शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

ग़म



ग़म





एक ग़म जो तुमसे मिला

उसके मिलने का अब क्या गिला

एक रहबर जो मुझे मिला

उसके बिन अब क्या काफिला

अब तो यूँ ही चलेगा गम का सिलसिला

                          सुकून मिला, मिला, न मिला, न मिला

उसके न मिलने का भी अब क्या गिला


अब तो है यह सिर्फ ग़मों का काफिला

इसमें फिर एक ग़मगीन फूल खिला


एक ग़म जो तुमसे मिला

उसके मिलने का अब क्या गिला

11 टिप्‍पणियां:

  1. वाह !

    अन्तर से उभरी कविता

    अंतस में उपजी कविता

    उम्दा कविता ..............

    जवाब देंहटाएं
  2. आपने बहुत अच्छा लिखा है। विचार और शिल्प प्रभावित करते हैं। मैने भी अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-घरेलू हिंसा से लहूलुहान महिलाओं का तन और मन-मौका लगे तो पढ़ें और अपनी राय भी दें-

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  3. खूबसूरत भाव की पंक्तियाँ।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  4. अब तो है यह सिर्फ ग़मों का काफिला

    इसमें फिर एक ग़मगीन फूल खिला

    ग़मगीन ही सही, फूल तो खिला.
    भावविभोर करती रचना.

    जवाब देंहटाएं
  5. एक गम जो तुमसे मिला !
    बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति !
    लिखते रहिये रचना जी !
    काव्य समृद्ध हो रहा है !
    बधाइयों के साथ ....

    जवाब देंहटाएं
  6. एक ग़म जो तुमसे मिला

    उसके मिलने का अब क्या गिला

    एक रहबर जो मुझे मिला

    उसके बिन अब क्या काफिला

    अब तो यूँ ही चलेगा गम का सिलसिला
    bahut sundar bhav aur behtrin rachna ,mere blog par aakar itni sundar panktiyaan likhi hai aapne ki padhkar khush ho gaya man ,shukriyaan dil se .

    जवाब देंहटाएं
  7. कम शब्दों में बहुत सुन्दर कविता।
    बहुत सुन्दर रचना । आभार
    ढेर सारी शुभकामनायें.

    Sanjay bhaskar
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं

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