyaat panktiyaan yaad aa rahi hain:
    Muhabbat ka rang chhootta kahan hai?
    Ye paakeeza rishta tootta kahan hai?

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  10. इन सपनों को साकार करने के लिए
    चाहिए हर रोज़
    नमी की कुछ ताज़ा बूंदें
    आँखों की नमीं
    अब सिर्फ नमीं नहीं है
    ये प्राण वायु है मेरे सपनों की

    sach kahaa aapne...
    sapno ko apni zindgi ke liye
    bhaavnaatmak nami ki zarurat hoti hi hai...bahut khoobi se sanketaatmak vivran diyaa hai aapne apni rachnaa mein...waah !!

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  11. आशा और उम्मीद हमेशा बनी रहे ....... सपने टूट जाएँ पर मरे नही .......... ये आशा ही है जोजीने के सहारे ढूँढ लेते हैं ......... बहुत सुंदर रचना है ...........

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  12. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों के साथ बेहतरीन रचना ।

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  13. 'अपने अस्तित्व को बचाने को
    ढूँढ ही लाते हैं कुछ नमी'
    कविता की सबसे प्रभावी पंक्ति लगी
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  14. अपने अस्तित्व को बनाये रखने को
    ढूँढ ही लेते हैं,
    आँखों के कोनों में छिपी नमी ..

    sunder bhaav...sunder abhivyakti...

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  15. इन सपनों को साकार करने के लिए
    चाहिए हर रोज़
    नमी की कुछ ताज़ा बूंदें
    आँखों की नमीं
    अब सिर्फ नमीं नहीं है
    ये प्राण वायु है मेरे सपनों की
    bahut sundar ,sahi hai bilkul aaj dooriyaan hi basar rah gayi ,aham me darare ubhar gayi ,aapki umeed iska ant karna chahti hai ,badhiya
    aapki rachna maine apne blog par dekhi bahut hi achchhi lagi .

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  16. ज़िन्दगी को सुलगाने की ज़रूरत है
    रिश्तों में ठहराव की ज़रूरत है
    हर क़दमों से पहल की ज़रूरत है......
    वह 'कल' जिसमें एक 'घर' के मायने थे,
    उसे लौटने की ज़रूरत है

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  17. अब दरारों में रिश्ते रहते हैं .nice

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  18. रि‍श्‍तों का बेहतर चि‍त्र खींचा है....

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