गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

मेरे दुश्शासन

मेरे दुश्शासन



वो ख़त

जो मैंने तुम्हें लिखे थे

हाँ, वो अनकहे ख़त

मैंने आज भी सहेज कर रखे हैं

मेरी अलमारी में बिछे

अखबार की तहों के भीतर

आज अचानक

वो फिर हाथ लग गये

खो गयी थी मैं

उन पुरानी बातों में

मैंने देखा

मेरी सुधियों का चीर थामे

तुम आज भी निर्भीक

वहीँ खड़े थे

छोड़ आई थी जहाँ मैं

तुम्हें बरसों पहले

तुम मुझे अच्छे लगे

इतने अच्छे कि

मुझे मैं द्रौपदी और तुम दुश्शासन लगे

मैंने तुमसे कोई विनती नहीं की

मैंने नहीं पुकारा किसी कान्हा को

क्योंकि मैं

चीर हरण चाहती थी

आज मैं अपने अंतर्मन को

अनावरित करना चाहती थी

अपनी भावनाओं को

निर्वस्त्र कर देना चाहती

तुम्हारे आगे

पर तभी

लाज के कान्हा ने अपनी

उपस्थिति दर्ज करा दी थी

द्रौपदी और दुश्शासन के

मौन संवाद के बीच

आज मुझे कान्हा का

हस्तक्षेप नहीं भाया

फिर क्या था

कान्हा ने अपना काम कर दिखाया

बढ़ता रहा सुधियों का चीर

गढ़ता रहा मन में पीर

बहता रहा नैनों से नीर

बस इतना ही सह सकी मैं

इससे ज्यादा कुछ और न कह सकी मैं

मेरे दुश्शासन

सहेज ली हैं मैंने वो अनछुई सांसें

फिर अपने सीने मैं

समेट ली हैं चंद अनकही बातें

मैंने अपने माथे के पसीने में

जाने कितने जनम लगेंगे

फिर सुधियों का दामन सीने में

26 टिप्‍पणियां:

  1. दोस्ती में दुश्मनी अब तो निभाई जायगी ,
    बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जायगी |



    बहुत गहरी बात है ,रचना जी ,सुन्दर रचना |

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रिय रचना जी

    अत्यंत सुंदर विचार पेश किये है इस कविता के माध्यम से. कुछ पंक्तियाँ तो जहन में बैठ ही गयी हैं.

    शाम्भवी

    जवाब देंहटाएं
  3. रचना जी ,इतनी बेबाक रचना .लगता है जख्म गहरा है .सोच लो , यह जीवन जलता हुआ सहरा है .

    जवाब देंहटाएं
  4. main jab ye kavita padh raha tha to jaise kho sa gaya tha..sach me man ko jajhkor kar rakh diya is kavita ne....bahut bahut badhai!!!!!mere blog par aapka swagat hai...

    जवाब देंहटाएं
  5. सहेज ली हैं मैंने वो अनछुई सांसें




    फिर अपने सीने मैं




    समेट ली हैं चंद अनकही बातें




    मैंने अपने माथे के पसीने में




    जाने कितने जनम लगेंगे




    फिर सुधियों का दामन सीने में
    behad khoobsurat likha hai badhai ho is sundar rachna ke liye .

    जवाब देंहटाएं
  6. मर्मस्पर्शी रचना. साधुवाद.

    जवाब देंहटाएं
  7. गीताञ्जलि पर लिखी अपनी एक कविता याद आ गई!
    दु:शासन को भी प्रेम मिल सकता है ;)
    उसका असली नाम सुशासन था।
    __________________
    @कान्हा ने अपना काम कर दिखाया
    बढ़ता रहा सुधियों का चीर
    गढ़ता रहा मन में पीर
    बहता रहा नैनों से नीर

    नवीनता छू गई। रचना के माध्यम से अभिव्यक्त होते कुछ शब्द - अच्छे हैं।

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  8. कुशलता से आपने अपने मन की बात कही।

    खुद वक्त ही उलट जाये तो क्या दोष है मेरा
    मैं वक्त का आईना हूँ सच बोल रहा हूँ

    सादर
    श्यामल सुमन
    www.manoramsuman.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  9. हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं.....
    इधर से गुज़रा था, सोचा सलाम करता चलूं

    http://www.samwaadghar.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  10. पुराने ख़त मिलने और पुरानी यादें पढ़ने का उपमान वैसे तो पुराना भी है..मगर उसमे द्रौपदी, दुस्शासन और कृष्ण का एक्दम नये और लीक से हट कर इन्ट्रोडक्शन से कविता को सर्वथा नयी विशिष्टता मिल जाती है..बहुत बेहतरीन बनी है कविता..

    जवाब देंहटाएं
  11. मैंने देखा


    मेरी सुधियों का चीर थामे


    तुम आज भी निर्भीक


    वहीँ खड़े थे


    छोड़ आई थी जहाँ मैं
    बहुत सुन्दर रचना.

    जवाब देंहटाएं
  12. मैंने अपने माथे के पसीने में


    जाने कितने जनम लगेंगे


    फिर सुधियों का दामन सीने में....

    in panktiyon ne man moh liya

    bahut hi sunder kavita.......

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत अच्छा लेख है, स्वागतम्।
    http://myrajasthan.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत ही अच्छा शब्द संयोजन है आपका!पुराणी यादें हमेशा हमारा पीछा करती है और याद दिलाती है बहुत कुछ,जिसे हम भूलना चाहते है...

    जवाब देंहटाएं
  15. वाह रचना ! ये क्या रच दिया तुमने !
    रग रग सिहर गया ! हाय रे स्त्री !
    दर्द जब बांध तोड़ के बह निकलता है ,
    तो ऐसा ही होता है ! ये दुशासन कभी
    नहीं समझेंगे ! बधाई स्वीकार करो !

    जवाब देंहटाएं
  16. आप सभी आगंतुकों का मेरे ब्लॉग पर स्वागत है.मेरी कविता की प्रशंसा करने और मेरे मनोभाव को समझने लिए आप सभी की दिल से आभारी हूँ
    रचना

    जवाब देंहटाएं
  17. हिंदी ब्लॉग लेखन के लिए स्वागत और शुभकामनायें
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें तथा अपने सुन्दर
    विचारों से उत्साहवर्धन करें

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत सुंदर रचना जी ,
    आपने मेरे दु;श्वशन में अपने भावों को बखूबी पिरोया है.
    बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  19. badhai ho rachna ji ,aap ne apne naam ki saarthakta siddh kar di,bahut sundar rachna prastut ki hai,is maulikta ke liye bhi badhai

    जवाब देंहटाएं
  20. हमने तो काँटों में भी महफ़िल सजा रखी है

    डाली है हम पर भी बुरी नज़र फूलों ने यारों.nice

    जवाब देंहटाएं
  21. कुशलता से आपने अपने मन की बात कही।

    जवाब देंहटाएं

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