बुधवार, 25 नवंबर 2009

सड़क

       सड़क



 तुमने किसी सड़क को चलते हुए देखा है

ये सड़क कहाँ जायेगी कभी सोचा है
 


ये सड़कें न तो चलती हैं,न कहीं जाती हैं

ये एक मूक दर्शक की तरह स्थिर हैं

ये सड़कें आजाद हैं
 
कहीं भी किसी भी सड़क से मिल जाने को
 
ये आज़ाद हैं किसी को भी



अपने से जुदा कर जाने को
 
ये काली लम्बी उथली


तो कभी चिकनी लहराती बलखाती
 
कभी सपाट तो कभी उबड़- खाबड़


असीम अनंत दिशायों तक फैली

अपने सीने पर


इन्सान को बड़े गर्व से उठाने को

कभी मंदिर मार्ग कभी मस्जिद मोड़ जाने को

पर
मंदिर मार्ग पर जाने वाला हर इन्सान मंदिर नहीं जाता


मस्जिद मोड़ पर जाने वाले सिर्फ मस्जिद नहीं जाते


गाँधी रोड पर जाने वाले सब गाँधीवादी नहीं होते

मदर टेरेसा रोड पर जाने वाले सब दयालु नहीं होते
 
क्यों ऐसे नाम रखते हैं सड़कों के
 
जहाँ गाँधी रोड पर दारू बिके


मंदिर मार्ग पर गाय कटे


मस्जिद मार्ग पर औरत बिके

मदर टेरेसा मार्ग पर इज्ज़त लुटे
 
ये सड़कें बड़ी धर्म- निरपेक्ष हैं

इन सड़कों में सर्व-धर्म समभाव है

इन सड़कों को मत बांटो

गाँधीवादियों के लिए

श्रद्धालुओं  के लिए

भिखारियों के लिए


इन्हें तो बस रहने दो


आम आदमियों के लिए



शनिवार, 21 नवंबर 2009

हमसफ़र

हमसफ़र




सुबहो शाम इस धूप को बदलते देखा है


इसी धूप में सायों को छोटा और बड़ा होते देखा है


एक ही दिन में कितने मिजाज़ बदलते देखा है


कभी साए को हमसफ़र के साथ तो कभी


हमसफ़र को साए से लिपटते देखा है


सब तो कहते हैं की बुरे वक्त में


साए को साथ छोड़ते देखा है

हमने तो बुरे वक्त में सिर्फ साया ही देखा है

लोग तो रिश्तों के टूटने की बात करते हैं


हमने तो टूटते रिश्तों का ग़म भी देखा है

सुबहो शाम इस धूप को बदलते देखा है



सोमवार, 16 नवंबर 2009

आज भी

आज भी



बचपन से, उनसे सुनती रही

एक माँ के न होने कि व्यथा

महसूस करती रही, उनकी ये वेदना

जो, कभी व्यथित कर देती थी मुझे भी

इससे भी ज्यादा व्यथित होती मैं

जब सुनती उनकी प्रभु से प्रार्थना

जो दुःख मुझ बिन माँ के बच्चे ने पाया

मेरे  बच्चे कभी न पायें

मेरे बच्चों से उनकी माँ कोई न छीनें
  
एक दिन ये सब कुछ बेमानी हो गया

जब मजबूर किया था उन्होंने ही

एक माँ को, उसके बच्चों से नाता तोड़ने को 

दुहाई दी थी, अपनी 

यानि उस माँ के सुहाग की 

लड़ती रही वो माँ

अपनी  ममता की लड़ाई

महसूस करती रही

अपनी छातियों में टीस

पर निशब्द  

ममता और सुहाग की जंग में

हार गयी एक दिन वो माँ

अपनी ममता की साँसे 

और अपने बच्चों के कांधों

 पर सज कर इस दुनिया से जाने का गौरव

आज भी उस माँ की याद में

 मैं परिंदों को उनका मनपसंद दाना खिलाती हूँ

और ढूँढती हूँ

 उनमें  उस अभागन  माँ को

शायद कभी कोई परिंदा मुझे देख कर

चहक उठे और मैं पढ़ लूँ 

उसकी आँखों में एक माँ होने का दर्द   





शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

ग़म



ग़म





एक ग़म जो तुमसे मिला

उसके मिलने का अब क्या गिला

एक रहबर जो मुझे मिला

उसके बिन अब क्या काफिला

अब तो यूँ ही चलेगा गम का सिलसिला

                          सुकून मिला, मिला, न मिला, न मिला

उसके न मिलने का भी अब क्या गिला


अब तो है यह सिर्फ ग़मों का काफिला

इसमें फिर एक ग़मगीन फूल खिला


एक ग़म जो तुमसे मिला

उसके मिलने का अब क्या गिला

गुरुवार, 12 नवंबर 2009

ऊँची उड़ान


ऊँची उड़ान




  
इस आसमां को छूने की हसरत रही है दिल में


मैं पांवों पे उड़ के जाऊं, हाथों को भी बढाऊँ


जितना भी पास जाऊं, वो दूर ही रहा था


गर्दन उठायी जब भी, वो उड़ता ही जा रहा  था


मैंने उड़ना नहीं था सीखा, सो दूर जा गिरी थी


बैसाखियों के बल पर, कुछ पाना नहीं है सीखा


बेबस खड़ी थी मैं, यूँ हवा में कोहनियाँ टिकाये


कि चुपके से कोई बोला


आसमां को पहले सिर्फ तू छूना ही चाहती थी


अब सिर्फ आसमां को छूना मकसद नहीं है तेरा


आसमां है ऊँचा कोई बात अब नहीं है


आसमां को छूने का सवाल ही नहीं है


अब आसमां को मैं पाना ही चाहती हूँ


उस को पाकर आजमाना भी चाहती हूँ


क्यों, दूसरो के आसमां, में तारे बहुत हैं ज्यादा


क्यों मेरे आसमां  में एक चाँद भी नहीं है


कानों में शोर कैसा?


क्या, कुछ पा लिया है मैंने?


ये जोशे जुनूं, मेरे जिगर का ही असर है


कि आसमां पिघल कर नीचे को आ रहा है


ये उँगलियों का मेरे चुम्बक सा, असर है


कि आसमां खिंचा सा मेरी ओर आ रहा है


मैंने उसको पा लिया है उसने मुझको पा लिया है

बुधवार, 4 नवंबर 2009

नागफनी





नागफनी


दिल को ग़म के गर्द औ गुबार और धुएँ से बचाने को ,हमने

दिल में एक बगिया लगा रखी है

फूल खिल के गुलाब के चार दिन को

बगिया को सूनी बना जाते हैं

दिल की बगिया में सावन लहलहाने को सदा, हमने

नागफनी ही लगा रखी है

खुशबू होती है गुलाब की चार दिन

औ इतर से भी पाई जा सकती है

याद रखने को दिल की चुभन ता उम्र, हमने

दिल में नागफनी की बाड़ लगा रखी है

जीने को गुलाब को चाहिए

एक खुशगावर माली हवा औ पानी

जीवित रखने को नागफनी को,हमने

दिल में हरारत औ आँखों में नमी छुपा रखी है

झड़ जाता है गुलाब इश्क की हवा से भी

मेरी नागफनी ने दिल में गहरे

अपनी जड़ें बिछा रखी हैं

सताने वालों मेरे भूल न पाऊं तुम्हें

सो तुम्हारी तस्वीर हर कांटे पे लगा रखी है

तुम क्या दोगे हमें जीने के सहारे

उधार की सांसों पे जीने वालों

हमने तो काँटों में भी महफ़िल सजा रखी है

डाली है हम पर भी बुरी नज़र फूलों ने यारों

ये तो कांटे हैं जिन्होंने अस्मत बचाए रखी है

दिल को ग़म के गर्द औ गुबार और धुएँ से बचाने को ,हमने

दिल में एक बगिया लगा रखी है
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